मेरा एक दोस्त दिल्ली में पत्रकार है उसने देश के एक प्रतिष्ठित संस्थान से पत्रकारिता की पढ़ाई है, वो ऊर्जावान है युवा है लेकिन “दुर्भाग्य” से मुसलमान है। त्रिपुरा में पिछले महीने जब मुसलमानों की बस्तियों पर हमले हुए मस्जिदों और घरों को जलाया गया तब वो रिपोर्टिंग के लिए वहाँ जाना चाहता था, एक पत्रकार बन कर ।
ताकि अपने पेशे का हक़ अदा कर सके, लेकिन वो नहीं गया, मैंने कारण पूछा तो कहने लगा “ भाई UAPA नहीं लगवाना” इस चार शब्दों के हिंदी वाक्य में डर है, चिंता है , एक हताशा है, अपनी पहचान का दर्द है, यह वाक्य यह बताता है की भारत में मुसलमान होना कितना बड़ा अपराध है।
रोहित वेमुला ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था “ मेरा जन्म एक दुर्घटना थी” सिद्दीक कप्पन, उमर ख़ालिद, गुल्फ़िशां, इशरत जहां, ख़ालिद सैफ़ी, अतहर ख़ान, शरजील इमाम, मीरान हैदर……. का जन्म भी एक दुर्घटना ही थी। ये सब कई महीनों से जेल की सलाखों में हैं, कारण पता नहीं ।
आज मुनव्वर फ़ारूक़ी ने कॉमेडी छोड़ दी उसने लिखा “ प्रिय दर्शकों आपका धन्यवाद, आज मेरा काम ख़त्म हुआ” इस वाक्य के भीतर छुपी पीड़ा का अहसास शायद हर किसी को ना हो, इसकी अनुभूति वही कर सकता है जिसने अपनी पहचान की वजह से दुनियाँ के सबसे बड़े कथित लोकतंत्र में घुटन महसूस होती है. मुनव्वर के पिछले दो महीने में एक दर्जन से ज़्यादा शो रद्द हुए हैं. हिंदूवादी संगठन धमकी देते हैं और प्रशासन शो रद्द कर देता है।
पिछले दिनों एक व्यक्ति मोहम्मद(सल्ल॰) पर आपत्तिजनक किताब लिखता है उनका मखौल उड़ाता है, देश के 20 करोड़ मुसलमानों को चिढ़ाता है,लेकिन कोई क़ानून कोई नेता उसका हाथ पकड़ कर यह नहीं कह सका की तुम ऐसा नहीं कर सकते, बल्कि उसे ऐसा करने की पूरी छूट दी जा रही है, उसकी मदद की जा रही है ।
विकास के हर मुद्दे पर बर्बाद हो चुकी यह सरकार और उसके कारिंदे अपने मतदाताओं को यह संदेश दे रहे हैं की दाल पानी की चिंता छोड़ो, देखो ! हमने मुसलमानों को टाइट किया हुआ है”
130 करोड़ के देश में कोई खड़ा होकर यह नहीं कहता है की यह क्यूँ हो रहा है? शायद इस देश का बड़ा वर्ग तानाशाही और एक वर्ग से नफ़रत को धीरे- धीरे अपने भीतर समाहित कर रहा है, शायद वह अलोकतांत्रिकता के वातावरण से सम्मोहित हो चुका है।