अम्बेडकर के समय में देश में कांग्रेस थी, वामपंथ था, संघ भी था। अम्बेडकर की इन तीनों से मतभेद थे। लेकिन अम्बेडकर अपनी असहमति के साथ कांग्रेस के मंच पर जाया करते थे, कम्युनिस्टों के प्रोग्राम में भी जाकर अपनी बात रखते थे। लेकिन इसका कहीं भी प्रमाण नहीं मिलेगा कि बाबा साहेब आरएसएस के किसी प्रोग्राम में भाग लिए हों। संघियों को तो देखकर बाबा साहेब अपना रास्ता तक बदल लेते थे।
फ़ासिस्ट ताक़तों से वाद विवाद तो छोड़िए इनसे मुँह लगाना तक पसंद नहीं करते थे एवं अपनी आने वाली नस्लों से हमेशा इनको लेकर आगाह करते थे।
जिस संगठन का बुनियाद ही दलित-पिछड़े-अल्पसंख्यक एवं तमाम मूलनिवासियों के विरोध पर टिका हो उसके साथ वाद-विवाद करना एवं उनके मंच पर जाना भी बाबा साहेब अपराध मानते थे।
पर आजख़ुद को बाबा साहेब का सच्चा अनुयायी कहने वालों ने अम्बेडकरवाद की पूरी थीसिस कोदफ़्न कर दिया, अम्बेडकर के बताए हुए तमाम नसीहतों को पोटली में बाँधकरकिसी बरगद के पेड़ पर टाँग दिया है। ये दौर फ़र्ज़ी अम्बेडकरवादियों से भरा हुआ हैजहाँ अपने फ़ायदे के लिए लोग पूरे दलित मूवमेंट के साथ सौदा कर लेते हैं।
जेएनयू के प्रोफेसर डॉक्टर विवेक कुमार का एक बार फिर से फ़ोटो वायरल हो रहा है जिसमें वे संघ के किसी प्रोग्राम में भाग लिए हैं और वहाँ बतौर स्पीकर बोले भी हैं। प्रो विवेक कुमार सही हैं या ग़लत, ये मैं नहीं जानता। लेकिन अगर विवेक कुमार संघ के मंच पर जाकर भी खुद को अम्बेडकरवादी होने का दावा कर सकते हैं तो संघ के इशारे पर वो दलित नौजवान जो दंगा करने के लिए सबसे अगली पंक्ति में खड़ा रहता है अगर वो भी अपने आप को अम्बेडकरवादी कहता है तो उसे ग़लत नहीं समझना चाहिए। क्योंकि उस दलित नौजवान के पथप्रदर्शक प्रो विवेक कुमार जैसे लोग ही हैं।