आख़िर क्यों ‘मैल्कम एक्स’ जैसे लोग इस नई प्रोग्रेसिव पीढ़ी के रोल मॉडल नहीं हैं? चे-ग्वेरा से लेकर मार्टिन लूथर किंग, माओ, नेल्सन मंडेला, फ़िदेल कास्त्रो, महात्मा गांधी का फ़ोटो आपको हर जगह मिल जाएगा पर मैल्कम एक्स और मोहम्मद अली जैसे लोगों के नाम तक पे चर्चा नहीं होती है। आख़िर क्यों?
जबकि अगर संघर्षों की बात की जाए तो मैल्कम एक्स के सामने कोई भी नहीं टिकता। मैल्कम एक्स को अगर दुनिया भर के अश्वेतों का अबतक का सबसे बड़ा लीडर एवं इस पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था पर सबसे ज़बरदस्त प्रहार करने वाला कहा जाए तो ये भी कम है। जिन्होंने तमाम ज़ुल्म और आतंक सहने के बावजूद दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी व्यवस्था को लड़खड़ा दिया था।
जिन्होंने अमेरिकी लोकतंत्र को आतंक का सबसे बड़ा अड्डा कहा, जो इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को मूलनिवासियों के जनसंघार एवं अश्वेतों की ग़ुलामी पर टिका हुआ समझते थे। मैल्कम एक्स कहते थे कि अमरीका विदेशो में ही नही बल्कि अपने देश के अन्दर भी एक उपनिवेश बनाये हुए है जिसने अश्वेतों को ग़ुलाम बना रखा है, इसे आप भारत के संदर्भ में भी देख सकते हैं।
70 के दशक में भारत में ‘दलित पैंथर आन्दोलन’ शुरु हुआ जो पूरा का पूरा ‘मैल्कम एक्स’ के विचारों और उनके व्यक्तित्व से ही प्रभावित था। पर क्या हुआ कि आख़िर अम्बेडकरवादी लोगों ने भी इन्हें भुला दिया? दुनिया भर के अश्वेतों के लिए लड़ने वाला शख़्स आज भारत के दलित डिस्कोर्स से बाहर क्यों है?
जिस मैल्कम एक्स ने कहा था कि अगर गोरे लोगों को उनका सच्चा इतिहास पढ़ा दिया जाए तो वे खुद गोरों के विरोधी हो जाएंगे। इस कथन को भारत के संदर्भ में ये कह सकते हैं कि अगर ऊंची कही जाने वाली जातियों की मौजूदा पीढ़ी को उसका सच्चा इतिहास पढ़ाया जाए तो वे ख़ुद अपने ही समाज से नफ़रत करने लगेंगी।
आपको पता होना चाहिए कि ‘मैल्कम एक्स’ संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे अधिक मांग किए जाने वाले वक्ताओं में से एक हैं। मैल्कम ने उस वक़्त हार्लेम में यूनिटी रैली का नेतृत्व किया जो अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ी नागरिक अधिकार घटनाओं में से एक थी।
जिनका कहना था कि आप स्वतंत्रता से शांति को अलग नहीं कर सकते हैं, क्योंकि जब तक उनकी स्वतंत्रता न हो, तब तक कोई भी शांति से नहीं रह सकता। जिन्होंने ये भी कहा था कि “आजादी की कीमत मृत्यु है”।