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हिटलर के न्यूरेमबर्ग कानून और मोदी सरकार के CAA में क्या समानता है ?

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मोदी सरकार जिस तरह के तर्क CAA, NRC पर दे रही है, ठीक यही तर्क कभी 1930 के दशक में सत्ता में आने के बाद हिटलर ने भी दिए थे। आज जिस तरह से बिकी हुई मीडिया के सहारे मुस्लिमों के विरुद्ध विद्वेष फैला रहा है। उसी प्रकार 1930 के दशक में जर्मनी में भी यहूदियों के खिलाफ पल रही नफरत की भावना को भड़काया जा रहा था।
ऐसे ही माहौल में 1935 में न्यूरेमबर्ग जर्मनी में नाजी पार्टी की रैली हुई, इसके बाद हिटलर द्वारा जर्मनी की संसद से अपने देश में यहूदियों, रोमनों, अश्वेतों और विरोधियों के खिलाफ भेदभाव करने वाले कानूनों को पारित करवाया गया। जो नया सिटिजनशिप लॉ था, इस नए सिटीज़नशिप लॉ के तहत ये कहा गया कि जर्मनी का नागरिक वही होगा जिसकी रगों में जर्मन खून हो। जैसे CAA में हिंदुओ के सरंक्षण की बात की जा रही है, वैसे ही इन कानूनों को लागू करते वक्त यह कहा गया कि ये कानून जर्मन रक्त शुद्धता और जर्मन सम्मान के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं।
15 सितंबर 1935 के दिन न्यूरेम्बर्ग कानून बनाकर जर्मन यहूदियों को जर्मन नागरिकता से वंचित कर दिया गया। न्यूरेम्बर्ग कानून के तहत चार जर्मन दादा-दादियों वाले लोगों को जर्मन माना गया, लेकिन जिनके तीन या चार दादा-दादी यहूदी थे, उन्हें यहूदी माना गया। एक या दो यहूदी दादा-दादी वाले लोगों को मिश्रित खून वाला वर्णसंकर कहा जाता। इस तरह के कानूनों ने यहूदियों से जर्मन नागरिकता तो छीन ही ली गयी, यहूदियों और जर्मनों के बीच शादी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। शुरुआत में तो यह कानून सिर्फ यहूदियों के लिए ही बने थे, लेकिन बाद में इन्हें जिप्सियों या बंजारों और अश्वेतों पर भी लागू कर दिया गया।
1938 में यहूदियों के लिए ख़ास तौर पर आइडेंटिटी कार्ड बनाए गए, उनके पासपोर्ट पर लाल रंग से J लिखा गया. उन्हें सिनेमा, थियेटर, एग्जीबिशन इत्यादि में हिस्सा लेने से रोक दिया गया। उसी साल 9-10 नवंबर की रात को यहूदियों के पूजास्थलों में तोड़फोड़ की गई। पूरे देश में उनकी दुकानें भी बरबाद कर दी गईं। इसके अगले साल यहूदियों को उनके घरों से निकाल दिया गया। उनकी कीमती चीज़ें जब्त कर ली गईं। कर्फ्यू लगा दिया गया उनके लिए। उनके टेलीफोन भी छीन लिए गए, इस पूरे दशक में तकरीबन 60 लाख यहूदी मार डाले गए। एक करोड़ दस लाख से ज्यादा को सताया गया। इस पूरे फेनोमेनन को ही होलोकॉस्ट कहा जाता है।
इन सब बातो से स्वतंत्रता पूर्व आरएसएस प्रमुख रहे और आरएसएस के प्रमुख विचारक एम.एस. गोलवलकर बहुत प्रभावित हुए, उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “वी – ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड” में लिखा – ‘राष्ट्र के विचार में अगली ज़रूरी चीज़ जो आती है, वो है नस्ल।  नस्ल के साथ संस्कृति और भाषा गहरे तक जुड़े हैं। जिसमें धर्म उतना ताकतवर नहीं हो पाता है, जितना होना चाहिए। जर्मन नस्ल का गर्व आज की दुनिया में चर्चा का विषय बन गया है। अपनी नस्ल और संस्कृति की शुद्धता को बनाए रखने के लिए जर्मनी ने जो किया उससे दुनिया को झटका लगा। जर्मनी ने अपने यहां से यहूदी नस्लों को मिटाया है, वहां जाति का गर्व सबसे ऊपर है। जर्मनी ने दिखा दिया है, कि एक राष्ट्र बनने के लिए वहां की नस्लों और संस्कृतियों के लिए अलग मूल से होना लगभग असंभव है। ये हिंदुस्तान के लिए एक बड़ा सबक है, जिसे सीख कर वो लाभ उठा सकता है। (पेज-87-88)
इसी किताब में एक जगह वह लिखते हैं- ‘हिंदुस्तान में विदेशी जाति को या तो हिंदू संस्कृति और भाषा को अपनाना, हिंदू धर्म का सम्मान करना और आदरपूर्ण स्थान देना सीखना होगा। हिंदू जाति और संस्कृति यानी हिंदू राष्ट्र का और हिंदू जाति, की महिमा के अलावा और किसी विचार को नहीं मानना होगा और अपने अलग अस्तित्व को भुलाकर हिंदू जाति में विलय हो जाना होगा या उन्हें वे लोग हिंदू राष्ट्र के अधीन होकर, किसी भी अधिकार का दावा किए बिना, बिना विशेषाधिकार के, यहां तक नागरिक के रूप में अधिकारों से वंचित होकर देश में रहना होगा। (पेज-105)
साफ है कि हिटलर से प्रभावित संघ का एजेंडा ही आज मोदी सरकार लागू करने की कोशिश कर रही हैं। जो CAA ओर NRC के रूप मे सामने आ रहा है।

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