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राम-रहीम के समर्थकों की जगह मुस्लिम दलित या वामपंथी संगठन के लोग होते तो…

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बाबा राम रहीम के चेले भारत को नक़्शे से मिटाने की बात कर रहे हैं लेकिन इनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं होगी।

फोटो – डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा गुरमीत राम रहीम फ़िल्म MSG के एक सीन में


ना ही समाज में व्यापक ग़ुस्सा ज़ाहिर होगा, न ही गोदी मीडिया में इसपर डिबेट होगा।
जानते हो क्यों? क्योंकि बाबा राम रहीम ने इलेक्शन के वक़्त इन्हीं फ़र्ज़ी राष्ट्रवादियों का समर्थन किया था। और जितने चेले हैं इस बाबा के, अगर आप पता करोगे तो पाओगे कि सब के सब इन्हीं फ़र्ज़ी राष्ट्रवादियों की पार्टी के समर्थक निकलेंगे।
एक और बाबा था हरियाणा में जो अपने समर्थकों के साथ प्रशासन से दो दिन तक सशस्त्र लड़ाई लड़ा था। ऐसे जितने भी बाबा हैं सब क़ानून को जूते की नोक पे रखते हैं। इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता है।

फोटो – पूर्व मे हुई रामपाल के समर्थकों और हरयाणा पुलिस के बीच झड़प, इन्सेन्ट में पुलिस की गिरफ़्त में रामपाल


ख़ैर अब बात करते हैं जेएनयू की जहाँ के फ़र्ज़ी डॉक्टर्ड विडियो पर पूरा देश ग़ुस्से में आ गया था, संघी गोदी मीडिया खुले जंग का एलान कर दी थी। उन दिनों ये राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया था, हर कोई छात्रों को फाँसी पर चढ़ाने को तैयार था।
पर आज सब ख़ामोश हैं, या यूँ कहें कि इसमें मुस्लिम/वामपंथी का कोई ऐंगल नहीं मिल रहा है वर्ना आग लगा दिए होते, ख़ुद जज बनकर अबतक फ़ैसला सुना चुके होते।
ख़ैर मैं आजतक ये नहीं समझ पाया कि इस राष्ट्र की सामूहिक अंतरआत्मा किस धातु की बनी है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मैं किस बटखरे में तौलूँ?