कोरोना से इतना डराना कहीं घातक तो नहीं?

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सबसे पहले आप इस व्हाट्सएप वायरल मैसेज को पढ़िए-

चेतावनी– अगर किसी को कोरोना हो गया तो आप सब से विनती है कि निम्नलिखित पर गौर करें :

  1. इलाज के लिए अकेले को ही ले जाया जाएगा।
  2. आइसोलेशन में अकेले को ही रखा जायेगा।
  3. मरीज़ को कोई नहीं मिल पायेगा।
  4. देखरेख के लिये परिवार का कोई मेंबर पास नहीं रह पायेगा।
  5. अगर मरीज़ ठीक हो गया तो घर वापस आएगा वर्ना आप उसे कभी दोबारा देख नहीं पाएंगे।
  6. मरीज का अंतिम संस्कार अस्पताल वाले करेंगे आप उस का मुंह भी नहीं देख पाएंगे।
  7. आपको फोन पर मौत की खबर मिलेगी।
  8. ना ही अंतिम यात्रा, ना अंतिम विदाई और ना ही अंतिम दर्शन।

क्या यह सारे कारण कम हैं? इसलिए लॉकडाउन का पालन करें और घर पर ही रहें। इसी में आपकी सुरक्षा है।

इस व्हाट्सएप मैसेज का मक़सद असल में यह है कि लोग लॉकडाउन का पालन करें, घरों में रहे और कोरोना को फैलने से बचाएँ। ठीक है, अब आप थोड़ा सा ठहरिए। आप सोचिए कि आप एक 8 साल के बच्चे के अभिभावक हैं और आपके बच्चे को सर्दी, खाँसी और बुखार है। अब आप ऊपर वाले व्हाट्सएप मैसेज को फिर से पढ़िए। एक-एक लाइन को यह सोचते हुए पढ़िए कि यह आपके बेटे के साथ होने जा रहा है। डर लगा? लगा ना? अच्छा अब आप बताइए कि आपके बेटे के इन लक्षणों का अब आप क्या करेंगे? आप इन्हें बताएंगे या छुपाएंगे? हाँ, आप इन्हें छुपाने की कोशिश करेंगे जबतक कि उसके लक्षण खत्म ना हो जाए या उसकी स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ ना जाए। इससे क्या नुक़सान होगा? यदि वह कोरोना का रोगी हुआ तो वह कई और लोगों को भी संक्रमित कर देगा। इसकी वजह क्या है? यह डरावने मैसेज, जो किसी अतिउत्साही व्यक्ति द्वारा भेजे गए हैं, लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए। लेकिन असल में यह लॉकडाउन को फ़ेल कर देंगे।

आप कल्पना कीजिए कि उन लोगों पर इन मैसेजेस का क्या असर होता होगा जो कम पढ़े लिखे हैं और हर लिखी हुई बात को सच मानते हैं। गांव और छोटे कस्बे वालों के बारे में सोचिए कि उनपर इन बातों का क्या असर होता होगा। इसी डर के ओवर डोज़ से ही लोग कोरोना के मरीज़ या संदिग्ध से हत्यारों, आतंकियों और अछूतों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।

अभी जो सरकार का कोरोना नियंत्रण का तरीका है वह यह है कि विदेश से आए लोगों की जांच करें, फिर उनमें से जो कोरोना पॉज़िटिव हैं उनके सम्पर्क में आए लोगों की स्क्रीनिंग और जांच। अब बाकी के बचे हुए रोगी तो तभी पहचाने जाएंगे जब तक कि वे खुद सामने आकर अपने लक्षण ना बताएँ। यदि वे सामने नहीं आएंगे तो बहुत देर और नुक़सान हो जाएगा।

यह डर खत्म करना बेहद ज़रूरी है कोरोना से। लोगों को समझाना होगा कि यह सत्य नहीं है जो सोशल मीडिया पर वायरल है। अच्छे हुए रोगियों के वीडियो क्लिपिंग, क्वारटाइन में रह रहे लोगों की क्लिपिंग सरकार द्वारा लोगों को बताना चाहिए कि यह सब डरावना बिल्कुल नहीं है। उपचार का तरीका डरावना होने पर रोगी रोग के लक्षण नहीं बताता। यह बात कई बार हम डॉक्टर देखते हैं अपनी रोज़ाना की प्रैक्टिस में कि रोगी अपने लक्षणों को छुपाता है ताकि डॉक्टर जटिल रोग ना डायग्नोस कर लें और उसे जटिल सर्जरी ना करवाना पड़ जाए। अतिरिक्त और बेवजह के डर खत्म करना ज़रूरी हैं, कोरोना  से निपटने के लिए। लोगों को जागरूक करना ज़्यादा ज़रूरी है बनिस्बत उन्हें डराते रहने के।

डॉ अबरार मुल्तानी

लेखक और चिकित्सक