संजीव भट्ट का मुक़दमा और जस्टिस काटजू का एक लेख

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संजीव भट्ट गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं जिन्हें गुजरात सरकार ने सेवा से बर्खास्त कर दिया है। संजीव गुजरात के उन पुलिस अफसरों में हैं जिन्होंने 2002 के गुजरात दंगो में एक प्रोफेशनल पुलिस अफसर के रूप में दंगाइयों से लोहा लिया और कानून व्यवस्था बनाये रखने की कोशिश की। पर पुलिस का यह ईमानदार प्रोफेशनलिज़्म सरकार को रास नहीं आया। वे सरकार के आंख की किरकिरी बन गए। अंततः सरकार ने प्रतिशोध वश उन्हें घेरना शुरू कर दिया। पहले उनकी सुरक्षा हटायी फिर, निलंबन और अंत मे उन्हें बर्खास्त कर दिया। 22 साल पुराने एक मामले में वे अभियुक्त के रूप में जेल में हैं। उनकी जमानत सेशन कोर्ट से खारिज हो गयी है और अब हाईकोर्ट में लंबित है। जमानत पर सुनवायी चल रही है।
यह पोस्ट मूलतः जस्टिस #मार्कण्डेयकाटजू की है। पोस्ट का शीर्षक है, जक्यूज़, यह फ्रेंच भाषा का शब्द है , ( इसका उच्चारण लिखने में गलतीं हो सकती है ) जिसका अर्थ हुआ, मैं आरोप लगाता हूँ। आई एक्यूज़, ( I accuse ) इस वाक्य का भी एक इतिहास है। जो रोचक और इस प्रकार है।
अल्फ्रेड ड्रेफस फ्रांस के तोपखाना में एक अधिकारी था। जो यहूदी था। उसे देशद्रोह के एक फ़र्ज़ी आरोप में सेना से बर्खास्त कर दिया गया और जेल भेज दिया गया। उसके खिलाफ मुकदमा चला। यह ट्रायल फ्रेंच इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण ट्रायल में से एक है। अंत मे उस पर लगाए गए सारे आरोप झूठे पाये गये और वह दोषमुक्त कर दिया गया। यह प्रकरण यूरोपीय इतिहास में ड्रेफस अफेयर के नाम से प्रसिद्ध है।
यह शब्द, 13 जनवरी 1898 को लिखे गए एक खुले पत्र जिसे प्रसिद्ध फ्रेंच साहित्यकार एमिल ज़ोला ने लिखा था से लिया गया है। इसी नाम से यह पत्र छपा था। यह पत्र फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्लेक्स फॉर को सम्बोधित था। एमिल ज़ोला ने फ्रेंच सरकार को यहूदी विरोधी मानसिकता से प्रेरित होकर अल्फ्रेड ड्रेफस के विरूद्ध दुर्भावनपपूर्ण कार्यवाही करने का दोषी ठहराया है। ड्रेफस देशद्रोह के मामले में जेल में बंद थे। एमिल ने की अभियोजन की गलतियां प्रस्तुत की और यह बताया कि अभियोजन के सुबूत ड्रेफस के खिलाफ नहीं है। जब यह मामला बहुत उछला तो फ्रेंच सरकार ने एमिल ज़ोला के खिलाफ लोगों के भड़काने के आरोप में  कार्यवाही शुरू कर दी। ज़ोला के खिलाफ मुकदमा चलाया गया और उन्हें दोषी घोषित किया गया। इसके बाद वे फ्रांस से भाग कर इंग्लैंड चली गयी। लेकिन तब तक फ्रांस के जनमानस में ड्रेफस के पक्ष में माहौल बन गया था। लोगों ने ड्रेफस के प्रति न्याय करने आए ज़ोला को प्रताड़ित न करने के समर्थन में आवाज़ उठानी शुरू कर दिया।  यह शब्द आक्रोश और सरकार के प्रति असंतोष के अभिव्यक्ति का एक प्रतीक बन कर यूरोप में प्रसिद्ध हो गया।
उसी शीर्षक से जस्टिस काटजू ने संजीव भट्ट की गिरफ्तारी और मुकदमे के बारे मे अपनी बात कही है। अब आप जस्टिस मार्कण्डेय काटजू की पोस्ट पढें
J’accuse
‘ J’accuse ‘ ( I accuse ) was the name of the letter( see online ) sent in January 1898 by the famous French writer Emile Zola to the French President accusing the French Govt  and Army for jailing Capt Dreyfus ( see online ) in Devils Island for several years on the false charge of espionage merely because he was a Jew. Capt Dreyfus was subsequently exonerated, as the evidence on which he had been convicted earlier was found to have been fabricated.
Similarly, J’accuse is the name of this post too, and it is directed against all those involved in hounding and victimising the brave upright police officer Sanjiv Bhatt who is still incarcerated.
Sanjiv Bhatt was an IPS officer of 1988 batch, and his batch mates are Inspector Generals of Police. He gave an affidavit in the Supreme Court that in a meeting held on 27.2.2002 in Ahmedabad, which he attended, the then Chief Minister of Gujarat Narendra Modi told police officials to let Hindus vent out their anger against Muslims, and this led to massacre of Muslims in 2002. This affidavit has led to Bhatt’s hounding ever since.
However, the recent statement of retired Lt.Gen. Zameeruddin Shah that his soldiers were kept at Ahmedabad airport and not allowed to enter the city to stop the massacre goes to corroborate this.
The Supreme Court appointed a SIT to investigate the Gujrat incidents of 2002, but its head, R.K.Raghavan hardly spent any time in Gujarat and yet gave a finding that Bhatt was not present in the meeting. However, the amicus curiae appointed by the Court, Raju Ramchandran, Senior Advocate, gave a contrary finding.
Bhatt’s allegation about inaction by the Gujarat police in stopping the massacre was corroborated by K.S.Subramaniam, member of the fact finding team headed by former Supreme Court Judge Justice Krishna Iyer.
Bhat was dismissed from service on the absurd charge of absence without leave when he had only gone to attend the Nanavati Commission which had summoned him.
He was accused of a charge of an alleged incident 22 years old ( of fabricating evidence of having narcotics ) and was arrested on 5th September 2018, and since then has been in jail. His bail application before the District Court was kept pending for 3 months, and was then dismissed.
On 12.12.2018 he moved a bail application before the Gujarat High Court, which was listed before Justice Kokje on 19.12.2018 who ordered ‘ Not before me ‘. It was then listed on 21.12.2018 before Justice SH Vora who issued notice. Then it was listed on 8.1.2019, 10.10.2019 and 11.1.2019 before Justice Sonia Gokani, who has now listed it tomorrow i.e. 15.1.2019. Bhat has thus already spent 4 1/2 months in jail.
His wife Shweta contacted me, and I told her not to worry. Satyamev Jayate. Her husband is a brave upright officer, and will come out of this ordeal with flying colours and his honour restored, like Capt Dreyfus.
And shame on those who hounded him, and on those of his colleagues who did not support him.
( justice Markancey Katju )