दंगा कराने के एक्सपर्ट गुंडों ने नकाबपोश होकर जेएनयू के हॉस्टल में घुस कर मारपीट और तोड़फोड़ की है और शायद अब भी यह चल रहा है । यह खबर कई टीवी चैनलों पर आ रही है। कहा जा रहा है कि जेएनयू के छात्र आंदोलन ने त्रस्त सरकार और जेएनयू प्रशासन ने गुंडों का सहारा लेकर इस आंदोलन को तोड़ने की यह हिंसक कोशिश की है। आने वाले दिनों में सिर्फ दंगा, मारपीट, उन्माद, साम्प्रदायिक पागलपन की ही खबरें मिलेंगी। सरकार अब यह सोच ही नहीं पा रही है कि वह क्या करे। उधर सीएए और एनआरसी को लेकर अलग ही जनाक्रोश है और देश भर में जन आंदोलन छिड़ा हुआ है।
इधर फ़ैज़ साहब न जाने कहाँ से नमूदार हो गए, अब दिनकर भी कुहरा छँटा तो खिल कर आ गए, धूमिल, हबीब जालिब तो रोज़ ही दिख रहे हैं। दुष्यंत , रघुवीर सहाय, मुक्तिबोध के लिखे के पन्ने पलटे जा रहे हैं। सरकार और सरकार के समर्थक दलों तथा संघ का वैचारिक दारिद्र्य इतना निम्न है कि वह इन सबके जवाब में, जब कुछ कह सुन, तर्क वितर्क, बहस, संवाद कर ही नहीं पाता है तो ढाटा बांध कर लाठी उठा लेता है । एक मुखबिर मार्का फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद और धर्मांधता भरी सोच जो श्रेष्ठतावाद पर आधारित है, बस वही एक मुर्दा विरासत है जो वे ढो रहे हैं। पढ़ने लिखने, वैज्ञानिक सोच और तर्क वितर्क से उन्हें कोई मतलब नहीं । उन्हें जब कुछ भी तर्क समझ मे नहीं आता तो वे हिंसा की भाषा बोलना शुरू कर देते हैं। जब सत्ता में गुंडे आएंगे तो सड़कों पर गुंडई होगी ही।
अभी कुछ ही दिन पहले, जामिया यूनिवर्सिटी में घुसने के लिये जामिया यूनिवर्सिटी के वीसी की इजाज़त लेने की कोई ज़रूरत ही दिल्ली पुलिस ने नहीँ समझी। पुलिस ने लाइब्रेरी तक घुस तक तोड़ फोड़ कर दिया बस यही कृपा की, उसने कि, लाइब्रेरी में आग नहीं लगायी। आज जेएनयू में जब गुंडे हॉस्टल में छात्रों को मारपीट रहे थे, तो पुलिस वीसी की अनुमति की प्रतीक्षा कर रही है। बेचारी अंदर घुसे कैसे। कानून व्यवस्था के प्रति यह सेलेक्टिव अप्रोच है। पहले गुंडे घुसाओ फिर थोड़ा इंतजार कराओ, बाद में घुसो और सुबह कह देना कि यह तो छात्रों के ही दो गुटों की मारपीट थी।
जेएनयू देश की चुनिंदा यूनिवर्सिटी और शिक्षा संस्थानों में से एक है जिसके पूर्व छात्र दुनियाभर मे फैले हुये हैं और महत्वपूर्ण पदों पर हैं। मैं जेएनयू में पढ़ा नहीं हूं, पर मेरा सम्पर्क वहां पढें कुछ महत्वपूर्ण पूर्व छात्रों से अब भी बना हुआ है। दुनियाभर के देशों के छात्र भी जेएनयू में पढ़ते हैं। जेएनयू पर कल रात पुलिस संरक्षण में जो गुंडई की गयी है वह सोशल मीडिया के कारण पल पल सबके पास, जिसकी रुचि जेएनयू या जन आंदोलनों में रहती है, पहुंचती रही है। सिविल सोसायटी ने भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। कुछ राजनीतिक दल जेएनयू के पक्ष में लामबंद हुये तो कुछ ने मक्कारी भरी दूरी बनाई।
यह खबर दुनियाभर में फैली है। जो जेएनयू में कल रात हुआ वह बीभत्स था। दुनियाभर में इससे केवल एक ही बात फैलेगी कि हम अपनी शिक्षा संस्थानों को लेकर बेहद प्रतिशोध पूर्ण रवैया अपना रहे हैं। हमारी संस्कृति भले ही दुनिया की महानतम संस्कृति में से एक हो पर हम अब एक अराजक देश बनने की राह पर चल पड़े हैं। यह भी 2014 के बाद की एक उपलब्धि ही कही जाएगी।
देश मे, छात्र आंदोलन कोई पहली बार नहीं हो रहा है। पर बिना किसी उत्तेजना के रात के अंधेरे में छात्र और छात्राओं के हॉस्टल में सौ पचास गुंडों को, ढाटा बांध, घुसा कर कुलपति की साजिश के साथ पिटवाना, उन पर जानलेवा हमला करना, पुलिस को खामोश रहने देना, यह पहली बार हुआ है। शुरू में जब यह खबर फ़्लैश हुयी तो, लगा कि यह छात्रों के दो गुटों में कुछ झगड़ा जैसी चीज हुयी होगी। जो अक्सर यूनिवर्सिटी में हो जाती है। पर जल्दी ही समझ मे आ गया कि यह एक हमला था। यह एक प्रतिशोध था। बदला था।
जब सरकार सबक सिखाने और बदला लेने की बात सार्वजनिक मंचों पर करने लगे तो पुलिस एक प्रशिक्षित गुंडों के गिरोह के अतिरिक्त, औऱ कुछ नहीं रह जाती है। जो भी है, यह नयी परंपरा जो, अपने विरोधी विचार को निपटाने के लिये पुलिस के इस्तेमाल के रूप में डाली जा रही है, यह पुलिस सिस्टम, पुलिस के विचार, और प्रतिशोध की ऐसी राजनीतिक संस्कृति को विकसित करेगी जहां, वाद विवाद संवाद के बजाय ढाटे बांधे गुंडे और उन्हें संरक्षण देती पुलिस ही मुख्य भूमिका में रहेगी। सुरक्षा का यह तँत्र, प्रतिशोध का एक साधन बनकर रह जायेगा।
आज सरकार यानी गवर्नेंस जैसी कोई चीज देश मे, शेष नहीं है। आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि सरकार को अपनी कम्पनियां बेच कर आरबीआई, सेबी आदि से धन लेकर काम चलाना पड़ रहा है। देश मे कोई अर्थव्यवस्था सुधारने की सोचे, ऐसी कोई प्रतिभा सरकार के पास नहीं है। गृहमंत्री सबक सिखाने की बात कर रहे हैं, और प्रधानमंत्री एंटायर मौन धारण कर चुके हैं।
देश के उन यूनिवर्सिटी और शिक्षा संस्थानों, जैसे आईआईटी, आईआईएम, आईआईएस, आदि आदि के छात्र आंदोलित हैं जो अमूमन शांत रहते हैं। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ छात्र, शिक्षक और शिक्षा विरोधी यह एजेंडा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बीएचयू, जादवपुर होते हुये, कल जिस बीभत्स रूप में जेएनयू पहुंचा, उसकी गूंज दुनियाभर में जेएनयू पर हमले के रूप में हो रही है। हमला गुंडे कर रहे हैं, उन्हें प्रश्रय पुलिस दे रही है और सहमति कुलपति की है। कुलपति , गुंडे और पुलिस का यह अजीब गिरोहबंद गठजोड़ है। ऐसा गठजोड़ तभी बनता है जब सत्ता में फ़र्ज़ी डिग्री, फ़र्ज़ी हलफनामे और आपराधिक मानसिकता वाले लोग भारत भाग्य विधाता बन जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट किया है कि जेएनयू की घटना के बारे में जो सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर आ रहा है वह भयावह है, उसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेने के लिये ईमेल भेज कर अनुरोध करें। ईमेल पता इस प्रकार है, supremecourt@nic.in