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क्या आपने पढ़ा है खुशवंत सिंह की "ट्रेन टू पाकिस्तान"

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देश के जाने माने लेखकों एवं पत्रकारों में अपना अलग स्थान बनाने वाले जिंदादिल इंसान के रूप में विख्यात खुशवंत सिंह ने बंटवारे जैसे बेहद गंभीर विषय पर एक पुस्तक ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ लिखकर लोगों को अपनी कलम की जादूगरी से अभिभूत कर दिया था.

यह उपन्यास अगस्त 1956 में पहली बार प्रकाशित हुआ था.अब तक इस उपन्यास के विभिन्न संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं.

उपन्यास के 50 वर्ष होने पर जारी किए गए संस्करण में भारत के विभाजन से संबंधित 60 ऐसी तस्वीरें भी शामिल की गई थीं जो पहले कहीं प्रकाशित नहीं हुई थीं. ये तस्वीरें अमरीकी पत्रिका ‘लाइफ़’ की फ़ोटोग्राफ़र मार्ग्रेट व्हाइट ने ख़ीची थीं. इस संस्करण में मूल कहानी के अतिरिक्त बहुत-सी और कहानियाँ भी शामिल की गई हैं जो खुशवंत सिंह ने अपनी नई भूमिका में व्यक्त की हैं.

ट्रेन टू पाकिस्तान’ में पंजाब के एक कल्पित गांव ‘मनु माजरा’ की कहानी कहता है. यह गाँव भारत-पाक सीमा के क़रीब ही स्थित है यहाँ सदियों से मुसलमान और सिख मिल-जुल कर रह रहे हैं. पर देश के विभाजन के साथ ही स्थितियाँ बदल जाती हैं और लोग एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे हो जाते हैं.यह सारा वृत्तांत एक प्रेम कहानी की पृष्ठभूमि में है.

इस किताब की भूमिका में खुशवंत सिंह ने लिखा है, “हंसते-हंसते ख़ानदान विभाजित हो कर रह गए और पुराने दोस्त हमेशा के लिए बिछुड़ गए. अब हमें एक दूसरे से मिलने के लिए पासपोर्ट, वीज़ा और पुलिस थाने की रिपोर्ट की दरकार है.”

वो कहते हैं, “1947 के विभाजन से अगर कोई सबक़ मिलता है तो सिर्फ़ इतना कि भविष्य में ऐसा कभी नहीं होना चाहिए और यह ख़्वाहिश इसी स्थिति में पूरी हो सकती है जब हम उपमहाद्वीप की विभिन्न नस्लों और धर्म वासियों को एक दूसरे के क़रीब लाने की कोशिश करें.”

खुशवंत सिंह ने इस उपन्यास में सिर्फ़ विभाजन की त्रासदी ही नहीं लिखी है बल्कि जिहालत और ग़रीबी का भी चित्रण किया है जो जनता की परेशानी की असल जड़ हैं.
इस उपन्यास में लेखक ने स्वतंत्रता, बराबरी और जनता के राज का नारा लगाने वाली पार्टियों और देहात में फैले हुए उनके कार्यकर्ताओं की भी पोल खोलने की कोशिश की है.