राजस्थान में अभी तक दो ही पार्टियों की सरकार रही है. फिलहाल सत्ता में भाजपा है और दूसरी तरफ कांग्रेस विपक्ष में है. आज हर किसी की जुबान से सुनने को मिलता है ,की राजस्थान की वसुंधरा सरकार पूरी तरह से हर मुद्दे पर विफल नज़र आई है. पर जो एक विपक्ष की जिम्मेदारी होती है, क्या कांग्रेस उस जिम्मेदारी को निभाती हुई भी नज़र आई है, इसका जवाब हैं “नहीं”.
विपक्ष को जो कार्य करना था,कांग्रेस उस कार्य को कहीं भी करती नज़र नही आई. एक केंद्रिय पार्टी का इस प्रकार से खामोश रहना कहीं न कही इस बात का संकेत देता है, की वो सरकार की नीतियों पर सहमत है और आज उनकी हालत क्या है.
राजस्थान में अगर हनुमान बेनीवाल और कॉमरेडों को छोड़ कर बात की जाये तो किसी ने भी विपक्ष की भूमिका नही निभाई है. एक केंद्रीय पार्टी ने तो होश भी नही सम्भाला. पर एक बात है,कांग्रेस ने नोटबन्दी के दिन को काला दिवस के रूप में जरूर मनाया जो मेरे हिसाब से सिर्फ एक नौटकी के अलावा कुछ नही था.
इस नौटंकी के अलावा विपक्ष हर बार हर मुद्दे पर सेंटर फ्रूट खाये हुए ही नज़र आया है. इसलिए अगर एक व्यक्ति बीजेपी को नकारता है,तो कांग्रेस उसे विकल्प के तौर पर नज़र नही आती है. यही कारण है,की हनुमान बेनीवाल तीसरे मोर्चे की तैयारी में हैं, और वामपंथी किसानों की आवाज उठाने का अपना काम बखूबी करते नज़र आ रहे हैं.
अब देखना ये है, कि क्या होता है ? क्योंकि ये तो तय है, कि इस बार का राजस्थान विधानसभा चुनाव त्रिकोणीय होने जा रहा है. अब फैसला तो जनता ही सुनाएगी, इसलिए चुनाव के दिनों का इंतेज़ार किया जाए.
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