नज़रिया- क्या किसी बड़े संकट में है आम आदमी पार्टी ?

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एक बड़े आंदोलन के उपरांत स्थापित हुई आम आदमी पार्टी पर लगातार संकट की स्थिति पैदा होती जा रही है। आम आदमी पार्टी जिसने दो बड़े राजनीतिक दलों कोंग्रेस और बीजेपी के अलावा राजनीति में नया आगाज करते हुए राजधानी पर सत्ता काबिज़ की, वही पार्टी आज सकते में नजर आने लगी है। पार्टी आंतरिक कलह के चलते कमजोर होने की कगार पर है, लगातार पार्टी के वरिष्ठ नेता पार्टी के दामन को छोड़ते हुए दिखाई दे रहे है, अब वो चाहे आंतरिक कलह के चलते हुए हो या पार्टी की दिशा निर्देशों ओर मूल्यों से भटकने के चलते नैतिकता के आधार पर खुद इस्तीफा दिया गया हो।
बरहाल पार्टी की संरचना लचर हो चुकी है, चूकिं पार्टी संस्थापक के रूप में भूमिका निभा चुके वरिष्ठ नेता पार्टी से किनारा कर रहे है जिसकी सूची में योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, आशीष खेतान, आशुतोष, कपिल मिश्रा, मनोज झा, जैसे वरिष्ठ ओर राजनीति की गहरी समझ रखने वाले लोग शामिल है।
कुछ ही समय पहले ही आप के 20 विधायकों को लाभ के पद के मामले में अयोग्य साबित करने की चुनाैती मिली थी जिसके चलते पार्टी में एक अलग तरह का कलह फैल गया था। ये अचानक ही पैदा हुई समस्या थी जिस पर हाईकोर्ट के साथ आप का कुछ हद तक लम्बा संघर्ष चला था। हालांकि पार्टी को उससे कुश भी नुकसान नही हो सकता था चूँकि दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटों का बड़ा बहुमत आप पार्टी को हासिल था, ओर 20 सीट हटाने के बावजूद भी 47 सीट का बहुमत फिर भी हासिल था। जिसके चलते पार्टी पर आंच उस वक्त नही आयी मगर आज पार्टी की संरचना में दरार बड़ी होती जा रही है।
खबरों के अनुसार पार्टी संस्थापक के द्वारा लगातार अपनी राजनीतिक सूझ बूझ ओर विचारधारा को लागू करने के कारण पार्टी नेता लगातार पार्टी से किनारा कर रहे है। आम आदमी पार्टी के लिए ये बेहद चिंताजनक विषय है कि आप मे इस तरह का माहौल क्यों पैदा होता जा रहा है। पार्टी की आधरभूत संरचना को मजबूत बनाये रखने के लिए ये जरूरी है कि पार्टी में रह गए नेताओ के साथ सामंजस्य, विचार आदान प्रदान बेहद जरूरी है। खुद को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए पार्टी नेताओं को चाहिए कि लगातार राष्ट्र के विकास के लिए तत्पर रहे और वैचारिकता का ध्यान रखते हुए पार्टी में कार्यो को अंजाम दें। पार्टी प्रमुख व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चाहिए कि वो पार्टी में बन्धुत्वता, वैचारिकता , पार्टी मूल्यों , दिशा निर्देशों के परिपाटी ऐसी बनाये की नेता पार्टी छोड़ने के सवाल पर कभी विचार भी न करे, क्योंकि लगातार ये खबरे सुन हताशा होती है कि एक नए विकल्प के तौर पर मुख्यधारा की राजनीति में आई पार्टी के हाल बदहाल हो रहे है। उसके महत्वपूर्ण और काबिल लोग पार्टी से हाथ धो रहे है।
ये एक नई पार्टी के विकास और उसकी राजनीतिक आयु के लिए खतरा साबित हो सकता है। ऐसे क्या मामले हो रहे है कि पार्टी नेता पार्टी में रहना पसंद नही करने लगे है, ये जरूरी है कि संस्थापक उसको जाने और उस ओर काम करे। चूँकि आम आदमी पार्टी ने जिस तर्क ने साथ राजनीति में प्रवेश किया था , वह कही न कही पूरे हुए भी है और नही भी मगर इसके अलग ये जरूरी है कि आप अपने आप को खण्डित होने से बचा ले , ताकि वह छूटे हुए परियोजना कार्यों को उसकी मंजिल तले पहुँचा सके।

अयूब मलिक
डॉ भीम राव अम्बेडकर कॉलेज
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