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जब पान की दुकान पर खड़े थे "अभिनेता प्राण"

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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता प्राण को उनकी खलनायकी और रौबदार अंदाज के लिए जाना जाता है.बॉलीवुड में प्राण एक ऐसे खलनायक थे जिन्होंने पचास और सत्तर के दशक के बीच फिल्म इंडस्ट्री पर खलनायकी के क्षेत्र में एकछत्र राज किया और अपने अभिनय का लोहा मनवाया.जिस फिल्म में प्राण होते दर्शक उसे देखने सिनेमाहॉल अवश्य जाया करते थे.इस दौरान उन्होंने जितनी भी फिल्मों में अभिनय किया, उसे देखकर ऐसा लगा कि वे किरदार वही निभा सकते थे.एक दौर ऐसा भी था जब इस फिल्मी खलनायक की  फीस किसी भी फिल्म के नायक से ज्यादा होती थी.

शुरुआती जीवन

प्राण साहब का जन्म 12 फ़रवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में बसे एक रईस परिवार में हुआ था. उनका बचपन का नाम ‘प्राण कृष्ण सिकंद’ था. दिल्ली में उनका परिवार बेहद समृद्ध था.उनके पिता लाला केवल कृष्ण सिकन्द एक सरकारी ठेकेदार थे, जो आम तौर पर सड़क और पुल का निर्माण करवाते थे. देहरादून के पास कलसी पुल उनका ही बनाया हुआ है. अपने काम के सिलसिले में इधर-उधर रहने वाले लाला केवल कृष्ण सिकन्द के बेटे प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर जैसे शहरों में हुई.
बहुत कम लोग जानते होंगे कि एक सशक्त और सफल अभिनेता के बचपन का स्वप्न बड़े होकर एक फोटोग्राफर बनाना था और इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने , दिल्ली की एक कंपनी ‘ए दास & कंपनी’ में एक अप्रेंटिस के तौर पर काम भी किया.

इस तरह आये फिल्मी दुनिया में

प्राण पान खाने के बेहद शौकीन थे और उन्हें पहली बार पान की दुकान पर ही सिनेमा में काम करने का ऑफर मिला था. 1940 में लेखक मोहम्मद वली ने जब पान की दुकान पर प्राण को खड़े देखा तो पहली नजर में ही सोच लिया कि ये उनकी पंजाबी फ़िल्म “यमला जट” के लिए बेहतर है. उन्होंने प्राण को इसके लिए तैयार किया. ये फिल्म बेहद सफल रही.
एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि प्राण साहब ने अपने पिता से अपने फ़िल्म कैरियर की बात छिपाई थी, लेकिन जब अखबार में उनका पहला इंटरव्यू आया तो वह पढ़कर उनके पिता बहुत खुश हुए थे.
एक नकारात्मक अभिनेता की छवि बनाने में कामयाब हो चुके प्राण को हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक 1942 में फिल्म ‘खानदान’ से मिला. दलसुख पंचौली की इस फिल्म में उनकी नायिका नूरजहां थीं.
बंटवारे से पहले प्राण ने 22 फिल्मों में नकारात्मक भूमिका निभाई. वे उस समय के काफी चर्चित विलेन बन चुके थे.आजादी के बाद उन्होंने लाहौर छोड़ दिया और वे मुंबई आ गए.यह उनके लिये संघर्ष का समय था.
लेखक शहादत हसन मंटो और अभिनेता श्याम की सहायता से प्राण को बॉम्बे टॉकीज की फिल्म जिद्दी में अभिनय का अवसर मिला. फिल्म जिद्दी में मुख्य किरदार देवानंद और कामिनी कौशल थे. उसके बाद गृहस्थी, प्रभात फिल्म्स की अपराधी, वली मोहम्मद की पुतली जैसी फिल्में काफी महत्वपूर्ण रही.
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खलनायकी में डाली जान

इस दशक की सभी फिल्मों में अभिनेता प्राण नकारात्मक भूमिका में नजर आए.1955 में दिलीप कुमार के साथ आजाद, मधुमती, देवदास, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम और आदमी नामक फिल्मों के किरदार महत्वपूर्ण रहे तो देव आनंद के साथ मुनीमजी (1955), अमरदीप (1958) जैसी फिल्में पसंद की गई. राज कपूर अभिनीत फिल्में आह, चोरी-चोरी, छलिया, जिस देश में गंगा बहती है, दिल ही तो है जैसी फिल्में हमेशा याद की जाएंगी.देवानंद के साथ जोड़ी फिल्म उद्योग में चालीस की उम्र में भी प्राण की डिमांड कम नहीं हुई. प्राण ने हलाकू नमक फिल्म में मुख्य अभिनेता का किरदार निभाया यह एक सशक्त डाकू का किरदार था.साठ के दशक के बाद भी प्राण का अभिनेता देवानंद के साथ सफल जोड़ी बनी रही बात चाहे जॉनी मेरा नाम, वारदात या देस परदेस की करें, ज्यादातर सभी फिल्में दर्शकों को बेहद पसंद आई.

हास्य अभिनेता भी बने

हास्य अभिनेता किशोर कुमार और महमूद के साथ भी उनकी फिल्में पसंद की गईं. किशोर कुमार के साथ फिल्म नया अंदाज, आशा, बेवकूफ, हाफ टिकट, मन मौजी, एक राज, जालसाज जैसी यादगार फिल्में हैं तो महमूद के साथ साधू और शैतान, लाखों में एक प्रमुख फिल्म रही.

चरित्र किरदार भी निभाए

अभिनेता और डायरेक्टर मनोज कुमार ने प्राण के अभिनय के कुछ और रंगों से हमें परिचित कराया.उन्होंने ही प्राण को विलेन के रोल से निकालकर पहली बार ‘उपकार’ में अलग तरह के किरदार निभाने का मौका दिया. 1967 में अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म में मलंग चाचा के किरदार ने प्राण का चरित्र किरदार की तरफ झुकाव बढाया.उसके बाद प्राण कई फ़िल्मों में ज़बर्दस्त चरित्र या सहायक अभिनेता के रूप में उभर कर सामने आये.
प्राण ने शहीद, पूरब और पश्चिम, बे-ईमान, सन्यासी, दस नम्बरी, पत्थर के सनम में महत्वपूर्ण किरदार निभाए.अभिनेता शशि कपूर के साथ भी उनकी कई फिल्में जैसे बिरादरी, चोरी मेरा काम, फांसी, शंकर दादा, चक्कर पे चक्कर, राहू केतु, अपना खून और मान गए उस्ताद जैसी फिल्मे बेहद सफल रही.हमजोली, परिचय, आंखों आंखों में, झील के उस पार, जिंदादिल, ज़हरीला इंसान, हत्यारा, चोर हो तो ऐसा, धन दौलत, जानवर (1983), राज तिलक, इन्साफ कौन करेगा, बेवफाई, इमानदार, सनम बेवफा, 1942 ए लव स्टोरी, फिल्मों में चरित्र अभिनेता के तौर पर नजर आये.
प्राण अकेले ऐसे अभिनेता है, जिन्होंने कपूर खानदान की हर पीढ़ी के साथ काम किया.चाहे वह पृथ्वीराज कपूर हो, राजकपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर, रणधीर कपूर, राजीव कपूर, रणधीर कपूर, करिश्मा कपूर, करीना कपूर.
नब्बे दशक के शुरुवात से उन्होंने फिल्मो में अभिनय के प्रस्ताव को बढती उम्र और स्वास्थ्य के चलते अस्वीकार करने लगे लेकिन करीबी अमिताभ बच्चन के घरेलु बैनर की फिल्म मृत्युदाता और तेरे मेरे सपने में नजर आये.

यारों के यार थे प्राण साहब

प्राण को बतौर अभिनेता तो सभी जानते हैं लेकिन, बतौर इंसान भी वह एक कमाल की शख्सियत थे. भले ही फ़िल्मों में उन्होंने हमेशा ही नकारात्मक भूमिकाएं निभाई हैं लेकिन,असल ज़िन्दगी में उनके पास एक हीरो सा दिल था. वह अपने बारे में बाद में, पहले लोगों के बारे में सोचा करते थे.
अभिनेता और निर्देशक राज कपूर की फ़िल्म ‘बॉबी’ में काम करने के लिए प्राण ने महज एक रुपये की फीस ही ली थी, क्योंकि उस दौरान राज कपूर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे.दरअसल  ‘बॉबी’ से पहले अपनी फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ बनाने के लिए राजकपूर अपना सारा पैसा लगा चुके थे.यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल रही जिसके बाद राजकपूर भयंकर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे. फिर ‘बॉबी’ से वो अपने नुकसान की भरपाई की उम्मीद कर रहे थे,जिसके लिए प्राण ने राजकपूर के लिए इस फ़िल्म में महज एक रूपये में काम करना स्वीकार किया.
यह भी एक किस्सा है कि अमिताभ बच्चन को बिग बी बनाने में भी प्राण का सबसे बड़ा हाथ है.
अमिताभ बच्चन के अभिनय कैरियर को बदलने वाली फिल्म जंजीर के किरदार विजय के लिये निर्देशक प्रकाश मेहरा को प्राण ने सुझाया था.इस किरदार को पहले देव आनंद और धर्मेन्द्र ने नकार दिया था. प्राण ने अमिताभ की दोस्ती के चलते इसमें शेरखान का किरदार भी निभाया. इसके बाद अमिताभ बच्चन के साथ ज़ंजीर, डान, अमर अकबर अन्थोनी, मजबूर, दोस्ताना, नसीब, कालिया और शराबी जैसी फिल्में महत्वपूर्ण हैं.
प्राण साहब ने साल 1972 में फ़िल्म ‘बेइमान’ के लिए बेस्ट सपोर्टिग का फ़िल्मफेयर अवार्ड लौटा दिया था, क्योंकि उस साल आई कमाल अमरोही की फ़िल्म ‘पाकीजा’ को एक भी पुरस्कार नहीं मिले थे. पुरस्कार लौटा कर प्राण ने अपना विरोध जताया कि ‘पाकीजा’ को अवार्ड न देकर फ़िल्मफेयर ने अवार्ड देने में चूक की है! ऐसे अभिनेता आज के समय में दुर्लभ हैं.
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कई पुरस्कार अपने नाम किये

बॉलीवुड में प्राण ने 350 से अधिक फ़िल्मों में काम किया. उन्होंने खानदान (1942), पिलपिली साहेब (1954) और हलाकू (1956) जैसी फ़िल्मों में मुख्य अभिनेता की भूमिका निभायी. उनकी बेस्ट एक्टिंग मधुमती (1958), जिस देश में गंगा बहती है (1960), उपकार (1967), शहीद (1965), आँसू बन गये फूल (1969), जॉनी मेरा नाम (1970), विक्टोरिया नम्बर 203 (1972), बे-ईमान (1972), ज़ंजीर (1973), डॉन (1978) और दुनिया (1984) फ़िल्मों में माना जाता है.
प्राण ने अपने कैरियर के दौरान विभिन्न पुरस्कार और सम्मान अपने नाम किये. उन्होंने 1967, 1969 और 1972 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार और 1997 में फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड जीता.
प्राण जी को साल 2000 में स्टारडस्ट द्वारा ‘मिलेनियम के खलनायक’ द्वारा सम्मानित किया गया. साल 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया.
भारतीय सिनेमा में योगदान के लिये साल 2013 में दादा साहब फाल्के सम्मान से नवाजा गया. साल 2010 में सीएनएन की सर्वश्रेष्ठ 25 सर्वकालिक एशियाई अभिनेताओं में चुना गया.
जीवन के आखिरी सालों में प्राण कांपते पैरों के कारण व्हील चेयर पर आ गए थे. 12 जुलाई, 2013 को उनका निधन हो गया.प्राण के द्वारा निभाए गए खलनायकी के किरदारों का असर ऐसा रहा कि उनके फ़िल्मों में उभरने के बाद इस देश में पैदा हुए किसी बच्चे का नाम ‘प्राण’ नहीं रखा गया. तिरछे होंठो से संवाद बोलना और चेहरे के भाव को पल-पल बदलने में निपुण प्राण ने उस दौर में खलनायक को भी एक अहम पात्र के रूप में सिने जगत में स्थापित कर दिया. उनके द्वारा गंभीर आवाज में बोला गया डायलॉग “बरखुद्दार” आज भी हिंदी फिल्म जगत के कुछ चुनिन्दा प्रसिद्ध डायलोगों में से एक है !

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