0

यूपी में ये क्या हो रहा है ?

Share

केंद्र सरकार इस पूरे मुद्दे पर हुई हिंसा को अलग ही रूप देने के मूँड में नजर आ रही है। असम में छात्र संगठनों द्वारा किये गए आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के लिए सरकार अब कांग्रेस और कैडर बेस्ड इस्लामिक संगठन PFI को ज़िम्मेदार ठहरा रही है। ज्ञात होकि असम से लेकर दिल्ली, और दिल्ली से लेकर कर्नाटक तक, जहां भी हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। उनकी शुरुआत पुलिस के लाठीचार्ज से हुई है। जिसके बाद कई जगह भीड़ बेकाबू हुई।


उत्तरप्रदेश में कांग्रेस प्रवक्ता सदफ़ जाफ़र की फ़ेसबुक वाल पर देखा जा सकता है, जब 19 दिसंबर को लखनऊ में प्रदर्शन हो रहे थे, उसके बाद अचानक कुछ उपद्रवी आए। तब उन्होंने fb live किया था और उत्तरप्रदेश पुलिस को उपद्रवियों को पकड़ने की बात कह रही थीं। पर यूपी पुलिस देखती रही। बाद में सदफ़ जाफ़र को ही गिरफ़्तार कर लिया गया, और हिरासत में उन्हे बंदूक की बट से मारा गया, जिसके बाद उन्हें इंटर्नल इंजरी हुई। बताया जा रहा है, कि पूरे उत्तरप्रदेश में लगभग 60 हज़ार लोगों पर FIR किया गया है।

अब आते हैं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने के नाम पर आम मुस्लिमों और सरकार विरोधी गैर मुस्लिमों की संपत्ति को जप्त करने की कार्यवाही पर, कानून व्यवस्था बनाए रखने का कार्य यूपी पुलिस का है, पर प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर भारी लाठीचार्ज करके प्रदर्शनो को हिंसक बनाकर फिर जो पब्लिक प्रपार्टी का नुकसान हो, उसे आम जन की संपत्ति ज़बर्दस्ती लेकर भरपाई करने की कोशिश करना। बेहद ही नफ़रत से भरा निर्णय है।
भीड़ हमेशा से जाहिल होती है, उसे कंट्रोल करना ही तो कला है। यूपी, दिल्ली, कर्नाटक, गुजरात और बिहार में जो प्रदर्शन हुए। उनसे कहीं बड़ी भीड़, बड़ी तादाद महाराष्ट्र में हुए प्रदर्शनों में आई। आखिर इतनी भीड़ में कोई हिंसा क्यों नहीं हुई। आपको याद होगा कि योगी आदित्यनाथ ने संपत्ति जब्ती का जब बयान दिया था, तब उसके बाद एक बड़ी भीड़ बाहर निकलकर आई थी।


कुछ उपद्रवियों के वीडियो तो सामने आए ही हैं, पर पुलिस द्वारा की गई बर्बरता के वीडियो बड़ी तादाद में सामने आए हैं। सरकारी संपत्ति को हुआ नुकसान बेहद निंदनीय है, पर उस नुकसान की भरपाई कौन करेगा जो पुलिस की गोलियों से हुआ है। बड़ी आसानी ने यूपी पुलिस द्वारा गोलियां न चलाये जाने का बयान सामने आ गया। पर अब तो कानपुर में पुलिस द्वारा गोलियां चलाने का वीडियो भी आया है, क्या अब भी पुलिसिया थ्योरी यकीन करने लायक हैं। क्या अब भी उत्तरप्रदेश में की जा रहीं दमनात्मक कार्यवाहीयां शक की नज़रों से नहीं देखा जाना चाहिए ?

Exit mobile version