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टैगोर और अल्लामा इक़बाल को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे "दिनकर"

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जिन्होंने ने हिंदी साहित्य में न सिर्फ वीर रस के काव्य को एक नयी ऊंचाई दी, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का भी सृजन किया.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले में हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की. इसके अलावा उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का अध्ययन किया था.
रामधारी सिंह दिनकर को क्रांतिकारी कवि भी माना जाता है.दिनकर ने अपनी ज्यादातर रचनाएं ‘वीर रस’ में कीं.उनके बारे में कहा जाता है कि भूषण के बाद दिनकर ही एकमात्र ऐसे कवि रहे, जिन्होंने वीर रस का खूब इस्तेमाल किया. वह एक ऐसा दौर था, जब लोगों के भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना जोरों पर थी. दिनकर ने उसी भावना को अपने कविता के माध्यम से आगे बढ़ाया.इसीलिए उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा गया.
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वर्ष 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया. वे 12 सालों तक लगातार तीन बार राज्यसभा सांसद रहे. वहीं, 1965 से 1971 तक दिनकर भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे. वे अल्लामा इकबाल और रवींद्रनाथ टैगोर को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे. दिनकर ने टैगोर की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद भी किया.
दिनकर का पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश’ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की. उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘उर्वशी’ हैं.
वर्ष 1959 में उन्हें भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. जाकिर हुसैन ने दिनकर को डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया. वहीं, साल 1972 में उन्हें कविताओं के लिए हिंदी साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ सम्मान भी दिया गया. 24 अप्रैल, 1974 को रामधारी सिंह दिनकर का देहावसान हो गया. उनके सम्मान में भारत सरकार ने साल 1999 में डाक टिकट भी जारी किया था.

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