राजस्थान विधानसभा में 25 जनवरी को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया है। इसके साथ ही राजस्थान विधानसभा नेएनपीआर मे हुए संशोधन को लेकर संकल्प पास किया है। इसके साथ ही राजस्थान देश का पहला राज्य बन गया है जिसने विधानसभा में एनपीआर में हुए नए संशोधन के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। केरल और पंजाब के बाद राजस्थान तीसरा ऐसा राज्य है जिसने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव पारित करने के बाद भी विधानसभा की कार्यवाही 10 फरवरी, सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई है।
विधानसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव संसदीय मामलों के मंत्री धारीवाल ने जैसे ही पेश किया। वैसे ही विपक्ष ने इसका जमकर विरोध किया। भाजपा के विधायक वेल में आ गए और नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में जमकर नारेबाजी की।
राजस्थान विधानसभा में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पेश किए गए प्रस्ताव में कहा गया है, कि संसद द्वारा अनुमोदित नागरिकता संशोधन कानून के जरिए धार्मिक विभेद पैदा करने की कोशिश की गई है। धर्म के आधार पर अवैध घुसपैठियों पर कार्यवाही उचित नहीं है। धर्म के आधार पर भेदभाव ठीक नहीं है यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। यही कारण है कि देशभर में इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
एनपीआर के तहत मांगी जाने वाली अतिरिक्त जानकारी से कई लोगों को असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा। असम इसका जीता जागता उदाहरण है।
विधानसभा में बहस के दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने विधानसभा में कहा कि जब संसद ने कानून पारित कर दिया है, तो फिर आप इसे लागू क्यों नहीं कर रहे हैं। यह कानून तो आपको लागू करना ही पड़ेगा। दुनिया की कोई ताकत इसे नहीं रोक सकती है।
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सबसे पहले केरल विधानसभा में 31 दिसंबर 2019 और उसके बाद पंजाब विधानसभा में 17 जनवरी 2020 को प्रस्ताव पारित किया। आज 25 जनवरी 2020 को राजस्थान विधानसभा ने इस कानून के विरोध में प्रस्ताव पारित करते ही तीसरा राज्य बन गया है।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 3 जनवरी को देश के 11 गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा और नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित करने के खिलाफ समर्थन मांगा। साथ ही उन्होंने इच्छा जाहिर की थी जैसे केरल विधानसभा ने मंगलवार को सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है, वैसा ये राज्य भी करें। इन 11 राज्यों झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश, पुदुचेरी, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और ओडिशा के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को बचाने की जरूरत है। इसको बचाने के लिए सभी भारतीय का एकजुट होना समय की मांग है। पत्र में उन्होंने सीएए के खिलाफ केरल विधानसभा के प्रस्ताव का जिक्र करते हुए कहा कि बाकी राज्य भी इस तरह के कदम पर विचार कर सकते हैं।