कुछ दिन पूर्व मोहन भागवत के द्वारा हिन्दुत्व की परिभाषा के बाद सनातनी हिंदुत्व और संघी हिंदुत्व पर बहस चल पड़ी है। एक हिंदुत्व सामान्य हिंदुत्व है ,जिसमे साधारण तरीके से लोग अपनी मर्ज़ी से ,अपनी पसंद से अपने , अपने प्रदेश की भाषा , संस्कृति , खान , पान और रीति रिवाज पर चल रहे हैं।
दूसरा संघी ब्रांड हिंदुत्व है , जो सत्ता की कुर्सीयों तक ले जाता है और इस हिंदुत्व का राजनीतिकरण हुआ है। इसके प्रतीकों और त्योहारों का अपहरण और दुरुपयोग हुआ है। राम जो हमेशा से मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे और सभी के प्रिय थे उनकी ब्रांडिंग करके भगवावादी जय श्री राम बना दिया गया और अब उनकी एक ख़ास तस्वीर पेश करने की कोशिश करते हुए, उन्हें अन्य समुदायों के विरोध का प्रतीक बनाने की कोशिश की जाती है।
सियासी और भगवावादी फासिस्ट हिंदुत्व ने तरह , तरह के विवाद को जन्म दिया ।कभी भाषा के नाम पर हिंदी , उर्दू का झगड़ा पैदा किया तो कभी लव जिहाद , घर वापसी , चार बीवी , चालीस बच्चे जैसा फ़र्ज़ी मुद्दा तो भगवा सियासत के ज़रिये भाजपा को कामियाब बनाने और संघी विचारधारा के फैलाव के लिए और तमाम सरकारी संस्थाओं के संघीकरण के लिए राम मंदिर , बाबरी मस्जिद विवाद को जन्म दिया गया।
मुसलमानो को राष्ट्रद्रोही और हिंदुओं का दुश्मन साबित करने की मुहिम चलाई जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में डिबेट के ज़रिये मुसलमानो के खिलाफ खूब ज़हर घोला जा रहा है। और अब तो मुस्लिम नाम के शहरों और इमारतों को भी निशाना बनाया जा रहा है। ताज़ा मामला ताजमहल का है। सनातनी हिंदुत्व से किसी को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन संघी ब्रांड हिंदुत्व से सिविल वॉर का और दो समुदाय में विभाजन का खतरा पैदा हो गया है।
संघ जो हिंदुत्व की बात प्रस्तुत करता है, उसका मकसद सनातन धर्म का प्रचार न होकर संघ की राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने वाली परिभाषा पर लोग हिंदुत्व का अर्थ निकालें. ताकि ध्रुवीकरण की राजनीति के द्वारा सत्ता सुख भोगा जाए. याद रहे, संघ के द्वारा पेश की जाने वाली धर्म की परिभाषाओं में और धर्म की सनातनी परिभाषा में बहुत अंतर है.
क्या धर्म के राजनीतिकरण से वास्तविक सनातन हिंदू धर्म को लोग भूल नहीं गए हैं ? अब उसे धर्म बताकर प्रस्तुत किया जाता है. जिसे संघ हिंदुत्व का हिस्सा बता दे.
ज़रा सोचियेगा. आप सनातनी हैं, या संघी?
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