‘बस एक मुट्ठी चावल खाया है। दूध नहीं उतर रहा है, बेटी को कैसे पिलाऊं… पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं।’ दिल्ली की महक आठ दिन पहले मां बनी हैं। महक और उनके पति गोपाल नैनीताल के रहने वाले हैं। उनके पास पैसे नहीं हैं, वे अस्पताल भी नहीं जा सके। वे दिल्ली में मजदूरी करते हैं।
केजरीवाल ने सात अप्रैल को कहा कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, उनके भी खाने की व्यवस्था आठ अप्रैल से करेंगे। यानी 24 मार्च को तालाबंदी हुई और 8 अप्रैल तक तमाम लोगों को खाना नहीं मिल रहा था। क्या सरकार ये सोच रही है कि जो लंगर चलते हैं, वहां अमीर भी खाना लूटने आता है? फिर राशनकार्ड की बाध्यता क्यों है?
सरकार ने बिना राशन कार्ड वालों के लिए व्यवस्था की है आनलाइन रजिस्ट्रेशन कराएं, अद्भुत है! जिनको खाने को नहीं मिल रहा है, वे लैपटॉप, कंप्यूटर और स्मार्टफोन से आनलाइन रजिस्ट्रेशन करेंगे? अव्वल तो यह है कि 13 अप्रैल को एनडीटीवी ने रिपोर्ट किया कि तीन दिन तक यह वेबसाइट हैंग चल रही है।
सरकारें बहुत कुछ कर रही हैं, लेकिन वह अपर्याप्त साबित हो रहा है। सरकार से अपील है कि राशन कार्ड, आधार कार्ड, आंख की पुतली और किडनी मांगना बंद करें और जब तक यह आपदा है, तब तक भूखे लोगों को खाना खिला दें। यह नहीं भूलना चाहिए कि यह चमचमाते शहर इन्हीं मजदूरों ने बसाए हैं।
नोट – यह लेख लेखक की फ़ेसबुक वाल से लिया गया है।