कोरोना के इस काल में हम महामारी,बेकारी,बेरोज़गारी, बदहाली जैसी कितनी समस्याओं से जूझ रहे हैं।एक ओर महामारी जो ज़िंदगी छीन रही है और दूसरी और आर्थिक मंदी जो लोगो की नौकरी छीन रही है।ऐसे में उन समस्याओं को हम भूल सा गए हैं जिनके आंकड़े रोज़ाना टीवी पर नहीं दिखते,न्यूज़ पेपर में प्रकाशित नहीं होते।
घरेलू हिंसा।पिछले डेढ़ साल से इससे जुड़ी खबरों पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया और ऐसा हो भी क्यों न सब कोरोना में जो अटके हैं।लेकिन अगर महिलाओं के साथ होने वाली प्रताड़ना का आंकड़ा देखा जाए तो इस साल के पांच महीने का आंकड़ा पिछले 21 साल के आंकड़ों पर भारी है।
महिलाओं के साथ दहेज से जुड़ा मामला हो या मारपीट का या यौंन शोषण का ही मामला क्यों न हो लॉक डाउन में इन सभी मामलों में वृद्धि हुई है।
एनसीबी ( national commission for women)
की रिपोर्ट के अनुसार घरेलू हिंसा की शिकायतें 2019 में 2,960 से बढ़ कर 2020 में 5,297 हो गयी है।जिसमे दहेज से जुड़ी मौत का आंकड़ा 330 है।सेक्सुअल असॉल्ट के 110 मामले और सेक्सुअल हैरेसमेंट के 576 मामले दर्ज किए गए हैं।
घरेलू हिंसा के आंकड़े में हुआ ये इज़ाफ़ा लॉक डाउन में लोगो का अपने घरों तक सीमित होना और नोकरी का चला जाना माना जा सकता है।
दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 की शुरुआत के सोलह दिनों में 17 दहेज के मामले दर्ज किए गए हैं।
घरेलू हिंसा और महिलाएं:
घर की चार दिवारी के अंदर किसी भी महिला के साथ होने वाली ऐसी क्रिया जिसमे उसे आघात पहुंचता है वो घरेलू हिंसा है।इसमें मारपीट,झगड़ा,दहेज के लिए प्रताड़ित करना,मारने की धमकी देने और शारीरिक शोषण और मानसिक रूप से तनाव देना शामिल हैं।
WHO के मुताबिक दुनिया भर में लगभग तीन में से एक महिला को अपनी ज़िंदगी मे कभी न कभी शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है।वहीं 15-49 वर्ष की आयु वाली रक तिहाई यानी 27 प्रतिशत महिलाएं अपनी शादी शुदा ज़िंदगी में अपने पार्टनर द्वारा शारिरिक हिंसा का शिकार होती हैं।
घरेलू हिंसा के कारण:
घर के अंदर महिलाओं को प्रताड़ित करना कोई नई बात नहीं है।ये सिलसिला तब से चला आ रहा जब से पुरुष प्रधान समाज हैं।घरेलू हिंसा का सबसे बड़ा कारण यही है।अधिकतर मामलों में या तो महिला अपने पति से प्रताड़ित होती है या पति के घर वालो से।इसका कारण है पारिवारिक हिंसा देखना।यानी जो व्यक्ति ने पहले अपने परिवार में होते हुए देखा है वो भी वही करेगा।लोगो में शिक्षा का निम्न स्तर होना भी महिलाओं के साथ बढ़ रही प्रताड़ना का कारण है।घरेलू हिंसा में सबसे अधिक दहेज से जुड़े मामले सामने आते है।NCRB ( national crime record bureau) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 में 8,331 दहेज के केस रजिस्टर किये गए थे वहीं 2012 में 8,233 केस रजिस्टर किये गए।इतना ही नहीं साल 2017 में दहेज के लिए होने वाली 7000 मौत दर्ज की गई हैं।
घरेलू हिंसा के महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव:
भारत अकेला ऐसा देश नहीं जहां महिला घरेलू हिंसा जैसी समस्या का सामना करती है।पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान ऐसे देश हैं जहां सर्वाधिक मौत दहेज के लिए होती हैं। इस प्रकार की प्रताड़ना महिलाओं को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से प्रभावित करती है।महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और एचआईवी जैसी गंभीर बीमारी होने का डर भी लगा रहता है।
सोच में बदलाव लाना होगा:
राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख दी लल्लन टॉप से हुई बातचीत में कहती हैं।”वो कहती है कि घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले समाज का फेलियर होना दर्शाते हैं।आज भी एक ओर मां-बाप अपनी बेटी को चुप होना सिखाते है तो दूसरी तरफ महिलाओं की शिकायतो को तव्वजो नहीं दी जाती बल्कि उन्हें कोम्प्रोमाईज़ करने को कहा जाता है।ये सब तभी खत्म हो सकता है जब कानूनों को सख्त किया जाएगा,शिकायतों को सुना जाएगा।घरेलू हिंसा को बढ़ावा देने वालो को कड़ी सज़ा हो।पुलिस अपना काम ईमानदारी से करे यहां सोच में बदलाव लाने की ज़रूरत है।जहां सामाजिक स्तर पर महिलाओं को बराबर समझा जाए।