कार्पोरेट घरानों से आबाद गोदी मीडिया यह सच आपको कभी नही बताएगी इसलिए इस ख़बर को यही पर पढ़ लीजिए
कल हम एक अंतराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में रिलायंस द्वारा डाली गयी 30 हजार करोड़ की डकैती का मुकदमा हार गए हैं. दरअसल वहाँ पर मोदी सरकार की नही भारत की जनता की हार हुई है और एक पूंजीपति की जीत हुई है और वो भी एक ऐसे केस में जो साफ साफ चोरी और सीनाजोरी का मामला था.
यह वाकई में चोरी का नही डकैती का ही मामला था……..
कल आंध्र के कृष्णा-गोदावरी बेसिन में ओएनजीसी के गैस भंडार में सेंध लगाकर रिलायंस द्वारा 30 हजार करोड़ रू की प्राकृतिक गैस चुराने के मामले मे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पैनल का फ़ैसला आ गया है. इस पैनल ने जो रिलायंस ओर मोदी सरकार की सहमति से चुनी गई थी उसने ओएनजीसी की शिकायत को रद्द कर रिलायंस से 10 हजार करोड़ के जुर्माना हटा दिया है जो 2016 में जस्टिस ए पी शाह आयोग द्वारा रिलायंस को दंडित करने की सिफ़ारिश के चलते सरकार को लगाना पड़ा था.
इस भी बड़ा तुर्रा यह लगा है कि ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि अब सरकार को ही हरजाने के तौर पर लगभग 50 करोड़ रू रिलायंस को देने होंगे.
अब यह मामला क्या था यह पूरा शुरू से समझिए
- आंध्र प्रदेश की दो प्रमुख नदियों कृष्णा और गोदावरी के डेल्टा क्षेत्र में स्थित कृष्णा-गोदावरी (केजी) बेसिन कच्चे तेल और गैस की खान माना जाता है.
- 1997-98 में सरकार न्यू एक्सप्लोरेशन और लाइसेंस पॉलिसी (नेल्प) लेकर आई। इस पॉलिसी का मुख्य मकसद तेल खदान क्षेत्र में लीज के आधार पर सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों को एक समान अवसर देना था.
- इस पॉलिसी से रिलायंस का प्रवेश तेल और गैस के अथाह भंडार वाले इस क्षेत्र में हो गया रिलायंस ने इन तेल क्षेत्रों में अपना अधिकार बनाना शुरू किया जहाँ ONGC पहले से खुदाई कर रहा था.
- धीरे धीरे रिलायंस ने यह कहना शुरू किया कि उसे इस क्षेत्र में करोड़ों घनमीटर प्रतिदिन उत्पादन करने वाले कुए मिल गए हैं इन खबरों से रिलायंस के शेयर आसमान पर जा पुहंचे. 2008 में रिलायंस ने तेल और अप्रैल 2009 में गैस का उत्पादन शुरू किया था.
- लेकिन हकीकत यह थी कि रिलायंस को अपनी घोषणाओं के विपरीत बेहद कम तेल और गैस इन क्षेत्रों से प्राप्त हो रही थीं ओर पास के क्षेत्र में स्थित ONGC अपने कुओं से भरपूर मात्रा में तेल गैस का उत्पादन कर रहा था.
2011 में केजी बेसिन में रिलायंस इंडस्ट्रीज की परियोजना से गैस उत्पादन में गिरावट आई और सरकार ने रिलायंस को गैर-प्राथमिक क्षेत्रों को गैस की आपूर्ति बंद करने का आदेश दिया लेकिन रिलायंस ने इस्पात उत्पादन करने वाले समूहों को साथ मे लेकर सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया पेट्रोलियम मंत्रालय और रिलायंस में यह विवाद गहराता चला गया पेट्रोलियम मंत्रालय का कहना था कि रिलायंस को कैग द्वारा ऑडिट कराना होगा लेकिन रिलायंस इसके लिए तैयार नही हुआ उसने इस क्षेत्र में अपने वादे के मुताबिक अरबो करोड़ का निवेश करने से इनकार कर दिया.
रिलायंस कंपनी ने यह शर्त भी रखी कि लेखा परीक्षा उसके परिसर में होनी चाहिये और इस रिपोर्ट को पीएससी के तहत पेट्रोलियम मंत्रालय को सौंपी जाए, संसद को नहीं, UPA सरकार में भी मुकेश अम्बानी की रिलायंस इतनी पॉवरफुल थी कि कहा जाता था कि मुकेश अम्बानी की मर्जी से पेट्रोलियम मंत्री हटाये और बहाल किये जाते थे.
इस बीच 2013 में रिलायंस और ओएनजीसी के बीच गैस चोरी को लेकर विवाद की थोड़ी–थोड़ी भनक मिलना शुरू हो गयी थी.
अब इस लेख का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा आपके सामने आना वाला है वो है इस केस की टाइमिंग
आपको याद होगा कि मई 2014 में भारत मे लोकसभा के चुनाव हुए थे 16 मई को यह फैसला आने वाला था कि सत्ता किसके हाथ लगने वाली हैं उसके ठीक एक दिन पहले ओएनजीसी ने 15 मई, 2014 को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया जिसमें यह आरोप लगाया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज ने उसके गैस ब्लॉक से हजारों करोड़ रुपये की गैस चोरी की है.
- ओएनजीसी का कहना था कि रिलायंस ने जानबूझकर दोनों ब्लॉकों की सीमा के बिलकुल करीब से गैस निकाली, जिसके चलते ओएनजीसी के ब्लॉक की गैस आरआईएल के ब्लॉक में आ गयी.
- ओएनजीसी के चेयरमैन डीके सर्राफ ने 20 मई 2014 को अपने बयान में कहा कि ओएनजीसी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के खिलाफ जो मुकदमा दायर किया है, उसका मकसद अपने व्यावसायिक हितों की सुरक्षा करना है। क्योंकि रिलायंस की चोरी के चलते उसे लगभग 30,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
लेकिन चिड़िया खेत चुग चुकी थी और रिलायंस के सैया अब कोतवाल बन चुके थे लिहाजा अपर हैंड अब रिलायंस के ही पास था.
23 मई, 2014 को एक बयान में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कहा कि ‘हम के जी बेसिन से कथित तौर पर गैस की ‘चोरी’ के दावे का खण्डन करते हैं। सम्भवत: यह इस वजह से हुआ कि ओएनजीसी के ही कुछ तत्त्वों ने नये चेयरमैन और प्रबन्ध निदेशक सर्राफ को गुमराह किया जिससे वे इन ब्लॉकों का विकास न कर पाने की अपनी विफलता को छुपा सकें।’
लेकिन एक बात आप याद रखिए 15 मई 2014 को ONGC ने जो केस दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल किया था वह केस एक ऐतिहासिक केस था क्योंकि ओएनजीसी ने रिलायंस पर तो चोरी का आरोप लगाया ही था, उसने सरकार को भी आड़े हाथों लिया था।
- ओएनजीसी का कहना था कि डीजीएच और पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा निगरानी नहीं किये जाने के कारण ही रिलायंस ने यह चोरी की.
- यानी की तीसरा पक्ष मतलब ONGC कह रहा था कि पहले पक्ष यानी रिलायंस ओर दूसरे पक्ष यानी सरकार ने मिलकर इस डकैती को अंजाम दिया है.