अंतिम यात्रा की भीड़ और मन की शांति का सम्बंध

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मरने वालों को यह बात यकीनन सांत्वना देती है कि उनके अंतिम संस्कार में हज़ारों की भीड़ जमा होगी। यह एक अनोखा मनो अनुभव है। मरने वाले के परिजनों को भी यह बात कुछ शांति पहुंचाती है कि उनके अपने की अंतिम यात्रा में हज़ारों की भीड़ थी। उनके दुःख के हज़ारों सांझा हैं। उन्हें यह बात वाक़ई शांति देती है। अंतिम यात्रा में हज़ारों या लाखों की संख्या परिजनों को दुःख की जगह गर्व का अनुभव करवाती है। मैं कई ऐसे लोगों से मिला हूँ जिन्होंने मुझे बताया कि, “उनके कितने चाहने वाले थे, देखो ना हज़ारों लोग उनकी अर्थी को कंधा देने के लिए आए थे।” यह कहते हुए उनकी आँखों में अजब सी चमक होती थी। मैं देखता था कि उन्हें दुःख तो था लेकिन अपने परिजन पर गर्व भी था। गर्व का यह अनुभव उनके दुःख को बहुत कम कर देता था।

मैं बचपन में एक फ़िल्म का गाना देख रहा था, “न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफ़ी तू बहुत याद आया।” इस गाने में उनके जनाज़े की क्लिपिंग्स भी दिखाई जा रही थी। उसमें जहाँ तक नज़र जा रही थी वहां तक लोग थे। उस वक़्त जितने भी लोग मेरे साथ थे सब कह रहे थे, “देखो तो कितने लोग हैं उनके जनाज़े में। वे वाक़ई एक महान गायक और बेहतरीन इंसान थे। नहीं तो क्या इतने लोग आते?” मुझे वह बातें बड़ी अच्छी लगीं कि कुछ ऐसा करना चाहिए जीवन में जिससे हमारी मृत्यु पर कई लोगों की आँखें नम हो जाए और जनाज़े में हज़ारों लोग हो।

लेकिन दुनिया ने 180 डिग्री का मोड़ लिया। कोरोना आया। एक ऐसा वायरस जो बेहद संक्रामक है। इससे डरे हुए लोग और सरकारें संक्रमण से बचने के लिए लोगों को इकट्ठा करने से रोक रहे हैं। इसमें अंतिम यात्रा में लोगों के शामिल होने पर भी प्रतिबंध लगाया। अब केवल 20 लोग ही शामिल हो सकते हैं किसी भी व्यक्ति की अंतिम यात्रा में। चाहे अमीर हो या ग़रीब, चाहे महान हो या आम, चाहे नेता हो या कार्यकर्ता, चाहे आम हो या खास… सबकी अंतिम यात्रा में बस 20 लोग! यह नियम सबको पालन करना है।

लोगों में कोरोना से बेइंतहा डर की एक बड़ी वजह यह भी है कि यदि उन्हें दुर्भाग्य से इसका संक्रमण हो गया और मृत्यु हो गई तो उनका अंतिम संस्कार कैसे होगा? क्या उन्हें लावारिस पटक दिया जाएगा? क्या उनके शव से सब डरेंगे और दूर से ही कब्रों में लुढ़का देंगे? उनकी चिताओं को अग्नि कैसे दी जाएगी? उनके परिजन लेने आएंगे भी कि नहीं उनकी लाश को? उनके अच्छे कर्मों और संबंधों का क्या कोई याद रखेगा जब मेरी अंतिम यात्रा में ही लोग नहीं आएंगे तो? क्या मैं बहुत जल्दी भुला दिया जाऊंगा? क्या 20 लोग भी इकट्ठा हो पाएंगे मेरी अंतिम यात्रा में?

दुनिया में अब भी अधिकांश लोग मृत्यु के बाद होने वाली बातों से डरते हैं। उनकी मृत देह के साथ क्या सुलूक किया जाएगा इसकी उन्हें हमेशा फिक्र रहती है। मैंने कई लोगों को डर भरे अंदाज़ में यह कहते सुना है कि, “पता नहीं कब्र या चिता मेरे नसीब में है भी कि नहीं।” मृत देह के साथ हुए बुरे बर्ताव ने इतिहास में कई युद्धों को जन्म दिया है। यदि किसी व्यक्ति को यह पहले से पता चल जाए कि उसकी अंतिम यात्रा में हज़ारों का हुजूम होगा तो यक़ीन मानिए उसके मरने की पीड़ा कम हो जाएगी। अंतिम यात्रा की भीड़ को मृत व्यक्ति के जीवन की सार्थकता की मुहर माना जाता है। ईश्वर करे यह सब जल्दी खत्म हो और फिर से जीवन के साथ साथ लोगों की मृत्यु भी गौरवपूर्ण हो जाए। सबके दिलों से डर खत्म हो जाए मृत्यु का और मृत्यु के बाद का।

~डॉ अबरार मुल्तानी

लेखक और चिकित्सक

 

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