रेलवे बजट अब भूले बिसरे गीतों में शामिल हो चुका है। ज्यादा वर्ष नही हुए है, जब यूनियन बजट के एक दिन पहले सदन में रेल बजट पेश किया जाता था। उसमे इतना घोषणाएं होती थी, कि अखबारों के पूरे मुख पृष्ठ भर जाते थे। तीन चार दिनों तक किस क्षेत्र को कितनी रेल सुविधाएं मिली इसी पर बहस चला करती थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में रेल बजट का विलय आम बजट में ही कर दिया था।
अब रेलवे की कोई पूछ परख नही है। निजीकरण जो करना है, मोदी सरकार की निजीकरण की नीतियां रेलवे बोर्ड पर भारी पड़ती जाएगी। क्योंकि वह मोदी सरकार के दबाव में फायदेमंद रूटों पर प्राइवेट ट्रेन योजना को मंजूरी दे रहा है। लेकिन इस योजना से उसके वित्तीय संसाधन जुटाने की क्षमता पर विपरीत असर पड़ रहा है।
रेलवे मंत्रालय के पास तक़रीबन 15.5 लाख रिटायर्ड कर्मचारी हैं। प्रति माह रेलवे इन कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए पैसा खर्च करती है। इसके अतिरिक्त रेलवे में काम करने वाले 12.5 लाख कर्मचारियों की मासिक सैलरी अलग से वहन करना पड़ता है। इस हिसाब से रेलवे का कुल खर्च उसके कुल कमाई के लगभग ही रहता है। रेलवे के पेंशनधारकों का भुगतान रेल राजस्व से होता है।
इसलिए रेलवे ने वित्त मंत्रालय से अनुरोध किया है, कि वह पेंशन के बोझ से उसे मुक्त कराए क्योंकि वह हर वर्ष अपनी आय से 50 हजार करोड़ रुपये का भुगतान इस मद में कर रहा है। इस बजट में यह माँग मंजूर किये जाने की संभावना थी, सरकार की जो वित्तीय हालत नजर आ रही है उसमें यह माँग मंजूर होना मुश्किल लग रहा है। यदि माँग मंजूर नहीं हुई तो रेलवे के लगभग 15 लाख कर्मचारियों की पेंशन भी खतरे में पड़ सकती हैं।
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