देश के पहले इंजिनियर कहे जाने वाले डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की 14 अप्रैल को 56वीं पुण्यतिथि है. 15 सितम्बर 1861 को कर्नाटक में जन्म लेने वाले डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का 101 वर्ष की दीर्घायु में 14 अप्रैल 1962 को निधन हो गया था.ब्रिटिश गुलामी के दौर में अपनी प्रतिभा से भारत के विकास में योगदान देने वाले सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एक युगद्रष्टा इंजीनियर थे. हर साल 15 सितंबर को उनकी याद में ही इंजीनियर दिवस मनाया जाता है.
वर्ष 1883 में इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का पसंदीदा विषय सिविल इंजीनियरिंग था. कॅरियर के आरंभिक दौर में ही मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने कोल्हापुर, बेलगाम, धारवाड़, बीजापुर, अहमदाबाद एवं पूना समेत कई शहरों में जल आपूर्ति परियोजनाओं पर खूब काम किया था.देशभर में बने कई नदियों के डेम, ब्रिज और पीने के पानी की स्कीम को कामयाब बनाने के पीछे मोक्षगुंडम का बहुत बड़ा योगदान है.विश्वेश्वरैया को पूना के पास स्थित खड़कवासला बांध की जलभंडारण क्षमता में बांध को ऊंचा किए बिना बढ़ोतरी के लिए पहली बार ख्याति मिली थी.
विश्वसरैया ने वर्ष 1932 में ‘कृष्णा राजा सागर बांध’ के निर्माण में चीफ इंजीनियर के रूप में भूमिका निभाई थी. लेकिन इस बांध को बनाना इतना आसान नहीं था क्योंकि ‘कृष्णा राजा सागर बांध’ के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट नहीं बनता था.लेकिन विश्वसरैया ने हार नहीं मानी जिसके बाद उन्होंने इंजीनियर के साथ मिलकर ‘मोर्टार’ तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था. ये बांध कर्नाटक राज्य में स्थित है. उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा बांध था साबित हुआ जिसकी लंबाई 2621 मीटर और ऊंचाई 39 मीटर है.
आज कृष्णराज सागर बांध से निकली 45 किलोमीटर लंबी विश्वेश्वरैया नहर एवं इस बांध से निकली अन्य नहरों से कर्नाटक के रामनगरम और कनकपुरा के अलावा मंड्या, मालवली, नागमंडला, कुनिगल और चंद्रपटना तहसीलों की करीब 1.25 लाख एकड़ भूमि में सिंचाई होती है. विद्युत उत्पादन के साथ ही मैसूर एवं बंगलूरू जैसे शहरों को पेयजल आपूर्ति करने वाला कृष्णराज सागर बांध सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के तकनीकी कौशल और प्रशासनिक योजना की सफलता की कहानी कहता है.डॉ मोक्षगुंडम को लोग दक्षिणी बेंगलुरु में स्थित जयानगर इलाके का डिजाइन और उसकी योजना बनाने के लिए भी जानते हैं. एशिया के बेस्ट प्लानड लेयआउट्स में एक जयनागर है जिसका डिज़ाइन पूर्ण रूप से मोक्षागुंडम ने ही किया था.
वर्ष 1913 में वे मैसूर के दीवान बनाये गये.विश्वेश्वरैया मैसूर राज्य में व्याप्त अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि आधारभूत समस्याओं को लेकर भी चिंतित थे. कारखानों की कमी, सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भरता तथा खेती के पारंपरिक साधनों के प्रयोग के कारण विकास नहीं हो पा रहा था. इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्वेश्वरैया ने काफी प्रयास किए. सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की दूरदर्शिता के कारण मैसूर में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया और लड़कियों की शिक्षा के लिए पहल की गई.
मैसूर में उन्होंने अपने कार्यकाल में स्कूलों की संख्या 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दी थी.इसके साथ-साथ उन्होंने कई कृषि, इंजीनियरिंग और औद्योगिक कॉलेजों को भी खुलवाया ताकि देश के नौजवान अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें. मोक्षगुंडम के सम्मान में कर्नाटक में उनके नाम पर कॉलेज भी बनाया गया. इसके बाद बेंगलुरु में भी उनके नाम के 2 टेक्नॉलोजी इंस्टीट्यूट भी खोले गए. इन महान इंजिनियर के सम्मान में बेंगलुरु में विश्वेश्वरैय्या इंडस्ट्रीयल एंड टेकनोलॉजी म्यूजय़िम भी स्थापित किया गया.समाज के संपूर्ण विकास के उनके कार्यों के कारण ही उन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है.
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