इसे चेतावनी ही मान लें, कोरोना का आतंक और असर पिछले साल से कई गुना अधिक है । दिल्ली एनसीआर में अस्पताल में बिस्तर नहीं हैं, ऑक्सीजन नहीं है , वेंटिलेटर का अकाल है । भोपाल, पुणे जैसे शहर मौत घर बने हैं — सिवनी, छिंदवाडा हो या लखनऊ गुवाहाटी मौत नाच रही है । वायरस अपने रूप बदलता रहा और हम नारे लगाते रहे, झूठी शान, आपदा के लिए तयारी के बनिस्बत श्रेय लूटने के छिछोरेपन और प्रकृति के विपरीत खड़े होने की जिद ने आज हालात बहुत गमगीन कर दिए हैं। बहुत लोग मर रहे हैं सो कोरोना नहीं है या इसका मुझ पर असर इन होगा जैसे दम्भ में मत रहे । जितना हो घर पर रहें, हाथ और मास्क की पाबंदी खतरे को कुछ बचा सकती है।
इस बार का वायरस पिछले साल की तुलना में दो दर्जन बार रूप बदल चुका है, अर्थ यह इन्सान के रक्त कणिकाओं में अलग तरीके से कब्जा कर रहा रहा है, आँखों में खुजली या पानी आना , पेट खराब होना या कई बार बुखार भी न आना और महज कमजोरी लगने का अर्थ भी है कि कोरोना वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर चुका है। एक या दो बार टीका लगवा कर भी निरापद नहीं हैं । यह टीका महज साठ फीसदी ही सफल है, मेरे मन में भी कई शक होते हैं। इस टीके को ले कर लेकिन यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समर्थक हैं तो इसे स्वीकारना ही होगा। अब यह तो उनका ईमान जानता है कि सुरक्षा बल- न्यायपालिका जैसे ही वैज्ञानिकों का जमीर यदि सियासत के सामने बिका ना हो।
जान लें – पलायन के बाद लोगों का गाँव से शहर लौटना , चुनाव के लिए भीड़ जोड़ना , बगैर सोचे समझे बाजार- यातायात को सामान्य कर देना – शिक्षण संसथान खोल देना — जैसी ऐसी गलतियां हैं जो देश को बहुत भार पड़ेंगी। अब हालात बेकाबू हैं
- हम एक साल में वेक्सिन और कोरोना से निपटने की दवा खोजने का दावा करते रहे लेकिन आपातकाल में चिकित्सा तन्त्र की मजबूती के लिए काम नहीं कर पाए। एक साल बाद भी हम बिस्तर, ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं। वेक्सिन का स्टोक खत्म है । कोरोना की दवा के लिए कई किलोमीटर लम्बी कतारें हैं और ब्लैक में बिक रही है। जान लें कि कोरोना के विस्तार से उन लोगों की दिक्कतें और बढ़ जाती हैं जो अन्य बीमारियों से ग्रस्त हैं। दिल्ली एम्स हो या लखनऊ का मेडिकल कालेज बड़ी संख्या में चिकित्सक संक्रमित हो गये हैं। वैसे ही हमारे यहाँ डॉक्टरों की कमी है , यह हालात कई अन्य रोगियों को बगैर इलाज के लिए मरने को मजबूर कर रहे हैं।
- आरोग्य सेतु अस्पताल के आंकड़े जब सरकार के पास हैं तो प्लाज्मा के लिए लोगों को खोजना क्यों पड़ रहा है?
- हर मोहल्ले में वेक्सिन की तैयारी क्यों नहीं, साठ साल से अधिक और 14 साल से कम के लोगों को घर में रहना अनिवार्य किया जाए, यदि प्रारंभ में केवल शहरी आबादी (जहां भीड़ के कारण संक्रमण तेजी से फैलता है ) को सामने रखा जाए तो हमें कोई 35 करोड़ को वेक्सिन करना होगा। इस योजना से क्यों काम नहीं हुआ ?
- कोरोना काल में जबरिया वसूला गया स्पेशल फंड कहाँ गया जो अब लोगों से वेक्सिन के पैसे वसूले जा रहे हैं?
- आक्सीजन उत्पादन, वेक्सिन उत्पादन को क्यों नही बढ़ाया गया।
- गांधी नगर , गुजरात के स्थानीय निकाय के चुनाव कोरोना के कारण स्थगित कर दिए गये लेकिन उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव या मध्य प्रदेश की दमोह सीट पर उप चुनाव या पांच राज्यों में चुनाव क्यों नहीं रोका गया ? काश हमारे नेता थोड़े नैतिक, जिम्मेदार और सत्ता लूटने के आकांक्षी नहीं होते और घोषणा करते कि वे खुद ना तो रैली करेंगे, न प्रचार , इस बार जनता बगैर भीड़ जोड़े ही वोट दे । इसमें सबसे निराशाजनक, गैरजिम्मेदाराना और नकारा चुनाव आयोग रहा । उसे केंचुआ नहीं कह सकता, केंचुआ बहुत काम का होता है।
- अभी प्रकृति नहीं चाहती है कि उसे फिर दूषित करो लेकिन हमने लॉक डाउन को उसकी मर्जी के विपरीत पूरा खोल दिया और फिर गंदगी मचाना शुरू कर दी। एक साल में हमारे पास पलायन, दैनिक मज़दूर और मजबूर लोगों के आंकड़े थे। काश विज्ञपन पर पैसे फूंकने की जगह इन लोगों को नियमित राशन, घर से काम के विकल्प के लिए योजनाबध्ध काम किया जाता, सरकारी दफ्तर खोलने की जल्दी थी ताकि मलाईदार लोग फिर जुट सकें। आज भी कई निजी कम्पनियाँ वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं हैं और उनके स्टाफ का कोविड आंकडा लगभग शून्य है ।
- क्या कुम्भ में भीड़ जोड़ने से बचा नहीं जा सकता था?
लॉक डाउन तो करना होगा लेकिन पलायन होता है तो संक्रमण तेजीसे फैलेगा। सरकार अमेरिका की तर्ज पर असंगठित क्षेत्र के लोगों के खाते में सीधे धन भेजने, बाज़ार को एक चौथाई खोलने जैसी योजना पर विचार करना होगा, रात्रि कर्फ्यू महज पुलिस राज के परिक्षण के लिए हैं। भीड़, लापरवाही दिन में ज्यादा होती है ।
जान लें लापरवाह मत रहें, वायरस बहुत खतरनाक है । इस बार डिप्रेशन और बैचेनी अभी बढ़ेगी, घर दोस्तों को साथ बनाये रखें।