टीबी (TB) एक संक्रमण है जो हवा में छींकने और खांसने से फैलता है। ये माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ( Mycobacterium tuberculosis ) नाम के बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है जिसे क्षय रोग या तपैदिक नाम से भी जाना जाता है। TB किसी भी व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन अधिकतर TB के मामले उन लोगो मे देखे जाते है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। अगर कोई TB मरीज़ के संपर्क में आता है तो उसे TB हो सकती है।
TB लाइलाज नहीं है, लेकिन ये बेहद ही ख़तरनाक संक्रमण है। सही समय पर अगर TB होने का पता नही लगता तो ये जानलेवा हो जाती है। TB से बचाव का सही तरीका एक ही और वो है TB की जानकारी। इसलिए लेख को अंत तक पढ़ियेगा..
किसको होता है TB :
टीबी का पूरा नाम ट्यूबरक्लोसिस है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टेरिया से होता है। ये संक्रमण उन लोगो मे अधिक होता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम बहुत वीक होता है। HIV मरीज़ों में टीबी के ज़्यादा मामले देखे जाते हैं। तंबाकू खाने वालों में , शराब का सेवन करने वाले और स्मोकिंग करने वालो में भी टीबी होने का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा कोई भी अच्छा खासा इंसान टीबी मरीज़ के संपर्क में रहने से, उसका झूठा खाने से और टीबी मरीज़ के छींकते खासते वक्त उसके एक मीटर के दायरे में रहने पर टीबी से संक्रमित हो सकता है।
WHO के मुताबिक विकासशील देशों में टीबी की बीमारी ज़्यादा फैलती है, यहां ये किसी महामारी से कम नहीं है। दूसरी और वैश्विक स्तर पर 24 % टीबी मरीज़ अकेले भारत मे हैं। 2018 में पूरे विश्व में टीबी मरीज़ों का आंकड़ा एक करोड़ था, जिनमे 15 लाख लोगों की मौत हुई। WHO के ही मुताबिक पुरुषों की तुलना में महिलाओं को टीबी अधिक होती है। ये 20 से 59 की उम्र में होती है, 2014 में 480 हज़ार महिलाओं की मौत टीबी से हुई थी।
शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है TB :
वैसे तो टीबी का सबसे अधिक प्रभाव फेफड़ो (lungs) पर देखा जाता है और डॉक्टरों की भाषा मे इसे पलमोनरी ( pulmonary tuberculosis) ट्यूबरक्लोसिस कहते हैं। लेकिन फेफड़ो के अलावा टीबी शरीर के किसी भी हिस्से को इफ़ेक्ट कर सकती है। जिसमे ब्रेन, आंख, स्पाइन, लिवर, किडनी, गले, यूट्रस और मुहँ शामिल है। महिलाओं में पोल्विक ट्यूबरक्लोसिस भी होती है ये गुप्तांग में होने वाली टीबी है। इससे महिलाओ की गर्भवती होने की क्षमता प्रभावित होती है।
हालांकि, फेफड़ो की टीबी ही खाँसी और छींक के माध्यम से दूसरों में फेल सकती है, बाकी अन्य टीबी जैसे ब्रेन टीबी, यूट्रस टीबी आदि नहीं फैलती। इसलिए ऐसे मरीज़ जिन्हें फेफड़ों को टीबी हो उसके ज़्यादा पास न जाए। छींकते खासे समय उससे दूर रहे और उससे बात करते समय भी कम से कम एक मीटर की दूरी बनाए। टीबी मरीज़ के मुहँ से निकली बारीक स्लाइवा की बूंदे भी आपको संक्रमित कर सकती हैं।
TB दो प्रकार का होता है :
शरीर के अलग अलग हिस्से में होने वाला टीबी दो प्रकार का होता है। अब अगर आप सोच रहे है कि क्या बीमारी के भी प्रकार होते है, तो जवाब है, हां टीबी तीन प्रकार की होती है।
– पहली है लेटेंट टीबी (latent tuberculosis) इसमें बैक्टीरिया शरीर के अंदर होता है लेकिन वो शांत बेजान एक जगह पर पड़ा रहता है, एक्टिव नहीं होता। लेटेंट टीबी वाला इंसान किसी को भी संक्रमित नहीं कर सकता।
– दूसरा है एक्टिव टीबी (active tuberculosis) इसमें शरीर मे गया बैक्टीरिया एक्टिव हो जाता है और शरीर मे अपनी तादाद बढ़ाने लगता है। वो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फेल सकता है। खांसी और छींक आने पर एक्टिव टीबी वाला इंसान दूसरे को संक्रमित कर सकता है।
– तीसरा है माइलरी टीबी (miliary TB)। माइलरी टीबी एक्टिव टीबी का एक दुर्लभ रूप है जो तब होता है जब टीबी के बैक्टीरिया रक्तप्रवाह में अपना रास्ता खोज लेते हैं और खून के ज़रिए पूरे शरीर मे घूमने लगते हैं।
TB के लक्षण :
शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाली टीबी के लक्षण अलग अलग होते हैं। लेकिन सभी टीबी में कुछ कॉमन सिम्टम्स होते है जैसे, जिस हिस्से में टीबी हो वहां लगातार दर्द, भूख न लगना, चिड़चिड़ा पन, न चाहते हुए भी वजन कम होना। लंबे समय तक शाम के वक्त हल्का बुखार आना, आलास रहना, थोड़ा काम करने पर भी कमज़ोरी महसूस होना।
– फेफड़ों की टीबी में खासी आती है, खासी के साथ बलगम और बलगम में खून भी आ सकता है। इसके अलावा सीने में दर्द, सांस लेते वक्त फेफड़ो पर वजन महसूस होना, सांस लेते वक्त सीटी बजने की आवाज़ आना।
– ब्रेन टीबी के मरीज़ों को अक्सर दौरे पड़ते है, सर में दर्द और शरीर मे पोटैशियम, कैल्शियम और सोडियम क्लोराइड की भारी कमी होती है।
– गले की टीबी में, गले मे गांठ बन जाती है, जिसमे दर्द और खून की उल्टी होती है।
TB से बचाव के लिए क्या करें :
– टीबी पोसिटिव व्यक्ति के सम्पर्क में न आए, यदि सम्पर्क में आते हैं तो कम से कम एक मीटर की दूरी बनाए या मास्क लगा कर रखे।
– टीबी मरीज़ भी किसी से मिलते समय मास्क का इस्तेमाल करें।
-इम्युनिटी बढ़ाए, प्रोटीनयुक्त खाना खाएं, जैसे डाल, सोयाबीन, अंडा, पनीर ।
– भीड़ भाड़ वाले इलाकों पर जाने से बचे, खुले में न थूके।
– इंफेक्शन को टिशू पेपर में थूके और डस्टबिन में डाल दें, अगर प्लास्टिक की थैली में थूक रहें है तो उसमें फिनाइल डाल दें।
– छींकते खासते समय नेपकिन या रुमाल का इस्तेमाल करें, खुले में न छींके।
– टीबी से सुरक्षा के लिए जन्म के बाद बच्चे को BCG का टीका लगाया जाता है।
कैसे होती है TB की जांच :
टीबी चाहे फेफड़ो की हो या कोई अन्य सभी जांच का अलग पैटर्न होता है। फेफड़ों की टीबी की जांच करने के लिए एक्सरे, सिटी स्कैन और ज़रूरत पड़ने पर MRI होती है। बलगम की जांच, जीन एक्सपर्ट जांच, ब्लड कल्चर, मोंटेक्स टेस्ट किये जाते हैं। इसके अलावा यूट्रस टीबी की जांच सर्वाइकल सवेब से की जाती है। किडनी टीबी की जांच यूरिन कल्चर टेस्ट से की जाती है। गांठ के लिए फ्लूड जांच होती है।
सरकारी अस्पतालों में ये सारी जांच मुफ़्त की जाती है वहीं प्रिवेट हॉस्पिटल में भी सरकार ने जांच के दाम
फिक्स किये हैं। बलगम की जांच 100 -200 रुपए, AFB कल्चर टेस्ट 2000 रुपए, एक्सरे 200 -500 और यूरिन कल्चर टेस्ट 1500 तक हो जाता है।
TB का इलाज संभव है :
ट्यूबरक्लोसिस जानलेवा है, लेकिन सही समय पर कन्फर्म होने पर इसका इलाज संभव है। सरकारी हॉस्पिटल और प्राइवेट दोनों जगह इसका इलाज होता है। सरकारी अस्पातल और डॉट्स सेंटर पर इलाज मुफ्त है वहीं प्राइवेट में भी यह ज़्यादा महंगा नहीं है।
टीबी के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है, जिसमे प्रमुख है आइज़ोनाइज़्ड ( isoniazid (INH) ) , इथंबुटोल (ethambutol (EMB)), पाईराज़ीनामाईड ( pyrazinamide (PZA) ) और रिफैंपिसन ( rifampin (RIF) ) । ये एंटीबायोटिक दवाएं बैक्टीरिया को मारती है और उनकी तादाद बढ़ने से भी रोकती है। लेकिन इन सभी दवाओं का शरीर के अन्य हिस्सों पर कुछ साइड इफेक्ट्स भी होते हैं।
आइज़ोनाइज़्ड लिवर पर असर करता है, इथेमबुटोल आंखों की रोशनी की इफेक्ट करता है इससे ऑप्टिक न्यूराइटिस हों जाता है। रिफैंपिसन आंसू, पसीना और पेशाब का रंग नारंगी कर देता है वहीं पाईराज़ीनामाईड से जोड़ो में दर्द हो सकता है।
TB ठीक होने के बाद लौट सकता है ?
टीबी मरीज़ को एक से अधिक बार टीबी हो सकती है ऐसा सही से दवाई न खाना या बीच मे कोर्स छोड़ देने के कारण होता है। इसलिए टीबी के मरीज़ को सलाह दी जाती है कि वो एक भी दिन की दवाई मिस न करे।
दरअसल, टीबी का इलाज कोर्स के अनुसार होता है ये कोर्स 6 महीने, 9 महीने 12 महीने, डेढ़ साल और ज़्यादा से ज़्यादा 2 साल तक का होता है। कोर्स के हिसाब से फिक्स टाइम पीरियड के लिए एंटीबायोटिक दवाओं दी जाती हैं। लेकिन कुछ लोग थोड़ा आराम मिलने के बाद ही दवाएं खाना बंद कर देते है, जिससे वायरस पूरी तरह खत्म नहीं होता और दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है।
इसके बाद टीबी वापस एक्टिव हो जाता है और सामान्य टीबी की दवाएं उस मरीज़ पर काम नहीं करती। इस सिचुएशन को MDR TB ( milti drug resistant TB ) कहा जाता है। इसमें टीबी दवाएं मरीज़ों पर काम नहीं करती इसलिए मरीज़ों की दवाई बदल दी जाती है। वहीं दवा की मात्रा भी बड़ा दी जाती है। जब सिचुएशन MDR TB से आगे बढ़ जाती है यानी कोई भी टीबी ड्रग मरीज़ पर असर नहीं दिखती तो इसे XDR TB ( Extensively drug-resistant TB ) कहा जाता है। इसका इलाज मुश्किल होता है वही ठीक होने की सभावना भी कम होती है।