सिर्फ़ किसान ही नहीं, इन क्षेत्रों से जुड़े लोग भी चल रहे हैं नाराज़

Share

अगर आप पिछले कुछ महीनों का पुनरावलोकन करें, तो आप पाएंगे कि देश मे बड़े बड़े आंदोलन चले हैं, किसानों का यह आंदोलन कोई पहला बड़ा आंदोलन नही है। कल देश के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत ने पूर्व सैनिकों की पेंशन कटौती की अनुशंसा की है, इससे पूर्व सैनिकों में भारी नाराजी है।

सैनिकों का कहना है कि प्रपोजल सीडीएस ने जवानों की पेंशन की कटौती की जो बात कही है उसे तुरंत ही वापस लिया जाए, नहीं तो पूर्व सैनिक इस आंदोलन को बहुत बड़ा रूप देंगे तथा दिल्ली आकर उग्र प्रदर्शन करेंगे।

किसानों के आंदोलन के ठीक पहले अक्टूबर में उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर राज्य में 15 लाख से अधिक कर्मचारी हड़ताल पर गए थे, उत्तरी भारत के सभी राज्यो में बिजली कर्मी निजीकरण के खिलाफ आक्रोशित हैं, वह भी एक बड़े आंदोलन की भूमिका बना रहे हैं।

मोदी सरकार द्वारा रेलवे के निजीकरण के विरोध में रेलवे कर्मचारियों का देशव्यापी आंदोलन कुछ महीने पहले से ही चल रहा था। देश के तमाम रेलवे कर्मचारी संगठनों ने निजीकरण के विरोध में जन आंदोलन शुरू कर दिया था। इस आंदोलन में आम लोगों व्यापारी, महिलाओं, छात्रों, पेंशनर्स, से भी शामिल होने का आह्वान किया गया था, यह आंदोलन भी अभी खत्म नही हुआ है।

देश कोरोना माहमारी से जूझ रहा है। ऐसे में स्वास्थ्य कर्मियों की भूमिका बड़ी हो गई है। सरकार ने उन्हें कोरोना वारियर्स बता रही है लेकिन हकीकत में वे अपने मूलभूत अधिकारों से भी वंचित हैं। कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मियों की हालत देश भर बदतर है। मध्यप्रदेश में दिल्ली में तथा अन्य कई और जगहों पर स्वास्थ्य कर्मी भी उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, कई जगहों पर उन्हें सेलरी नही मिल रही है। वे भी यही कह रहे हैं कि यदि सरकार ने उनकी मांगों पर ग़ौर नहीं किया तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे।

कोयले के क्षेत्र में कॉमर्शियल माइनिंग को मंजूरी दिए जाने के खिलाफ देश के बड़े केंद्रीय श्रमिक संगठन एटक, बीएमएस, एचएमएस, इंटक और सीटू ने कोयला उद्योग में हड़ताल कर रहे हैं। बैंक कर्मी तो मोदी सरकार की गलत नीतियों को अपनाने के खिलाफ बहुत बार हड़ताल कर चुके हैं।

कोरोना काल से ठीक पहले CAA के खिलाफ देश भर में हर छोटे बड़े शहर में आंदोलन चल रहा था , यानी एक विहंगम दृष्टि डाली जाए तो मोदी सरकार के गलत निर्णयों से देश भर का कामगार परेशान हो चुका है और देश मे एक बहुत बड़े आंदोलन की भूमिका बन चुकी है।

Exit mobile version