बात माँ की होती तो अखलाक की बीवी, नोमान जिसे हिमांचल में मार दिया उसकी माँ, मुसतैन जिसे सहारनपुर मे मार दिया उसकी माँ, मजलुम अंसारी जिसे झारखंड में फांसी पर लटका दिया उसकी बेवह बीवी, छोटु जिसे झारखंड में फांसी पर लटका दिया उसकी माँ, मंदसौर रेलवे स्टेशन की वो दो महिला, मेवात की रशीदन और आयशा जिसे बुरी तरह मारा और उनकी दो नाबालिग बच्चियों के साथ उनके सामने गैंगरेप किया, और पहलु खान की बीवी में तुम्हें किसी की माँ जरुर दिखाई देती।
अरे बात माँ की होती तो संगीत सोम को वोट नहीं चोट देते, गोवा का वर्ल्ड वाइड प्रमोशन रोक देते, केरल के उस मंत्री की चमड़ी उधेड़ देते जो बुचड़खाने के नाम पर वोट मांग रहा, रिशी कपुर, किरण रिज्जु इत्यादी को जेल करवा देते, भारत की चार सबसे बड़े कत्लखानों जिनके मालिक ब्राह्मण हैं उन्हे सड़क पर ला खड़ा करते और उनके कम्पनी पर ताला लगवा देते, 30 साल बाद चर्बी निर्यात पर से पाबंदी हटाने का विरोध करते, गाय काटने की मशीन पर सबसिडी का विरोध करते, गाय के बेचे जाने का विरोध करते, गौशालाओं में मर रही गायों की देखरेख हेतु कार्य करते, सड़क पर आवारा घुम रही और कुड़ा कचरा खा रही गायों को घर ले जाते और उसकी सेवा करते, गौतस्करी का गोरख धंदा जो की बड़े पैमाने पर कई राज्यों में चलता है उसे रोकने के लिए प्रशाशन पर जोर डालते नाकी मजबूर को पीट पीटकर मार डालते, जेएन मिश्रा को घसीटते जिसके पास से गायों के कंकाल मिले, और सबसे अहम अपने-अपने घरों में गाय के लिए अलग से एक घर बनाते जिसमें माता के सुख सुविधा का सारा प्रबंधन होता , माता के लिए अलग से शौचालय बनवाते जिस्से गौमूत्र एकत्रित करने में आसानी होती।
और जहाँ तक बात सरकार की है तो मामला गाय में आस्था का है ही नही बल्कि मामला गाय के नाम होने वाले सियासत का है, ढोंग का है। हुकुमत को किसने रोका है गौहत्या के खिलाफ सख्त कानून बनाकर पुरे भारत में बीफ बैन और सारे कत्लखानों को सील करने से ? जबकि आज से 500 साल पहले बाबर से लेकर टीपू सुल्तान के दौर ए हुकूमत में गोहत्या करने वालों के लिए फांसी से लेकर हाथ काटने जैसी सजा थी फिर भी एक भी मामला नहीं मिलता है उस दौर में गोहत्या का। मिलेगा भी कैसे क्योंकि उनकी नियत इंसाफ करने की थी। अपने अवाम में अमन कायम करने की थी ना की आज की तरह लाशों पर सियासत करने की की, सत्ता के लिए साम दाम डंड भेद अपनाते हैं चाहे उसके लिए दंगे फसाद ही क्यू न करवाना पड़े।
ध्यान से सुनिए आपको माँ से प्रेम नहीं मुसलमानों से खुन्नस है, आपका मकसद गाय की हिफाजत नहीं मुसलमानों को मारना पीटना है, हाँ मैं साबित कर दूंगा इस बात को की आप मुस्लिमों से किस कदर नफरत करते हो , जब किसी आतंकियों की विडियो आता है किसी पर जुल्म करते हुए तो आप की भावना आहत हो जाती है लेकिन जब सीरिया से लेकर भारत के गौरक्षकों की विडियो सामने आती है तो आप खुश होते हो, आप को दिली तसल्ली मिलती है, आपकी भावनाएं उस समय आहत नहीं होती। तो हम क्यो न कहें की आप एक वर्ग विशेष के लिए अपनी सोच को कठोर करते जा रहे हैं,
वक्त है बचा लिजिये गंगा जमुना तहजीब की उस मिसाल को जिसपर कभी पुरे देश को गर्व था, जिस देश के मदरसे स्कुलों और आश्रमों में गंगा जमुना संस्कृति का पाठ पढाया जाता था आज वही तहजीब सड़कों पर लहू लहान पड़ा है, वही तहजीब चीत्कार रही है अपनी अस्मिता के लिए हो सके तो बचा लिजिए। वर्ना तैय्यार हो जाइए न सिर्फ मुसलमानों के कातिल कहलाने के लिए बल्कि गंगा जमुना संस्कृति के भी कातिल कहलाने के लिए ।
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