बुलंदशहर की घटना उस बैचेनी का नतीजा है जो हिन्दू भाइयों के सहयोग से कामयाब होने वाले बुलंदशहर इज्तिमा से पैदा हुई, हुआ यूं कि बुलंदशहर इज्तिमा की तैयारी शुरू हुई तो इज्तिमा के क्षेत्र मे पड़ने हिन्दू साहेबान के खेतों को उन्होने ख़ाली करके इस धार्मिक आयोजन के लिए जगह उपलब्ध कराई, फिर जहाँ जहाँ ज़रूरत पड़ी सहयोग किया बल्कि ख़ुद अपनी तरफ़ से मदद आफ़र की, ख़ैर सबकुछ अच्छा हुआ, प्यार मुहब्बत अमन चैन के माहौल मे इज्तिमा कामयाब हुआ, बस यही बात साम्प्रदायिक संगठनो को बैचेन कर गई.
अब शुरुआत हुई इस बात कि इज्तिमा और मुसलमानों को बदनाम कैसे किया जाये? राष्ट्रीय स्तर पर तो मुसलमानों को आतंकवाद और पाकिस्तान परस्ती का आरोप लगाकर बदनाम किया जाता है वो यहाँ एकदम से संभव नही था, लोकल स्तर पर छेड़छाड़ और गोकशी दो आसान उपाय हैं, छेड़छाड़ के लिए एक लड़की की ज़रूरत पड़ती और चूंकि धार्मिक आयोजन था तो यह ज़्यादा फ़िट न बैठती. अब बची गौकशी, एक तो गाय के अवशेष ख़ुद तो गवाही दे नही सकते कि किसने काटा चाहे जिस पर आरोप लगा दो, दूसरे धार्मिक आयोजन था, खाना जगह जगह बन ही रहा था तो गाय काटने की बात ज़्यादा फ़िट बैठ रही थी, तो वही फैलाई गई.
आप वीडियो देखिए जिस तरह से भीड़ मे एक आदमी गाय का कटा सिर दोनों हाथों से उठा कर दिखा रहा है उससे लगता ही नही कि इन्हे गाय काटे जाने का दुख है बल्कि जैसे सबकुछ सिर्फ़ उकसाने के लिए किया जा रहा है साफ़ दिख रहा है लेकिन वो जब दिखता है जब आंखो का कनेक्शन दिमाग़ से सही सही जुड़ा हो.
ख़ैर साज़िश का वक़्त ठीक वो तय किया गया जब इज्तिमा से लोगों को वापस लौटना था ताकि उनका रास्ता जाम करके टकराव की स्थिति पैदा हो, पथराव हो, भगदड़ मचे, आगज़नी हो और यह सब इज्तिमा से लौटते लोगों के मत्थे मढ़ा जा सके, बाक़ी काम मीडिया के टटटू कर देते.
पुलिस यह सब करने नही दे रही थी तो पुलिस उन्हें दुश्मन लगने लगी, उन्हें अपने रास्ते आता कोई अच्छा नही लगता, वो पुलिस हो, जज हो, पत्रकार हो, या उनका अपना ही नेता क्यों न हो, ख़ैर, साज़िश तो नाकाम हुई पर इसकी क़ीमत उन्होने इंस्पेक्टर साहब की जान लेकर वसूल ली.
एक बात और बताता चलूं, यह साज़िश सिर्फ़ इस इज्तिमा के लिए नही थी बल्कि फिर जहाँ जहाँ इज्तिमा होता यह साम्प्रदायिक संगठन विरोध करते कि इज्तिमा मे गाय काटी जाती है खाई जाती है इसलिए हम इज्तिमा नही होने देंगे. इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को ख़िराज ए अक़ीदत, अल्लाह उनके घरवालों को सब्र दे और उनके क़ातिलों को सज़ा दे.