कामराज” जिन्होनें प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया..

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आपको ये सुन कर कैसे लगेगा अगर ये कहा जाए की एक नेता ने “प्रधानमंत्री” बनने से मना कर दिया था,बहुमत,पार्टी की कमान से लेकर कोई विरोधी भी सामने न हो तब भी वो देश के सबसे बड़े पद को लेने से मना कर दे।

अब वजह भी जान लीजिए क्यूंकि इस शख्स को हिंदी और अंग्रेजी ठीक से बोलनी नहीं आती थी,जी हां,यही वो उसूल हैं जिनकी तलाश अब आपको गूगल पर करनी होगी।

मैं यहां जिस शख्स के बारे में बात कर रहा हूँ वो शख्स हैं कांग्रेस के अध्यक्ष रहें,मद्रास में 15 जुलाई 1903 को पैदा होने वाले नेता “के. कामराज” जो देश के उन नेताओं में से एक हैं जिन्हें भूला दिया गया है।

जबकि ये शख्स 9 सालों तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे हो,कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हो और देश मे “मिड डे मील” जैसी अद्धभुत योजना लाये हो।

गरीब बच्चों के लिए मिड डे मील शुरू करने वाले

बहुत कम लोगों को पता होगा कि आज जिस मिड डे मील (Mid day Meal Scheme)जिसको लेकर आज भी चर्चा होती है, पहली मिड डे मील योजना के. कामराज ने शुरू की थी,जब वो मद्रास(अब तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री थे।

आजादी के आंदोलन में कई बार गिरफ्तार हुए कामराज ने तकरीबन 10 साल जेल में गुजारे. ऐसे में 1954 में मद्रास के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद उन्होंने मिड डे मील, फ्री यूनीफॉर्म जैसी कई योजनाओं के जरिए स्कूली व्यवस्था में कामराज ने ऐसा सुधार कि जो साक्षरता ब्रिटिश राज में सिर्फ 7 फीसदी रहा करती थी वो 37 फीसद हो गयी थी।

चेन्नई के मरीना बीच पर आज जो के. कामराज का स्टेच्यू लगा है, वो उनके अकेले का नहीं है बल्कि बगल में दो बच्चों का स्टेच्यू भी है,जो कामराज के एजुकेशन फील्ड में किए गए काम को बयान करने के लिए काफी है।

प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया

जब पंडित नेहरू की 1964 में मौत हुई तो गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक पीएम बनाने से लेकर मोरारजी देसाई और इंदिरा की बजाय शास्त्री जी को चुनने का फैसला इन्होंने ही लिया था।

लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत के बाद फिर मोरारजी देसाई की जगह इंदिरा को पीएम बनाने का फैसला हो, या फिर इंदिरा कैबिनेट में शास्त्री जी के कैबिनेट में इंदिरा गांधी को जगह दिलाना हो ये सब कुछ कामराज ही ने करके दिखाया।

एक वक्त ऐसा आया कि वो खुद पीएम बनने की ताकत होने के बावजूद उन्होंने ये पद लेने से मना कर दिया कि “मुझे ना हिंदी आती है और ना अंग्रेजी, मैं कैसे पीएम बन सकता हूं” एक बार उन्होंने शास्त्री जी को और दूसरी बार इंदिरा गांधी को पीएम बनवाया और इत्तेफाक देखिये दोनों ही बार मोरारजी देसाई को किनारे कर दिया गया।

“कामराज का प्लान,जिसने कांग्रेस की जड़े मज़बूत कर दी थी”

के कामराज (K Kamaraj Plan) ने प्रधानमंत्री नेहरू को एक प्लान सुझाया था,उन्होंने कहा कि कांग्रेस के सीनियर नेताओं को सरकार में अपने पद छोड़कर पार्टी के लिए ज़मीनी काम करना चाहिए।

इसी प्लान को कामराज प्लान कहा जाता है, ये सुझाव थोड़ा मुश्किल था क्योंकि उस वक्त भी कुछ ऐसे नेता थे जिनको ऐसा लग रहा था कि ये प्लान कुछ नेताओं को हटाने के लिए है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था।

और जब लागू हुआ “कामराज” प्लान

इस “कामराज प्लान” को कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने मंजूरी दे दी थी और 2 महीने के अंदर ही यह लागू हो गया और इसकी शुरुआत खुद कामराज ने की थी,जिन्होंने इसी प्लान के तहत 2 अक्टूबर 1963 को मद्रास के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था।

उस दौरान कामराज, बीजू पटनायक और एसके पाटिल सहित 6 मुख्यमंत्रियों और मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और लाल बहादुर शास्त्री सहित 6 मंत्रियों ने अपने पद छोड़े दिए थे।

इसके बाद ये सभी पार्टी के लिए काम करने में जुट गए। सरकार में पद छोड़कर पार्टी में काम करने के इसी प्लान को कामराज प्लान कहा जाता है।

के. कामराज को क्यों याद रखना और याद किया जाना चाहिए

के. कामराज उन उसूलों को मानने और अपनाने वाले नेता थे जो पार्टी को प्राथमिकता दिया करते थे,न की खुद को,वरना क्या ऐसी वजह है कि कांग्रेस को 2 साल के बाद भी “परमानेंट” अध्यक्ष नहीं मिल पा रहा है,और मिल भी रहा है तो वो चर्चा सिर्फ राहुल गांधी तक ही हो रही है?

क्या वजह है कि राहुल खुद सामने आकर ये नहीं कहते हैं कि “अध्यक्ष का चुनाव कराइये और मैं इसमे उम्मीदवार नहीं रहूंगा” काश ये अपने पुरखों से ही कुछ सीख लें और सुधार करें,और जाने की कामराज जैसे दिग्गज नेता इतिहास लिखा करते थे और उसूलों पर चला करते थे।