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क्या पूरे डिब्बे में एक भी शख़्स ऐसा नहीं था जिसमें इंसानियत बाक़ी थी – शहज़ादा कलीम
ख़ामोशी तो अब तोड़नी पड़ेगी… क्योंकि इंसानियत अब मर चुकी है… कहाँ हैं फेसबुक पर नफ़रतों से भरे मुल्ला और कटुवा कहकर ग़ाली देने वाले लोग…...