डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम साहब निजी जीवन में धार्मिक व्यक्ति थे। इनकी किताबें पढ़ने से पता चलता है कि इनका धर्म के प्रति विश्वास कितना गहरा था। इस्लामी परम्परा का ये बख़ूबी पालन करते थे। अपनी किताब ‘इग्नाइटेड माइंड’ में इन्होंने क़ुरान से लेकर पैग़म्बर मोहम्मद साहब का ज़िक्र भी बख़ूबी किया। कई जगह इन्होंने कोट करके इस्लाम को लेकर एक बेहतरीन अंदाज़ में अपनी बात कही है, मोहम्मद साहब की ज़िंदगी की तमाम पहलुओं से बहुत अच्छी तरह से मुतास्सिर थे।
लेकिन बौद्धिक जगत ने समाज में जो इनकी छवि बनाई वो बहुत ग़लत तरीक़े से पेश किया। इतनी बेहतरीन शख़्सियत पर भी वामपंथी जगत ने छींटाकशी तक की। जिसका असर नई मुस्लिम युवा जेनेरेशन तक को हुआ। बहुत से मुस्लिम युवा ख़ुद इस बात को मानने लगे कि कलाम साहब का नज़रिया धर्म को लेकर सही नहीं था। जो कि बेहद अफ़सोस की बात है, और ये कहीं न कहीं हमारी जहनी ग़ुलामी की अक्कासी करती है।
आज़ादी के बाद से भारतीय मुसलमानों ने अपने दिमाग़ को कूड़े की ढेर पे रख दिया और उन बौद्धिक वर्ग की हर बात को सच मान लिया इसीलिए आज ये क़ौम ग़ुलामी की आख़िरी हदों से भी आख़िर में जा पहुँची है।
कलाम साहब इस देश के अनमोल नगीने एवं भारतीय मुस्लिम समाज का गौरव हैं। मुसलमानों का आज़ाद भारत में सबसे बड़ा रोल मॉडल हैं। कलाम साहब ने इस देश के लिए जितना कुछ किया उतना कोई ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता। तमाम सुविधाओं से सम्पन्न होने के बावजूद जिस तरह से इन्होंने फ़क़ीरी और दरवेशी में अपनी ज़िंदगी गुज़ारी वो अपने आप में एक मिसाल है।
सदी के इस महापुरुष की यौम ए पैदाईश पर मुबारकबाद, क़ौम ओ मिल्लत को कलाम साहब जैसी शख़्सियत पर हमेशा से नाज़ रहा है।
“हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा !!”