एग्ज़िट पोल,एक और एग्ज़िट पोल और फिर एक और एग्ज़िट पोल और माहौल मानो ऐसा की जैसे “फैसला” हो गया हो मगर एग्ज़िट पोल जो होता है नब्ज़ तो होता है मगर सही या गलत अलग बात है,एग्ज़िट पोल भाजपा को “बहुमत” दे चुका है,कांग्रेस जितनी नज़र आ रही थी एग्ज़िट पोल उतना उंसे भाव दे नही रहा है और उसे हमेशा की तरह दूसरे नंबर पर बता रहा है लेकिन क्या ये एग्ज़िट पोल “परिणाम” भी।होंगे?
एग्ज़िट पोल का खेल पुराना है,और इस पर यक़ीन करते हुए या नही करते हुए कई बार सोचना पड़ता है क्योंकि पिछले कई एग्ज़िट पोल सटीक भी नज़र आये है,लेकिन हर बार नही,2004 का चुनाव “इंडिया शाइनिंग” के नाम अटल बिहारी अपने दम पर लड़ रहे थे और सोनिया कांग्रेस को बस चला ही रही थी,क्योंकि लंबे अरसे से सत्ता से बाहर थी,और इससे भी ज़्यादा चुनावों के पूरे होने के बाद तमाम एग्ज़िट पोल में एक ही चीज़ चमक रही थी “इंडिया शाइनिंग” और भाजपा के तमाम नेता अपनी छाती फुला कर जीत के नारे भी दे रहें थे, मगर हुआ क्या? भाजपा बुरी तरह चुनाव हार गई,सारे नारे सारे वादे और तमाम “एग्ज़िट पोल” धरे के धरे रह गए थे,और भाजपा चुनाव हार गई थी.
अब इस स्थिति पर थोड़ा आगे आइये,आम आदमी पार्टी नया नया चुनाव लड़ रही थी और पहला चुनाव लड़ रही थी,चुनिंदा पोल्स को छोड़ दें तो आम आदमी पार्टी को सभी एक संख्या में सीटें दे रहें थे,मगर हुआ क्या? केजरीवाल की पार्टी 28 सीट लायी और रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज कर के गयी। अब इन दोनों उदाहरणों को दिमाग मे रख कर सोचिये और एक सवाल करिये की इनकी हमे ज़रूरत क्यों है? क्यों छह करोड़ गुजरात के लोगों की राय कुछ हज़ार तय कर रहें है?
ये अहम होगा भी और नही ये अलग बात मगर ऐसा हो नही सकता है,मगर अभी जो सबसे अलग चीज़ नज़र आ रही है वो ये है कि देश के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषण योगेंद्र यादव,जो तमाम न्यूज़ चैनल से हटकर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की जीत की बात कर रहें है,और ये बहुत बड़ी बात है क्योंकी योगेंद्र यादव ऐसे अकेले विश्लेषण है तो कैसे इस तस्वीर को आखिर मान लें?
इस तस्वीर की साफ साफ झलक हमे अठारह दिसम्बर की सुबह मिल जायगी लेकिन एग्ज़िट पोल के बारे में एक ही बात है जो बिल्कुल सही बैठती है कि “ये किसी के सगे नही होते है”,तो कोई अपना होश मत खोइए क्योंकी ये परिणाम नही है । बाकी 18 दिसम्बर की सुबह बतायेगी की ऊंट किस करवट बैठता है क्यों है न…
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