राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदो का खुलासा अगर राजनीतिक दल यह बताते हुये नहीं करते हैं कि किस कंपनी या किस आदमी ने कितने पैसे कब कब दिये तो इन्हें चंदा मत कहिये, इन्हें प्रोटेक्शन मनी या रंगदारी टैक्स कहिये। यह टैक्स मूलतः माफिया गिरोहों के सरगना वसूलते हैं, और इसके एवज में धनपतियों को अपना कारोबार बिना किसी झंझट के चलने का आश्वासन देते हैं।
अगर राजनीतिक दलों को दलों की विचारधारा या समर्थन के उद्देश्य से लोग धन देते हैं तो उसका खुलासा करने में क्या दिक्कत है ? यह गोपनीयता क्यों है ? सभी को अपनी अपनी मर्ज़ी से राजनीतिक चंदा देने का अधिकार है और यह अधिकार संवैधानिक है। क्योंकि सभी राजनीतिक दल, निर्वाचन आयोग के अंतर्गत पंजीकृत हैं और यह संसदीय लोकतंत्र की एक स्थापित प्रक्रिया है। फिर ये राजनीतिक दल माफिया गिरोहों के समान आचरण क्यों कर रहे हैं ?
देश मे भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण राजनीतिक दलों की फंडिंग है। सभी कॉरपोरेट घराने और पूंजीपति सत्तारूढ़ दल को अधिक चंदा देते हैं। यह एक मानवीय स्वभाव है। जिन्हें जहां से लाभ होगा वही तो चंदा देंगे। कल कांग्रेस सत्ता में थी तो उसे चंदा मिलता था, आज भाजपा सत्ता में है तो उसे चंदा मिल रहा है। लेकिन दे कौन कितना रहा है यह न उन्होंने बताया कभी और न इन्होंने बताया। हालांकि कि पता सभी को है। जिस कॉरपोरेट घराने को सरकार की कृपा प्राप्त है, ज़ाहिर है वही सरकारी दल को चंदा दे रहा होगा।
जब से आपराधिक प्रवित्ति के लोग दलों के सिरमौर बनने लगे हैं, तब से यह राजनीतिक फंडिंग एक प्रोटेक्शन मनी या सुविधा शुल्क या रंगदारी टैक्स के रूप में हो गई है। इसीलिए कोई भी राजनीतिक दल पोलिटिकल फंडिंग की ऑडिट, और इसे आरटीआई के दायरे में लाने को राजी नहीं होता है। जिस दिन ने ये चुनावी सुधार लागू हो जाएंगे उसी दिन ने आधे लोगों का समाज सेवा का बुखार उतर जाएगा और भ्रष्टाचार में कमी आ जायेगी।