मोदी सरकार का वो नेता जो कभी चुनाव नहीं जीता

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आज देश के पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की दूसरी दूसरी पुण्यतिथि (Arun Jaitley Death Anniversary) है। वह भारत के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता और राजनेता रहे थे। राजनीति में जेटली अपने छात्र जीवन से ही सक्रिय थे। जेटली ने भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान बनाई थी।

उनका नाम भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में से सबसे ऊपर आता है। फिर चाहे बात अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल की हो या नरेंद्र मोदी सरकार की, वह हमेशा ही पार्टी के लिए प्रमुख रणनीतिकारों में से एक रहे हैं। वह पार्टी के नेताओं के अलावा अपने कार्यकर्ताओं से भी लगातार संपर्क में रहते थे।

नए मंत्रालय के नए मंत्री

1991 से जेटली भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे। उन्होंने 1999 के आम चुनाव में भाजपा प्रवक्ता के पद पर काम किया। उसके बाद 1999 में ही भाजपा की अटल बिहार वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार सत्ता में आई।

इस सरकार में 13 अक्टूबर 1999 को जेटली सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के पद पर नियुक्त किये गये। इसी सरकार में विश्व व्यापार संगठन के शासन के तहत विनिवेश की नीति को प्रभावी बनाने के लिए पहली बार विनिवेश मंत्रालय बनाया गया और इस नए मंत्रालय का कार्यभार जेटली को सौंपा गया।

एक साथ कई मंत्रालयों का संभाला कार्यभार

भाजपा की पिछली सरकारों से लेकर मोदी सरकार तक में जेटली को कई बार अपने मंत्रालय के साथ अतिरिक्त कार्यभार संभालना पड़ा था। जब दिवंगत मनोहर पार्रिकर ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर गोवा के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था, तो उनके मंत्रालय (रक्षा मंत्रालय) का कार्यभार भी अरुण जेटली ने संभाला था।

इसके अलावा वाजपेयी की सरकार में तत्कालीन न्याय और कंपनी मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री राम जेठमलानी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद जेटली ने 23 जुलाई 2000 को कानून न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला।

इसके बाद केबिनेट का विस्तार करके वाजपेयी ने जेटली को नवम्बर 2000 में एक कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत कर दिया था। और जेटली एक ही समय पर कानून, न्याय और कंपनी मामलों और जहाजरानी मंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे।

इन पदों पर किया काम

भूतल परिवहन मंत्रालय के विभाजन के बाद उन्हें नौवहन मंत्री भी बनाया गया। उन्होंने 1 जुलाई 2001 से केंद्रीय मंत्री, न्याय और कंपनी मंत्री के रूप में काम किया। इसके अलावा 1 जुलाई 2002 को नौवहन के कार्यालय को भाजपा और उसके राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में शामिल किया गया।

जेटली ने जनवरी 2003 तक इस क्षमता में काम किया। 29 जनवरी 2003 को केंद्रीय मंत्रिमंडल को वाणिज्य और उद्योग और कानून और न्याय मंत्री में एक बार फिर जेटली को मंत्री बनाया गया।

वहीं मई 2004 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार के बाद जेटली एक महासचिव के रूप में भाजपा की सेवा की। और साथ ही अपने कानूनी करियर में वापस आ गए।

विपक्ष में निभाई अहम भूमिका

अरुण जेटली ने, न सिर्फ सरकार में रहकर राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है बल्कि विपक्ष में रह कर भी उन्हें पार्टी और विपक्षी दलों की तरफ से कई अहम जिम्मेदारियां दी गईं।

जेटली को 3 जून 2009 को एल.के. आडवाणी द्वारा राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया था। विपक्ष का नेता चुने जाने के बाद जेटली ने अपनी पार्टी के वन मैन वन पोस्ट सिद्धांत के अनुसार 16 जून 2009 को महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया। वह पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य भी थे।

जेटली ने राज्यसभा में विपक्ष की अगुवाई करते हुए महिला आरक्षण विधेयक की बातचीत के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साथ ही उन्होंने जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्ना हजारे का समर्थन भी किया।

उन्होंने 2002 में 2026 तक संसदीय सीटों को मुक्त करने के लिए भारत के संविधान में 80 (4) का संशोधन प्रस्तुत किया था। इसके साथ 2004 में भारत के संविधान में 90वें संशोधन ने दोषों को दंडित किया था। हालांकि, 1980 से पार्टी में होने के कारण उन्होंने 2014 तक कभी भी कोई सीधा चुनाव नहीं लड़ा था।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट थे अरुण जेटली

गौरतलब हो कि जेटली ने 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनाव लड़ा और जीचा था।

अमरिंदर सिंह से हार गए थे चुनाव

जेटली ने 2014 के लोकसभा चुनावों में अमृतसर की सीट से सांसद का चुनाव लड़ था। मगर जेटली इस बार भी चुनाव नहीं जीच पाए। कांग्रेस के दिग्गज नेता अमरिंदर सिंह ने जेटली को करारी शिकस्त दी थी। हालांकि पहले इस सीट से नवजोत सिंह सिद्दू चुनाव लड़ने वाले थे, पर उनकी जगह बाद में जेटली को इस सीट से उतारा गया था।

राज्यसभा से पहुंचे संसद

लोकसभा में हारने के बाद जेटली गुजरात से राज्यसभा सदस्य चुनाव लड़ा था। उसके बाद मार्च 2018 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए फिर से चुना गया। जहां से उन्हें 26 मई 2014 को, नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वित्त मंत्री के रूप में चुना गया था।

नोटबंदी और जीएसटी का किया ऐलान

भारत के वित्त मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल कुल 5 वर्षों का रहा, इस दौरान सरकार ने 9 नवंबर, 2016 से भ्रष्टाचार, काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री मोदी ने Rs 500 और Rs 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण (Demonization) किया। साथ ही नोटबंदी के एक साल बाद 1 जुलाई, 2017 को मोदी सरकार के द्वारा जीएसटी लागू कर दिया गया।

24 अगस्त को हो गया था निधन

आज से दो साल पहले 9 अगस्त 2019 को अरुण जेटली को सांस फूलने की शिकायत के बाद गंभीर हालत में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती कराया गया था।

जिसके बाद उनकी हालात लगातार भीगड़ती रही। 17 अगस्त को उन्हें लाइफ सपोर्ट पर रखा गया था। 23 अगस्त तक उनकी तबीयत काफी खराब हो गई थी। जिसके चलते 24 अगस्त 2019 को 66 साल की उम्र में उनका का निधन हो गया।

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