मुस्लिम समाज को जब आप एक समाज के नज़रिए से गौर करते हुए उस स्थिति पर गौर करेंगे तो आप ये पाएंगे तमाम समाजिक,आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं को अगर हटा कर गौर करें तो नज़र में आने वाली एक बात ये भी है कि भारतीय मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो धर्म को लेकर बहुत चिंतित,फिक्रमंद रहता है और इसे सबसे ज़्यादा महत्व देता है और यही है वजह है कि वो अपने धर्म को लेकर रिज़र्व भी नही रहता है।
इस कड़ी में दो बेहद ज़रूरी चीजें है जिस पर मैने खुद गौर किया है,पहला ये है कि “धर्म” जैसे मसलें पर बहुत अलग अलग तरह की चीज़ों का चलन यहां रहा है,शुरुआत यहां पर होती है पार्टिशन की टू नैशन थ्योरी से जिसका सिद्धान्त धर्म के इधर उधर ही रहा और मुस्लिम समाज का बहुत बड़ा तबका पाकिस्तान का हो गया और भारतीय संविधान जो “सेक्यूलर” देश की स्थापना करते हुए तमाम लोगों को यहां बराबरी देता है वही भारत मे रहने वाले मुस्लिम भी यहां पर कुछ हद तक इसी वजह से सुरक्षित महसूस करते रहें।
लेकिन जहां एक तरफ़ “मुस्लिम” नाम पर देश मांगने वाले थे तो दूसरी तरफ “हिंदू” नाम पर देश मांगने वाले भी थे और यही वजह रही कि इस तरह के संगठन सामने आए जो मुस्लिम समाज की बात करने से कतराते नज़रे आएं,और उसी के मातहत में साम्प्रदायिक दंगों की कि नींव पड़ी,और बारी बारी थोड़े ही वक़्त के भीतर कई जगहों भर भारी मात्रा में दंगे हुए और इसमें मुस्लिम समाज के बहुत बड़े तबके को नुकसान भी उठाना पड़ा, जिसमे अलीगढ़, मुरादाबाद से लेकर भागलपुर तक शामिल थे।
इस साम्प्रदायिक माहौल में बड़े नुकसान हुए और अधिकतर मुस्लिम समाज इससे जूझें और सामाजिक तौर पर पिछड़ें हुए नज़र आने लगे,और जब सामाजिक तौर पर पिछड़ापन हुआ तो यही नज़रिया राजनीति के माहौल में भी आया। इसी वजह से मुस्लिम समाज के भीतर से कोई भी ऐसी राजनीतिक कोशिश भी नही हो पाई ओर जितना भी नेतृत्व या पार्टी के नाम का ही नेतृत्व सामने आया जिसने मुस्लिम समाज को महज “वोटबेंक” बना कर रख दिया।
इसके बाद आती है दूसरी महत्वपूर्ण चीज़ जो सबसे अहम है मुस्लिम समाज के भीतर ऐहसासे कमतरी का आ जाना,जिसमें वो खुद को कमज़ोर,अनपढ़ समझने भी लगे और शिक्षा के मैदान में पिछड़तें हुए भी नज़र आने लगे,और ये आधार सिर्फ जुमले भर नही है जस्टिस सच्चर की पूरी रिपोर्ट इसका परिणाम है की ये समाज भारत के परिदृश्य में समाजिक तौर पर मज़बूत नही है तो उसे सहारा मिला धार्मिक चीजों का जहां उसे धार्मिक चीजों से टकराव नही होता है। इसलिए मुस्लिम समाज मे धार्मिकता को शक्ल दी जाने लगी,और धीरे धीरे बड़ी तादाद में मुस्लिम समाज ले बच्चें सिर्फ धार्मिक चीजों में मशगूल हो गए,और एक पूरी की पूरी पीढ़ी दुनियावी पढ़ाई में अनपढ़ हो गयी है,और अनपढ़ होने ही कि वजह है कि आज सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता से बहुत दूरी है,क्योंकि ये एक हक़ीक़त है इसलिए इसका परिणाम है कई रिपोर्ट और मौजूदा स्थिति भी यही है।
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