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सत्ता और कार्पोरेट मीडिया हर जनपक्षधर आवाज को संदिग्ध बना देना चाहती है

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सत्ता के भी षड्यंत्र का जवाब नहीं! फासिस्ट सत्ता हर उस आवाज को दफन कर देना चाहती है, जो सत्ता की पोल-पट्टी खोलती हो और गरीब-मजलूम जनता के पक्ष में आवाज बुलंद करती हो। षड्यंत्रकारी सत्ता इसमें नीचता की तमाम हदें पार कर रही है। जनता को सुरक्षा, सम्मान व रोजी-रोटी देने में नाकाम सत्ता जनता की नजर में संदिग्ध हो रही अपनी छवि को बचाने के लिए हर जनपक्षधर आवाज को संदिग्ध बना देना चाहती है।

पूरे देश में आज फासीवादी कॉरपोरेटपरस्त रंग-बिरंगी सत्ता ने आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों व किसान-मजदूरों के खिलाफ खुला युद्ध छेड़ रखा है। इस युद्ध में कॉरपोरेट मीडिया पूरी तरह से सत्ता के साथ है। सत्ता के कारनामों पर पर्दा डालने और जनांदोलनों के खिलाफ साजिश में मुख्यधारा की मीडिया बढ़-चढ़कर रोल अदा कर रही है।
एक ताजा घटनाक्रम में झारखण्ड सरकार और केंद्र सरकार की खुफिया रिपोर्ट में इंसाफ इंडिया को सिम्मी की तर्ज पर उभरता हुआ संगठन बताया जा रहा है। मीडिया के हवाले से पता चल रहा है कि इंसाफ इंडिया के संयोजक Mustaqim Siddiqui को आतंकवादी की तरह पेश किया गया है। इससे पूर्व भी झारखण्ड के गोड्डा में पांच-सात लोगों की बैठक करने मात्र पर मुश्तकीम सिद्दीकी सहित सात लोगों पर संगीन धाराओं के तहत पिछले महीने मुकदमा दर्ज कर दिया गया। जल, जंगल, जमीन पर दुमका में जनजुटान आयोजित करने को लेकर आयोजित इस बैठक में शामिल लोगों पर देश की एकता-अखंडता तोड़ने व आईएसआईएस व माओवादी होने का आरोप मढ़ा गया था।
बता दें कि इंसाफ इंडिया ने पिछले कुछ दिनों में बिहार, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल में दलितों-अल्पसंख्यकों व महिलाओं के हिंसा-उत्पीड़न व बलात्कार की घटनाओं को अहिंसक-लोकतांत्रिक तरीके से उठाने का काम किया है। बिहार के नवादा में रामनवमी के वक्त बीजेपी सांसद-केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के इशारे पर हुई भगवा गुंडों व पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत से की गई साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ से लेकर बिहार-झारखण्ड के दर्जनों जगहों पर हुई इस किस्म की घटनाओं के खिलाफ इंसाफ इंडिया के संयोजक मुखर रहे हैं। हाल के दिनों में जारी मॉब लिचिंग व साम्प्रदायिक आधार पर नफरत फैलाये जाने के खिलाफ भी इंसाफ इंडिया सक्रिय रहा है। यही इनका गुनाह है। सत्ता और उसकी पूरी मिशनरी लोकतंत्र को कैसे संचालित कर रही है? इससे भली-भांति समझा जा सकता है।
अब आप समझिये कि सत्ता गौ-आतंकियों और साम्प्रदायिक नफरत-हिंसा के सौदागरों को खुली छूट दे रही है और इसके खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से इंसाफ की आवाज बुलन्द करने वालों के खिलाफ किस किस्म का षड्यंत्र कर रही है! इस षड्यंत्र को समझने और इसके खिलाफ खड़े होने की जरूरत है, नहीं तो यह लोकतंत्र उन्नत होने की दिशा में जाने के बजाय पतित होकर पतन के गर्त में चला जायेगा और बारी-बारी से नागरिकों के तमाम नागरिक अधिकार कुचल दिए जाएंगे, अपहृत कर लिए जाएंगे!