गूगल ने आज अपना डूडल अंग्रेजी व मलयालम भाषा की प्रसिद्ध भारतीय लेखिका कमला सुरैया( पूर्व नाम कमला दास) को समर्पित किया है.कमला सुरैया की प्रसिद्ध किताब ‘My Story’ आज ही के दिन 1976 में रिलीज हुई थी. निजी जिंदगी में बेहद साधारण रूप से जीवन जीने वाली कमला दास ने जब कागज पर अपनी भावनाओं को उकेरते हुए रचनाएं लिखी तो वे दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन गई. साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 1984 में उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था.कमला दास की जिंदगी पर जल्द ही मलयालम भाषा में ‘आमी’ फिल्म रिलीज होने वाली है.
केरल के त्रिचूर जिले में 31 मार्च 1934 को कमला दास का जन्म हुआ.वे एक हिंदू परिवार में जन्मी थी लेकिन 68 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस्लाम अपना लिया था. मशहूर अखबार मातृभूमि के कार्यकारी संपादक वीएम नायर और नालापत बलमानी अम्मा के घर में इनका जन्म हुआ. बलमानी अम्मा खुद भी मलयाली कवयित्री थीं. दास का बचपन कलकत्ता में गुजरा जहां इनके पिता वॉलफोर्ड ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे. दास ने भी अपनी मां की तरह लिखना शुरू किया. इनके चाचा नालापत नारायण मेनन भी प्रसिद्ध लेखक थे जिनका असर कमला दास की जिंदगी पर पड़ा. कविताओं के प्रति दास का आकर्षण इतना बढ़ा कि बहुत कम उम्र से ही उन्होंने लिखने-पढ़ने का काम शुरू कर दिया.
आत्मकथा ने हिला दिया था पुरुष समाज को
कमला दास की आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ ने तत्कालीन पुरुष समाज को हिला कर रख दिया था. एक परंपरागत महिला के रूप में पहचानी जाने वाली लेखिका की आत्मकथा उनकी छवि के विपरीत थी. अपनी आत्मकथा में उन्होंने जिस बेबाकी से स्त्री भावनाओं को लेकर लिखा उसके कारण विवाद खड़ा हो गया. एक महिला द्वारा इतनी बोल्ड लेखनी को कई लोगों ने गलत ठहराया. कमला दास की आत्मकथा जितनी विवादास्पद हुई, उतना ही ये प्रसिद्ध भी हुई.
इस किताब ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रसिद्धि दिलाई. ‘माई स्टोरी’ का पंद्रह विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया गया.
कमला दास की जिंदगी पर जल्द ही मलयालम भाषा में ‘आमी’ फिल्म रिलीज होने वाली है. उनकी आत्मकथा की तरह ही यह फ़िल्म भी विवादों में घिर गई है. माना जा रहा है कि फिल्म में लव जिहाद का समर्थन किया गया है. इस वजह से फिल्म के खिलाफ केरल हाई कोर्ट में एक अर्जी दायर की गई है.अर्जी में कहा गया है कि फिल्म में लव जिहाद का जानबूझकर महिमामंडल किया गया है.
परिवार के सो जाने के बाद रसोईघर में लिखती थी
कमला दास का विवाह 15 साल की उम्र में रिजर्व बैंक के एक अधिकारी माधव दास के साथ हुआ. पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण उन्हें लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक कि पूरा परिवार सो न जाए. परिवार के सो जाने के बाद वे रसोई घर में अपना लेखन जारी रखतीं. वे लिखने में इतनी डूब जाती थीं कि उन्हें पता ही नहीं चलता था कि सुबह कब हो गई. इससे उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ा और यही कारण है कि वे बीमार रहने लगीं.
के. दास के नाम से लिखती थीं कमला दास
मलयालम भाषा में कमला दास माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं. भारत की मशहूर साप्ताहिक पत्रिका ‘इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ में भी उनकी कविताएं प्रकाशित होती थीं. इसमें वे वे के. दास के नाम से लिखती थीं. इस बारे में उनका मानना था कि वे इस नाम का इसलिए उपयोग करती थीं क्योंकि उन्हें डर था कि पत्रिका के संपादक शॉन मैंडी कवयित्रियों के प्रति पक्षपात का भाव रखते होंगे.
कमला दास न सिर्फ खुद एक बड़ी कवि थीं, वो कई उभरते हुए कवियों को प्रोत्साहित भी किया करती थीं. पति की मौत के बाद उनमें जीने की भावना कम होने लगी. कमला दास के तीन बेटे थे, बावजूद इसके पति की मौत के बाद वो अकेलेपन से जूझ रही थीं. वो खुद की जिंदगी खत्म करना चाहती थीं. इसके लिए एक बार वो खुद एक सुपारी किलर के पास पहुंच गई थीं, लेकिन इस व्यक्ति ने भी उन्हें समझाकर घर वापिस भेज दिया. 31 मई 2009 को उनका निधन हो गया.
कमला दास को औपनिवेशिक युग के बाद के समय की सबसे प्रभावशाली लेखिकाओं में से एक माना जाता है. उन्होंने अपने काम से घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न झेल रहीं महिलाओं को प्रेरित किया. उनकी 20 से अधिक किताबें प्रकाशित हुईं. कविता में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें ‘द मदर ऑफ मॉडर्न इंडियन इंग्लिश पोइट्री’ (आधुनिक भारतीय अंग्रेजी कविता की मां) कहा गया.