द वायर की एक स्टोरी पढ़ी. इसमें नेशनल बुक ट्रस्ट के पुस्तक मेले की चर्चा थी. इस मेले में एक आशाराम की पुस्तकों का अलग से स्टोर बना हुआ दिख रहा है. इसको पढ़कर मन काफी उद्वेलित हुआ, कि नेशनल बुक फेयर जैसी संस्था इन ढोंगी बाबाओं को प्रमोट कर रही है. निश्चित रूप से इससे NBF की साख पर बट्टा तो लगता ही है.
आशाराम के अलावा भी अन्य स्टाल लगे हैं जिनमें लोगों को व्यक्तिगत खुशी, मोक्ष, सेवा का ज्ञान से लेकर धर्म के रास्ते ही सभी समस्याओं का निदान होगा, इसका भरपूर ‘ज्ञान’ दिया जाता है.
पिछले वर्षों की अपेक्षा इस बार धार्मिक स्टॉलों की सक्रियता कहीं ज्यादा है. हिन्दी किताबों वाले हाल नंबर 12 में घुसते ही आप सनातन संस्था के स्टॉल के सामने पहुंच जाते हैं. पिछले मेलों की अपेक्षा इस बार स्टॉल का स्पेस करीब चार गुना बढ़ गया है. उसकी कैच लाइन है, ‘सनातन के ग्रंथ: चैतन्य के भंडार.’
इस्लामिक इंफार्मेशन सेन्टर में इस्लाम से जुड़ी बातें बताई जा रही हैं तो अहमदिया मुस्लिम जमायत का अपना भव्य स्टॉल है. द गिडियोंस इंटरनेशनल इन इंडिया के स्टॉल पर ईसाई धर्म का प्रसार हो रहा है. जीवन कैसे जिया जाए का मंत्र भी मिल रहा है.
मेले में अबकी बार आरएसएस का बोल बाला है. इनसे जुड़ें 12 स्टाल इस मेले में लगे है. नमें अर्चना प्रकाशन, सुरुचि प्रकाशन, जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र प्रकाशन, संस्कृति भारती (दिल्ली), लोकहित प्रकाशन (लखनऊ), आकाशवाणी प्रकाशन (जालंधर), ज्ञान गंगा प्रकाशन (जयपुर), कुरुक्षेत्र प्रकाशन (कोची), साहित्य साधना ट्रस्ट (अहमदाबाद), साहित्य निकेतन (हैदराबाद), भारतीय संस्कृति प्रचार समिति (कटक) और श्रीभारती प्रकाशन (नागपुर) शामिल हैं.
मेले में हिन्दी और भारतीय भाषाओं के स्टालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. वहीं अंग्रेजी के स्टॉलों की संख्या में उछाल आया है. पिछले साल मीडिया स्टडीज ग्रुप की ओर से किए गए मेले के सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आ चुकी है. जरूरत इस बात की है कि मेले में हिन्दी को बढ़ावा देने के साथ ही भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाए. हिन्दी की बौद्धिकता का विस्तार का स्रोत अपनी भारतीय भाषाओं से ही होगा.