“वरना कुछ लोगों का आपने देखा होगा, उनकी एक फोटू आप नहीं निकाल सकते हैं किसी उद्योगपति के साथ लेकिन एक देश का उद्योगपति ऐसा नहीं है जिन्होंने उनके घरों में जाकर षाष्टांग दंडवत न किए हों, ये अमर सिंह यहां बैठे हैं, सारा हिस्ट्री निकाल देंगे। लेकिन जब नीयत साफ हो, इरादे नेक हों तो किसी के साथ भी खड़े होने से दाग नहीं लगते हैं, महात्मा गांधी का जीवन जितना पवित्र था, उनको बिड़ला जी के परिवार के साथ जाकर रहने में कभी संकोच नहीं हुआ। बिड़ला जी के साथ खड़े रहने में कभी संकोच नहीं हुआ। नीयत साफ थी। जिन लोगों को पब्लिक में मिलना नहीं है, पर्दे के पीछे सब कुछ करना है वो करते रहते हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान इस बात का क्लासिक उदाहरण है कि राजनीति में अब आरोप और जवाब दोनों ही पुराने हो चुके हैं। कोई आरोप लगाइये तो याद आता है कि पहले भी किसी पर लग चुका है, कोई जवाब दीजिए तो याद आता है कि पहले भी किसी ने ऐसा जवाब दिया है। लखनऊ में निवेशकों के सामने प्रधानमंत्री के बयान के इस टुकड़े के बहाने मुझे भी कुछ याद आया। इंटरनेट पर काफी खोजा मगर एक मित्र की मदद से एक दूसरे बयान का टुकड़ा मिल गया जो बीजेपी के ही एक नेता ने इसी तरह के संदर्भ में कभी कहा था।
प्रधानमंत्री मोदी ने साढ़े चार साल बाद यह जवाब खोजा है कि वे उद्योगपतियों के साथ खुले में मिलते हैं। फोटो खींचाते हैं। उनकी नीयत साफ है। गांधी जी की तरह नीयत साफ है। गांधी जी भी बिड़ला जी के साथ जाकर रहते थे क्योंकि उनकी नीयत साफ थी। बिड़ला जी और अदानी जी और अंबानी जी की तुलना हो सकती है या नहीं हो सकती है इसका जवाब एक लाइन में नहीं दिया जा सकता है। मगर बिड़ला जी और गांधी का उदाहरण देते ही मेरे दिमाग में कुछ ठनक गया। ठीक इसी तरह का बयान बीजेपी के एक नेता ने दिया था। मुझसे ही बात करते हुए दिया था।
2003 का साल था। इंडिया टुडे ग्रुप और एक्सप्रेस ने दिलीप सिंह जूदेव का स्टिंग किया था। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे। उनका एक बयान ख़ूब छप रहा था कि पैसा ख़ुदा तो नहीं मगर ख़ुदा से कम भी नहीं। इसी विवाद के संदर्भ में जूदेव मेरे साथ बात कर रहे थे। रायपुर में अपने स्टाइल से मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहते चले गए। वो हिस्सा पहले पढ़िए। हिन्दी वाला मूल बयान तो नहीं मिला मगर इंटरनेट पर इसका अंग्रेज़ी अनुवाद मिल गया जिसका मैं फिर से हिन्दी अनुवाद कर पेश कर रहा हूं।
” आपको धर्मांतरण रोकने के लिए सेना की ज़रूरत होगी। चुनौतियां आ सकती है और समय भी कम है । मान लीजिए कोई रसद देता है, इसे ग़लत समझा गया है। उसका बिल कौन भरेगा। जब चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह लड़ रहे थे तब बिड़ला जी महात्मा गांधी के पास जाते थे। वो रसद कहां से लाते थे। ( 18 नवंबर के इंडियन एक्सप्रेस में छपा है)
दिलीप सिंह जूदेव भाजपा के सांसद थे और तब मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में उनका नाम लिया जाता था। अब इस दुनिया में नहीं है। मैं पहली बार चुनाव कवर करने गया था। जूदेव के इस बयान के बाद काफी हंगामा मचा था और वे नाराज़ हो गए थे मगर तब तक देर हो चुकी थी। हमारे चैनल पर उनका यह बयान तेज़ी से छा गया था।
प्रधानमंत्री मोदी पर राहुल गांधी ने जब सूट बूट की सरकार का आरोप लगाया था तब सूट उन्होंने ही पहना था, राहुल गांधी ने नहीं। उस सूट पर उनके नाम लिखे थे। इतनी जल्दी एक नेता के लिए नाम वाला सूट मटीरियल बन जाए और सिल जाए, कमाल की बात है। ये शौक की बात है या ख़ास संबंध की, इतिहास कभी नहीं जान पाएगा क्योंकि प्रधानमंत्री कभी बताएंगे नहीं। वो इसलिए उन्हें कोई हरा नहीं सकता और 2024 तक वे ही प्रधानमंत्री हैं। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बोलते हुए उन्होंने ऐसी ही बात कही थी।
प्रधानमंत्री की वो सूट नीलाम कर दी गई। राहुल गांधी ने आरोप ही लगाया था कि सूट बूट की सरकार है, मगर इतना असर हो गया कि दोबारा उस सूट की बात कभी नहीं हुई। आज के जवाब के हिसाब से उन्हें अपने उस ख़ास सूट की नीलामी नहीं करनी चाहिए थी। जब नमो ब्रांड के कुर्ता और जैकेट बन सकता है तो नमो लिखा हुआ सूट प्रधानमंत्री क्यों नहीं पहन सकते हैं। सूट पहनकर वे पर्दे के पीछे नहीं थे, सबके सामने आए थे। बराक भी बगल में थे।
प्रधानमंत्री लखनऊ वाले इस भाषण में अमर सिंह को साक्षी बनाया है। अमर सिंह इतने प्रासंगिक तो है हीं जो प्रधानमंत्री की सभा में बैठे हैं, जो एक टीवी इंटरव्यू में खुलकर कहते हैं कि मैं दलाल हूं। दलाल। मैं हतप्रभ रह गया था। उन आदरणीय अमर सिंह को साक्षी बनाकर प्रधानमंत्री कहते हैं कि अमर सिंह यहां बैठे हैं, सबकी हिस्ट्री निकाल देंगे। इसी तरह से उन्होंने मुंबई में मेहुल भाई को साक्षी बनाया था। जो अब एंटीगा के नागरिक बन चुके हैं। प
प्रधानमंत्री बता रहे थे कि खरीदार बड़े सुनाकर से ख़रीदने के बाद भी अपने गांव के सुनार से चेक कराता है। बैंक पर भरोसा नहीं करता और सामने बैठे मेहुल भाई की तरह इशारा करते हुए कहते हैं कि “हमारे मेहुल भाई यहां बैठे हैं लेकिन वो जाएगा अपने सुनार के यहां। ” अमर सिंह और मेहुल भाई को साक्षी बनाकर बात कहने का खेल प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं। ये खेल उन्हीं को आता है।
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी ने उन पर भागीदार होने के आरोप लगाए हैं। वे आरोप हैं रफाएल डील के ठीक पहले अनिल अंबानी अपनी कंपनी बनाते हैं और उस कंपनी को हज़ारों करोड़ का करार मिलता है। इसलिए रफाएल लड़ाकू विमान का दाम नहीं बताया जा रहा है। राहुल के आरोपों के संदर्भ में माल्या,नीरव मोदी, मेहुल चौकसी भी हैं। राहुल ने कहा कि चौकीदार भागीदार हो गया है।
प्रधानमंत्री इसका सीधा जवाब दे सकते थे। मगर उनके मन में कहीं अपराध बोध होगा कि उद्योगपतियों के साथ उनके संबंध को लेकर तंज कसा जाता है। उद्योगपतियों के साथ या एक दो उद्योपति के साथ तंज होता है, ये आप जानते हैं। मगर एक दो उद्योगपतियों के साथ दिखने और उन पर मेहरबान होने को लेकर होने वाले तंज को ख़ूबसूरती से बदल देते हैं। वे इस तरह से पेश करते हैं जैसे विपक्ष यह कहता हो कि प्रधानमंत्री को उद्योगपतियों के साथ दिखना ही नहीं चाहिए।
इन आरोपों का जवाब न देकर प्रधानमंत्री अपनी छवि को गांधी और बिड़ला जी के संबंधों की छवि के पास ले जाते हैं। सवाल है कि सड़क पर गड्ढे क्यों हैं, जवाब में मोदी जी कह रहे हैं कि पहले चांद देखो। वो देखो चांद। विपक्ष उस दाग़ को गड्ढे बता रहा है। असली सवाल से नज़र हटाने में उनका कोई सानी नहीं। उन्होंने यह कह दिया कि वे उद्योगपतियों से सबके सामने फोटो खींचाने से परहेज़ नहीं करते मगर सवाल तो कुछ और था। उस सवाल का जवाब देते तो शायद उनका यह जवाब 15 साल पहले जूदेव के जवाब से जाकर न टकराता।
लेकिन इस क्रम में वे राहुल को जवाब नहीं दे रहे थे बल्कि दिलीप सिंह जूदेव का दिया हुआ जवाब 15 साल बाद दोहरा रहे थे। नियति सिर्फ हार और जीत के दिन नहीं होती, वो जीत के बाद भी अपना खेल खेलती रहती है। जूदेव भी गांधी और बिड़ला के संबंधों का ढाल की तरह इस्तमाल करते हैं और मोदी भी बिड़ला और गांधी के संबंधों का इस्तमाल करते हैं। जब भी बचाना होता है गांधी काम आ जाते हैं।
0