यदि आप सच्चे भारतीय हैं, तो मस्जिद सील करने के तानाशाही फैसले के खिलाफ बोलिए !

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साम्प्रदायिक पार्टियों ( संगठनों को भी पार्टी समझा जाए) का चरित्र आइने की तरफ साफ है, बहुसंख्यको का तुष्टीकरण करने के लिए वो हिन्दुत्व को भारतीय संस्कृति से जोड़कर सीधे देश की अस्मिता से कनेक्ट कर देती है, अब इस्लाम या ईसाई समुदाय की कोई परंपरा इस दायरे में आएगी ही नहीं, तथाकथित भारतीय संस्कृति दरअसल हिंदुत्व का ही नवीनतम संस्करण है.
अब स्टेशन का नाम बदला जाए या रोड का, कथित सेक्यूलर दल की हिंदू लीडरशीप इस पर बोल भी नहीं पाएगी क्योंकि इन्हें साम्प्रदायिक पार्टी में शामिल होने का विकल्प खुला रखना है, दूसरी बात कट्टरपंथी ताकते तो हर हाल में इस तरह के फैसले को जस्टिफाई करती हीं है सेक्यूलर बहुसंख्यक भी भारतीय संस्कृति के नाम पर हिंदुत्व की कैप्सूल खा ही लेता है, तो दोनो हाथ का लड्डू खाने का मज़ा ही कुछ और है, वोटर दोनो तरफ हैं, जो लोग थोड़ा बहुत विरोध करते हैं उनको वामपंथी, अर्बन नक्सल, खांग्रेसी, गद्दार समझ कर दरकिनार करने का फैशन हो गया है, मुसलमानों के पास अपनी सियासी ताकत है नहीं, सेक्यूलर पार्टियों की मुस्लिम लीडरशिप अपनी पोजीशन और आने वाले चुनाव में टिकट कट न जाए इस डर से बोलेगा नहीं.
गुड़गांव की मस्जिद सील करने में भाजपा या प्रसाशन की भूमिका पर मै ज़रा भी आश्चर्यचकित नहीं हूँ, बहुसंख्यको को यही मंज़ूर है तो हमे भी कोई ऐतराज़ नहीं.
हमारे मज़हब का एक फलसफा है कि अल्लाह जब किसी क़ौम का ज़वाल (पतन) लाता है तो उस क़ौम से हक़ और बातिल (गलत) के बीच फर्क़ करने की सलाहियत छीन लेता है. अब बहुसंख्यक खुद तय करें कि वो ज़वाल की तरफ तो नहीं बढ़ रहे? अगर नहीं, तो अपने हक़ पर होने का सबूत दीजिए। मस्जिद सील करने के तानाशाही फैसले के खिलाफ बोलिए। प्लीज़ !

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