‘प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा’, इस किताब से मेरा भी याराना है, चंद महीनों का ही सही लेकिन अब साथ जीवन भर का है। सितंबर माह में एक फोन के साथ ‘प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा’ किताब ने दस्तक दी थी जिंदगी में। कुछ पल की उलझन थी कि इस किताब का अनुवाद करना चाहिए या नहीं क्योंकि चंद बिखरे पन्ने मेरे हाथ में भी थे, जिन्हें पूरा करने की जद्दोजहद जारी थी। आधे मन से किताब उठाई ही थी कि शुरूआती पृष्ठों ने ही अपने मोहपाश में बांध लिया। दिलो-दिमाग पर कब्जा कर लिया, जो बता रहा था इस किताब में पिता की कहानी बेटी की जुबानी सुनने जा रहे हैं। हम तीन बहनों की ही तरह प्रेम जी की भी तीन बेटियां ही हैं….यह पढ़ मैं इस किताब के थोड़ा और करीब आ गई। प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा’ किताब प्रेम साहब की बिटिया ने लिखी है, इस किताब में पिता प्रेम चोपड़ा की जिंदगी की सच्ची किस्सागोई उनकी बेटी रकिता नंदा अपनी जुबानी सुना रही थी। उसके बाद के चंद पन्नों में ही पूरा दिल-दिमाग इस किताब की सच्ची किस्सागोई में खो गया।
यह किताब सच्चाई में प्रेम चोपड़ा जी की आत्मकथा ही है जो उनके शरीर के सबसे धड़कते हिस्से ने उन्हें लिखकर समर्पित की है। बेटियां पिता की परछाई होती हैं, इस बात थोड़ा औऱ नजदीक – थोड़ा औऱ गहराई से समझना हो तो इसे जरूर पढ़ना चाहिए। खुद रकिता नंदा के शब्दों में इस किताब को लिखते समय आंखों के आगे पूरी जिंदगी फ्लेश बैक में चलने लगी। अपने मन में पिता के विविध रूपों को याद कर मैंने बाहर की दुनिया में उनके व्यक्तित्व को महसूस करने की कोशिश की। मैंने लोगों से मिलना-जुलना शुरू किया, यह ठीक वैसा ही अनुभव था, मानो मैं अपने पिता के पदचिन्हों का अनुसरण करने निकली हूं। उन रास्तों से दोबारा गुजर रही हूं, जहां कभी मेरे पिता ने कदम रखा था, अपनी छाप छोड़ी थी। मैं उनकी जिंदगी के संघर्षों, खुशियों और उम्मीदों से कदमताल कर रही थी।
जी हां, किताब के शुरू के पन्ने हमें प्रेमचोपड़ा के संघर्षों से रूबरू कराते हैं। अपने सपनों को पूरा करने का अनूठा संघर्ष जिसमें प्रेम जी घंड़ी की सुइयों की तरह लगातार चौबीस घंटे काम करते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में काम, अपनी दैनिक जरूरतें पूरी करने के लिए तो फिल्म स्टूडियों के चक्कर और छोटे-मोटे रोल, अपने सपने पूरे करने के लिए। किताब में आप बॉलीवुड के सबसे बड़े खलनायक की निजी जिंदगी में झांक पाएंगे जहां वह रोज रील लाइफ के बुरे किरदार निभाकर बेटा-पति-भाई-पिता के रियल लाइफ किरदार में डूब जाता है। यह किताब अपने आप में बॉलीवुड के पचास सुनहरे सालों का लेखा-जोखा भी है जिसमें दिलीपकुमार, अमिताभबच्चन, मनोजकुमार, कपूर खानदान की कई पीढ़ियों से लेकर राकेश रोशन-रितिक रोशन तक के कई अनछुए किस्सों की सुंदर बानगी भी है।
आखरी में चलते-चलते सोचिए ना! एक खलनायक, पर्दे पर जिन्हें देखते ही सिनेप्रेमी सहम जाते हों। साजिश रचते, खुराफात करते देख चीखें निकल जाती हों। रुपहले पर्दे पर जिसकी धमक आपके चेहरे की रंगत को फीका कर देती हो। अभिनेता के अभिनय का चरम है लेकिन सौम्य व्यक्तित्व के पारिवारिक इंसान के लिए असहनीय। है ना! एक साफ-सुथरे व्यक्तित्व के इंसान के लिए अपने किरदार पर उठी एक अंगुली बर्दाश्त के बाहर होती है, यहां प्रेम चोपड़ा जी का सारा किरदार ही ग्रे और ब्लैक शेड को अपने अंदर समाहित किए हुए। तो उनकी जिंदगी का रोलर-कोस्टर कैसा होगा। मैं पिछले तीन महीनों से इस रोलर कोस्टर की हमसफर रही हूं….चाहती हूं आप भी एक बार इस किताब के पन्नों को नजदीक से देंखे-पढ़े-समझे।