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बिहार में शराबबंदी के मिले सकारात्मक परिणाम, कम हुआ क्राईम

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पटना: बिहार में पिछला चुनाव में महिलाओं से शराबबंदी का वादा कर फ़िरसे सत्ता में आये नितीश कुमार ने जब बिहार में शराबबंदी की तो इसके सफ़ल होने में कई आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, पर शराबबंदी के एक वर्ष बाद आये आंकड़ों की मानें तो शराबबंदी के काफी सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. सबसे अधिक सुधार कानून व्यवस्था पर पड़ा है, क्राईम रेट काफ़ी नीचे आ गया है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो शराबबंदी के बाद कानून-व्यवस्था में चमत्कारिक सुधार हुआ है. यहां तक कि अब लोग शराब पीने के बजाय दूध पीना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. शराबबंदी लागू होने के एक साल बाद किडनैपिंग में 61.76 फीसदी, मर्डर में 28 फीसदी, डकैती में 23 फीसदी और बलात्कार के मामलों में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज गई है. वहीं कार और ट्रैक्टरों की बिक्री में 30 फीसदी का उछाल देखा गया.
 
इससे जीडीएच (ग्रॉस डोमेस्टिक हैप्पीनेस) बढ़ गया है. इन सुधारों के बारे में खुद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचना दी है. दूध और उससे बने प्रोडक्ट की बिक्री भी तेजी (11 फीसदी) से बढ़ी है. साथ ही रेडिमेड गार्मेंट्स (44 फीसदी), फर्नीचर (20 फीसदी), सिलाई मशीन (19 फीसदी), स्पोर्ट्स गुड्स (18 फीसदी), कंज्यूमर गुड्स (18 फीसदी), कार (30 फीसदी), ट्रैक्टर (29 फीसदी), दोपहिया वाहन (31.6 फीसदी) और इंजन व मोटर्स (33.6 फीसदी) में लंबी उछाल दर्ज की गई.
साल 2011 के जनगणना के मुताबिक, अप्रैल 2016 तक बिहार में 44 लाख लोग शराब पीते थे. इसके बाद जब शराबबंदी की घोषणा हुई तो समाज में कई सकारात्मक सुधार देखने को मिले हैं.
शराबबंदी से पहले प्रदेश में शराब पीने वाला हर शख्स हर महीने 1000 रुपए शराब पर खर्च करता था. इसका मतलब कुल 440 करोड़ रुपए शराब गटकने में ही खर्च होते थे.
नीतीश सरकार के वकील केशव मोहन ने अदालत को बताया कि शराबबंदी के बाद सरकार 5280 करोड़ रुपए हर साल बचा रही है. अब इस रकम को लोग दूसरे मद में खर्च कर रहे हैं. मसलन लोग अब इस पैसे को खाने, कपड़े और दूसरी चीजों पर खर्च कर रहे हैं.

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