क्या मुस्लिम उम्मीदवार की कुर्बानी से शुरू होगा कन्हैया कुमार का राजनैतिक सफर

Share

कल अचानक देश भर के अखबारों में कन्हैया कुमार के बेगुसराय से चुनाव लड़ने की खबर देखी, घोषणा हुई कि कन्हैया महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे लेकिन खबर में महागठबंधन में शामिल किसी दूसरी पार्टी के लोगो का बयान नही था तभी लगा कि ये खबर शायद कन्हैया कुमार के अतिउत्साही समर्थकों ने दिल्ली में बैठ कर चलाई है.
शायद उन समर्थकों को न ही बेगूसराय के राजनैतिक परिदृश्य का अंदाज़ा है न ही पिछले चुनाव का उन्होंने आकलन किया है.
2014 के संसदीय चुनाव में भाजपा की ओर से भोला सिंह ,राजद की ओर से तनवीर हसन और सीपीआई और जदयू के सुयक्त उम्मीदवार राजेन्द्र सिंह थे । पूरे देश मे अच्छे दिनों की उम्मीद पर जो मोदी लहर चली थी उसके बावजूद बेगुसराय में टक्कर काटे की रही और भोला सिंह किसी तरह से सीट जीत पाए.
भाजपा के भोला सिंह को 428227 वोट राजद के तनवीर हसन को 369892 वोट और सीपीआई और जदयू के सयुक्त प्रत्याशी को 192639 वोट मिले.
क्या हर बार मुस्लिम नेतृत्व ही कुर्बानी देगा ,समानता की बात करने वाली वामपंथी पार्टियां क्या ये बात समझने की कोशिश करेंगी की ,एक वो सीट जहा से बिल्कुल तय है  कि वहाँ से एक मुस्लिम चेहरा संसद पहुचेगा वही से अपने भावी नेता की राजनीति की शुरुआत करवायेगी ,वैसे विपक्षी एकता की बात करने वाली लाल झंडा पार्टी ने ही पिछले चुनाव में भी सेक्युलर वोट का बटवारा करवा कर भाजपा को जितवाया था.
सेक्युलर वोटो के बंटवारे के बावजूद भाजपा के लिए ये सीट आसान नही रही और जिस प्रकार से नतीजे आये थे उसके बाद ये लग रहा था कि आने वाले चुनाव में तनवीर हसन बहुत आसानी से जीत हासिल कर लेंगे ,ध्यान रखने की बात है की बेगुसराय की लोकसभा सीट में चेरिया बरियारपुर ,बछवारा ,तेघरा और सहिबपुर कमाल वा बखरी में राजद आसानी से जीती थी और बेगूसराय और मैथानी विधानसभा में इस बार अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी.
अब अगर जिन लोगो को लग रहा है कि कन्हैया कुमार ही मोदी के खिलाफ अकेले योद्धा है वो ये जान ले कि जिस समय राजीव गांधी की ऐतिहासिक बहुमत वाली सरकार आयी थी उसको हिलाने गिराने और विपक्ष की सरकार बनवाने में तनवीर हसन की बड़ी भूमिका थी उअप उस समय जनता दल युवा के अध्य्क्ष थे और दो बार बिहार विधानपरिषद के सदस्य रहे.
अचानक एक युवा नेता का बेगूसराय में आगमन होता है और दिल्ली में बैठा हुआ मीडिया उनकी बेगूसराय में दी चार सभा होने के बाद ही उनको सीधे संसद पहुचा देता है ,सवाल ये है कि अगर युवा नेता इतने ही पॉपुलर है तो बिहार की दूसरी सीट से चुनाव लड़ ले मोतिहारी की सीट में भी जातीय समीकरण लगभग बेगूसराय जैसे ही है या उनकी संसदीय राजनीति का आग़ाज़ एक मुस्लिम प्रतिनिधित्व खत्म करके ही होगा.
ग्रामीण भारत मे चुनाव ज़मीनी हक़ीक़त पे लड़ा जाता है मीडिया के माहौल से नही ,अगर मीडिया के बनाये हुए माहौल से चुनाव जीता जाता तो इरोम शर्मिला को 60 वोट नही मिलते और मेधा पाटेकर तीनो बार चुनाव नही हारती ,बरहाल चुनाव के नतीजे जो भी हो सवाल वही है कि क्या वाम राजनीति के उभरते सितारे का आगमन मुस्लिम नेतृत्व मुस्लिम नुमाइंदगी के बलिदान पर होगा

Exit mobile version