कोरोना महामारी आज दुनिया भर के देशों में अपने पैर पसार चुकी है, भारत में भी कोरोना का कहर मचा हुआ है, जोकि एक दो से बढ़ते बढ़ते आज लाखों की संख्या तक पहुंच गया है।
तबलीगी जमात को लेकर राजनीति
दुनिया भर में कोरोना वायरस की महामारी चल रही थी परंतु मार्च के महीने में दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात का इजतेमा हुआ, यानी इस्लाम का प्रचार करने वाले लोग इकट्ठे हुए थे। जमात में शामिल हुए करीब 1000 लोगों को 30 मार्च को तबलीगी जमात के मरकज़ यानी सेंटर से निकाला गया। इनमें से 24 को कोरोना वायरस पॉजीटिव पाया गया था, वहीं 400 से ज़्यादा लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए थे। सेंटर को खाली करा लिया गया था। वहीं सवाल उठ रहे थे कि लॉकडाउन के बावजूद इतने सारे लोग एकसाथ कैसे मौजूद थे।
परंतु इन सब सवालों की आड़ में इस्लाम धर्म को लेकर लोगों में नफरत फैलाई जाने लगी कि तबलीगी जमात के लोगो के कारण ही पूरे भारत में कोरोना वायरस फैल रहा है, और सोशल मीडिया पर तो फेक वीडियो, फोटो, फेक न्यूज़ के जरिए एक धर्म के प्रति नफरत फैलाए जाने की मुहिम शुरू हो गई।
नफरत का असर बहुत जल्दी हुआ लोगों ने धर्म और नाम पूछ कर सब्जी, फल खरीदना शुरू कर दिया और कहीं-कहीं तो आधार कार्ड, पहचान पत्र देखकर लोग उन्हें अपने इलाके में प्रवेश करने देते थे। यह तो शुरुआती दौर था।
मज़दूरों का पलायन
भारत में 1 दिन के लॉकडाउन के बाद , 21 दिन का संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया गया। जिसके बाद शुरू हुआ मज़दूरों का पलायन, पलायन की स्थिति बेहद दर्दनाक थी। भारत के लोग संख्या में इतने ज़्यादा हैं कि स्वभाविक तौर पर बँटे हुए हैं। लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासी मजदूर की कहानियां हमने साफ तौर पर देखी। ऐसे ही एक कहानी एक महिला की है, जो कहती है कि हमारा सिर रेल की पटरी पर रख दो या पूरे परिवार समेत नदी में बहा दो।
देशभर में लॉकडाउन लागू किए जाने के बाद रेल और बस सुविधा के बंद कर दिए जाने के कारण कई प्रवासी मज़दूर और लोग अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए थे ऐसे में कई प्रवासी मज़दूर पैदल ही अपने घरों के लिए निकल गए हालांकि जैसे-जैसे लॉक डाउन में राहत दी जा रही थी वैसे-वैसे अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने के प्रबंध भी किए जा रहे थे। परंतु इसके बावजूद भी बहुत से मज़दूर परेशानियों का सामना कर रहे थे।
ANI द्वारा जब ग्राउंड पर लोगों से बात करी गई तो 2 महिलाओं ने कहां की हम मोदी सरकार से कहते हैं, कि हमें हमारे गांव हरदोई जिला भेजने की सुविधा करें। नहीं तो हम खुद जाकर पुलिस को कहेंगे कि हमें भूखे क्या मारोगे, इससे बढ़िया हमारा सर रेल की पटरी पर रख दो या फिर मेरे पूरे परिवार समेत हमें जमुना नदी में बहा दो। यह बात दो महिलाओं ने यूपी और हरियाणा पुलिस की रोके जाने पर कहीं।
एक प्रवासी मजदूर सोनीपत से था वो कहता कि 8-10 दिनों से चलते-चलते पांव सूज गए हैं और छाले पड़ गए हैं। यहां बॉर्डर पर आया हूं तो पुलिस डंडों से मारती है और कहती है कि जहां से आए हो वहां जाओ। पर अगर वहां जाता हूं तो मकान मालिक मारता है बोलता है, कि यहां तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं है। जिसके कारण अब हम यहां जंगल में भूखे प्यासे पड़े हुए हैं।
ऐसे ही तमाम लोगों की कहानियां हमको देखने को मिली जो कोरोना वायरस के कारण सबसे बड़ी त्रासदी थी।
चिकित्सा हाल बेहाल
कोरोनावायरस के कारण अस्पतालों में बेड की कमी को लेकर बहुत बड़ी नाकामी देखी गई। बात करें दिल्ली की तो दिल्ली में ही ऐसी कई वीडियो वायरल हुई हैं, जिससे साफ जाहिर हो रहा था कि दिल्ली सरकार कहीं न कहीं स्वास्थ्य संबंधी क्षेत्र में पीछे छूट गई है। जहां एक तरफ दिल्ली सरकार दावे कर रही थी कि चिकित्सा में कोई भी कमी नहीं है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली में मरने वालों के आंकड़े बढ़ते जा रहे थे। दिल्ली सरकार ने गंभीर हालत के समय ऐलान कर दिया कि दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के लोग इलाज करा सकते हैं जिसको लेकर खूब राजनीति हुई और अंत में दिल्ली सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। वहीं इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों ने लूट मचा रखी थी। यह ऐसी परेशानियां थी जिसका खास करके लेवर और मिडिल क्लास के लोगों ने सामना किया।
छात्रों की परेशानियां
लॉकडाउन के कारण सभी स्कूल, कॉलेज शिक्षा संस्थानों को बंद कर दिया गया, जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई पर फुलस्टॉप लग गया। वही महामारी के चलते स्कूल के सभी छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया गया या पास कर दिया गया। वही बात करते हैं यूनिवर्सिटीज की, यूनिवर्सिटी को लेकर अभी भी केंद्र सरकार कोई सही फैसला लेते हुए नज़र नहीं आ रही है। बात करते हैं दिल्ली यूनिवर्सिटी की तो स्टूडेंट्स का मज़ाक बना दिया गया है, कभी कहा जाता है ऑनलाइन एग्जाम करवाने हैं, कभी मॉक टेस्ट करवाना है और अंत में इन सब चीजों को कैंसिल कर देना। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या ये आ रही है कि फाइनल ईयर की स्टूडेंट इस महामारी के समय में लगभग 3 महीने से ज्यादा दिनों से घर में हैं जिसके कारण बच्चे अवसाद के शिकार हुए हैं, ऐसे में सरकार का बिना सोचे समझे कोई भी फैसला लेना और ठोक देना कहां तक सही है।
दरअसल बीते दिनों में दिल्ली यूनिवर्सिटी ऑनलाइन एग्जाम करवाने जा रही थी जिसको लेकर स्टूडेंट्स ने काफी विरोध जताया। छात्रों का कहना था कि ऑनलाइन परीक्षा भारत में फिलहाल नामुमकिन है शायद हमारी यूनिवर्सिटी भूल रही है कि इस देश में जम्मू कश्मीर, लद्दाख, बिहार, उत्तर -प्रदेश और ऐसे कई राज्य हैं जहां इंटरनेट जैसी सुविधा आज जो पर्याप्त नहीं है हर किसी के पास मोबाइल, लैपटॉप उपलब्ध नहीं होता। ऐसे में सरकार को जोश – जोश में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए बल्कि हर स्टूडेंट के बारे में सोच कर उचित फैसला लेना चाहिए।
ऐसे ही कई क्षेत्रों में समस्याओं की बाढ़ आ रखी है, जिसको समय रहते हल नहीं किया गया तो मुश्किलें और बढ़ती जाएंगी।