इन दिनों मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भावन्तर योजना को लेकर चर्चा करते किसान आपको मिल जाएंगे, इन चर्चाओं में किसान के माथे में चिंता की लकीरें साफ़ देखीं जा सकती हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने इस वर्ष खरीफ की 8 फसलों की खरीदी जिसमें तिल, रामतिल, मक्का, सोयाबीन, मूंगफल्ली और दलहन में मूंग, उडद, अरहर की फसलों के लिए मुख्यमंत्री भावन्तर योजना को बतौर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है।
क्या है भावन्तर योजना
योजना के तहत किसानों को अपने रकबे का रजिस्ट्रेशन अपने पंचायत के ई- रजिस्ट्रेशन केंद्र में कराना होगा, इसके बाद किसान अपनी उपज को इस क्षेत्र की मंडी में ले जाना होगा, जहा व्यापारी वर्ग बोली लगाकर उस उपज को खरीदेंगे। सरकार ने ऊपर लिखित जिंस का मॉडल प्राइज तये करेगी और मॉडल प्राइज प्रमुख मंडियों का एवरेज होगा, मसलन मक्के के लिए कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की प्रमुख मंडियों की बिक्री के आधार पर मॉडल दर तय की जायेगी। गर व्यापारी द्वारा मॉडल दर से कम में खरीदा जाता है तो मॉडल दर और समर्थन मूल्य के अंतर की राशि सरकार किसान के खाते में जमा करेगी।
किस तरह सरकार किसानों को छल रही है
सरकार द्वारा इस योजना में खरीदी की लिमिट तय कर दी गई है, मसलन मध्य प्रदेश के सिवनी में प्रति हैक्टर केवल 17 कुण्टल मक्का ही किसान बेच सकता था, जिसे सरकार ने किसानों के दबाव बाद कुछ हद्द तक बढ़ाया गया है, दरअसल, इतने रकबे में 50 कुण्टल से ज्यादा पैदावार होती है।
अभी तक किसान अपनी उपज को अपनी ही पंचायत क्षेत्र की सोसाइटी में बेच लिया करता था, यहाँ मक्का समर्थन मूल्य में बिकता था। ये सोसाइटी 1-3 किलोमीटर की दुरी में होती थी, चूँकि अब सरकार ने तये कर दिया है कि किसान को मंडियों में आनाज लेकर जाना होगा, एक जिले में औसत 5-8 मंडिया ही होती हैं, इसलिए किसान को अब अपनी फसल बेचने के लिए 50 से 70 किलोमीटर दूर तक अपनी उपज लेकर जाना पड़ रहा है, इस दुरी की वजह से किसान पर अतिरिक्त लागत का बोझ बढ़ेगा।
सरकार अंतर की राशि किसान के खाते में 15 दिसम्बर के बाद जमा करेगी, हालांकि ये भी तये नहीं है कि कितने दिनों बाद ये राशि किसानों को मिलेगी। इस योजना से व्यापारियों को मनमानी करनी का मौका मिल रहा, वो किसान की मज़बूरी का फायदा उठाकर फसलों की बोली बहुत कम दाम में लगा रहे हैं। 16 अक्टूबर से शुरू हुई इस योजना के इतने दिन बीत जाने के बाद भी किसानों को अभी तक मॉडल दर की जानकारी नहीं है।
सरकार ने इस योजना को बहुत कच्ची तैयारी के साथ लागू किया है, योजना के शुरू होने के महज हफ्ते भर पहले मंडियों से 1 अधिकारी को ट्रेनिंग दिलाई गई, उसके पहले तक इस योजना की जानकारी खुद अधिकारियों को नहीं थी, तो वो किसानों को क्या देते। सरकार को इस योजना को मार्च-अप्रैल से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए थी, ताकि अंतिम किसान तक इसकी जानकारी पहुँच सके।
किसानों को यह उलझी हुई योजना बिलकुल समझ नहीं आ रही, अभी तक वो समर्थन मूल्य में फसल बेच लिया करते है, अब उनके लिए ये समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि मॉडल दर क्या होगी, फसल कितनी बिकेगी, कब बिकेगी और पैसा कब आएगा। किसानों के बीच रजिस्ट्रेशन को लेकर भी बहुत भ्रम की स्तिथि इस लिए बनी हुई है क्योंकि ज़मीन में उन्हें इस योजना के बारे में जानकारी देने वाला कोई नहीं है।
भावन्तर लागू करने से सरकार को बड़ा फायदा ये भी है उसे अब मक्का, सोयाबीन जैसे मध्य प्रदेश की प्रमुख फसलों की खरीदी, ट्रांसपोटेशन, भण्डारण और इस खरीदी में होने वाले भ्रस्टाचार से मुक्ति मिल जायेगी।
नाम ना छापने की शर्त पर मंडी के एक बड़े अधिकारी का कहना है कि सरकार ने अपने फायदे के लिए, किसानों की बलि चढ़ा रही है। मुख्यमंत्री भावन्तर योजना से किसानों को अपनी आये बढ़ती नहीं, घटती नज़र आ रही है।