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कविता – मुझे कागज़ की अब तक नाव तैराना नहीं आता
तुम्हारे सामने मुझको भी शरमाना नहीं आता के जैसे सामने सूरज के परवाना नही आता ये नकली फूल हैं इनको भी मुरझाना नही आता के चौराहे...