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मोदी सरकार के आने के बाद क्यों पलट गए गवाह?

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हैदराबाद की मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस में फ़ैसला आया है. जिसमें सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि एनआईए असीमानंद के ख़िलाफ़ सबूतों को पेश करने में नाकाम रही.
हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में हुए धमाके में असीमानंद मुख्य अभियुक्त थे, उनके अलावा अन्य लोगों के ख़िलाफ़ आरोप लगे थे.

मोदी सरकार आने के बाद भगवा आतंक के सभी केसों में पलटे गवाह

ज्ञात होकि मोदी सरकार के आने के बाद अजमेर ब्लास्ट, मालेगांव ब्लास्ट और फिर मक्का मस्जिद ब्लास्ट में गवाहों ने अपने बयान पलटे हैं. जिस वजह से आरोपियों के बरी होने पर सवाल खड़े होना जायज़ है.

यह तस्वीर बहुत पुरानी है, जहाँ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को असीमानंद के साथ देखा जा सकता है

4 जुलाई,2015 को अजमेर ब्लास्ट से संबंधित 13 गवाहों ने पलटी मारी थी.

शुरुआत में राजस्थान एटीएस ने इस मामले की छानबीन की थी और अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े तीन लोगों देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चंद्रशेखर लेवे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी.
इसके बाद मामला एएनआई के पास पहुंचा तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अप्रैल 2011 से अक्टूबर 2013 के बीच उपरोक्त तीन लोगों सहित कुल 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. ये सभी लोग या तो पूर्व में आरएसएस से जुड़े रहे हैं या उनका किसी अन्य हिन्दूवादी संगठन से संबंध रहा है.

खास बात ये भी है कि एक प्रमुख गवाह रणधीर सिंह अब झारखंड की बीजेपी सरकार में मंत्री बन गए हैं।
रणधीर सिंह ने कहा था कि उन्होंने दो आरएसएस के कार्यकर्ताओं को बंदूक चलाते या बंदूक की ट्रेनिंग लेते देखा था। लेकिन सरकारी वकील के मुताबिक इस साल मई में वो अपने बयान से मुकर गए।

  • गवाह रणधीर ने RSS से जुड़े लोगों को हथियार ट्रेनिंग की बात कही थी।
  • रणधीर फरवरी 2015 में मंत्री बने, मई में अपने बयान से पलट गए।
  • गवाहों ने RSS से जुड़े लोगों की भूमिका के बारे में मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया था।
  • यू टर्न लेने वाले गवाहों का दावा कि NIA ने उन पर दबाव डाला था।
  • अजमेर ब्लास्ट केस में आरोपी ने RSS नेता इंद्रेश का नाम लिया था।
  • सिर्फ़ NIA ही बता सकती है कि इंद्रेश की भूमिका की आगे क्यों जांच नहीं की गई।

मालेगांव ब्लास्ट केस में भी पलटे थे गवाह

4 मई 2016 की खबर आपने पढ़ी तो होगी – जब खबर आई थी की मालेगांव ब्लास्ट के गवाह मुकर गए हैं. एटीएस के अनुसार गवाह ने बयान दिया था कि धमाके के सिलसिले वो अभिनव भारत की मीटिंग में गया था, लेकिन अब एनआईए को दिए गए बयान में वो मुकर गया है और उसका कहना है कि एटीएस के दबाव उसने ये बयान दिया था.
एटीएस के अनुसार दूसरे गवाह ने बताया था कि बैठक में उसने कई तरह के नारे सुने थे लेकिन एनआईए के सामने उसने किसी तरह की मीटिंग में जाने से इंकार करते हुए कहा कि इस तरह की बातें उसे मीडिया के माध्यम से सुनी थी.

कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञाक़ गवाहो के पलटने के बाद सुबूतों के अभाव में मालेगांव ब्लास्ट केस से बरी किएक जा चुके हैं.


इन्हीं लोगों के ग्रुप को ‘भगवा आतंक’ के रूप में भी पहचान मिली और इनका संबंध 2007 से ही अजमेर दरगाह, मालेगांव और हैदराबाद की मक्का मस्जिद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में धमाकों से जोड़ कर देखा जाता रहा है.

मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में भी पलटे थे 54 गवाह

इस विस्फोट का आरोप हिंदुत्व संगठन अभिनव भारत पर लगा था. शुरुआती पुलिस जांच के बाद मामला सीबीआई को दे दिया गया था, जिसने मामले की चार्जशीट दाखिल की.

सीबीआई ने इस मामले में 68 गवाहों से पूछताछ की, जिसमें से 54 अपने बयान से मुकर गए. मुकरने वाले इन गवाहों में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाईजेशन के वैज्ञानिक वी वेंकट राव भी थे.

आज तक की खबर के मुताबिक इस मामले में अब तक कुल 226 चश्मदीदों के बयान दर्ज किए गए थे और कोर्ट के सामने 411 दस्तावेज पेश किए गए. लेकिन ढेरों गवाह कोर्ट के सामने मुकर गए, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित और झारखंड के मंत्री रणधीर कुमार सिंह भी शामिल हैं.
ज्ञात होकि असीमानंद ने मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस में खुद की संलिप्तता को क़ुबूला था. इसके बाद देश में भगवा आतंकवाद की चर्चा शुरू हुई थी.

ये है असीमानंद का 2010 वाला क़ुबूलनामा

मार्च 2017 में एनआईए की अदालत ने 2007 के अजमेर विस्फोट में सबूतों के अभाव में असीमानंद को बरी कर दिया था. दिल्ली के तीसहज़ारी कोर्ट में 2010 में एक मेट्रोपॉलिटन जज के सामने असीमानंद ने धमाका करने की बात स्वीकार की थी.
उन्होंने कहा था कि वो अन्य साथियों के साथ अजमेर शरीफ़, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव धमाके में शामिल थे. उन्होंने कहा था कि यह हिंदुओं पर मुसलमानों के हमले का बदला था.
42 पन्नों के इक़बालिया बयान में असीमानंद ने इस धमाके में कई उग्र हिन्दू नेताओं के साथ होने की बात कही थी. इसमें उन्होंने आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार, संघ के प्रचारक सुनील जोशी और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नाम लिया था. सुनील जोशी की 29 दिसंबर, 2007 में मध्य प्रदेश के देवास में गोली मार हत्या कर दी गई थी.

असीमानंद ने कहा था कि सभी इस्लामिक आतंकी हमले में ‘बम का जवाब बम’ होना चाहिए.

बीबीसी के अनुसार – अपने गुनाह कबूलने के दौरान असीमानंद ने कहा था कि उन्होंने हैदराबाद की मक्का मस्जिद को इसलिए चुना था क्योंकि वहां के निज़ाम पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे. हालांकि बाद में उन्होंने एनआईए की अदालत में कहा कि उन्हें प्रताड़ित किया गया था इसलिए डरकर उन्होंने ऐसा बयान दिया था.
दो केसों में बरी हो जाने के बाद असीमानंद अब केवल समझौता एक्सप्रेस धमाके में ही अभियुक्त हैं. समझौता एक्सप्रेस के दो कोचों में 19 फ़रवरी, 2007 को धमाका हुआ था, जिसमें 68 लोग मारे गए थे. इनमें से ज़्यादातर पाकिस्तानी थे जो नई दिल्ली से लाहौर जा रहे थे. इस मामले में पंजाब और हरियाणा कोर्ट ने 2014 में असीमानंद को ज़मानत दे दी थी.
ग्यारह साल पहले 18 मई को मक्का मस्जिद धमाके में पहली बार दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों के नाम सामने आए थे. स्वामी असीमानंद ख़ुद को साधु कहते थे और वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रह चुके थे.
ज्ञात हो कि 18 मई 2007 को प्रसिद्ध चारमीनार के पास जुमा की नमाज के दौरान मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट में नौ लोगों की मौत हो गई थी और 58 लोग घायल हो गए थे. इस घटना के बाद मस्जिद के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस फायरिंग में पांच और लोगों की मौत हुई थी.

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