जिस आंदोलन को समाप्त करने के लिए देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने शहादत थी थी आज चार दशक बाद पंजाब में उसी आंदोलन के समर्थकों का उग्र रूप देखकर देश-दुनिया के कान खड़े होना स्वाभाविक है। खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की अगुवाई में एक अन्य खालिस्तान समर्थक की रिहाई की मांग को लेकर किया गया उपद्रव इस बात के संकेत दे गया है कि पंजाब में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है।
आज की पीढ़ी शायद खालिस्तान आंदोलन और उसकी उग्रता से वाकिफ न हो किन्तु जिन्होंने इस आंदोलन की वजह से पंजाब को बर्बाद होते हुए देखा है, वे पंजाब में ताजा घटनाक्रम से चिंतित जरूर हैं। आपको बता दें कि कनाडा और यूरोप में रहने वाले अलगाववादी 40 साल से भी ज्यादा समय से खालिस्तान की मांग कर रहे हैं। 1979 में जगजीत सिंह चौहान ने भारत से लंदन जाकर खालिस्तान का प्रस्ताव रखा था। इस खालिस्तान के लिए सिंह ने एक नक्शा पेश किया था। 1969 में जगजीत सिंह पंजाब में विधानसभा चुनाव भी लड़े थे। जगजीत सिंह चौहान ने नई खालिस्तानी करेंसी जारी कर दुनिया भर में हंगामा मचा दिया था। 1980 में भारत सरकार ने उन्हें भगोड़ा घोषित करके उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया था। हालांकि, देश लौटने के बाद भी जगजीत खालिस्तान प्रस्ताव का समर्थन करते रहे, लेकिन हिंसा का उन्होंने विरोध किया।
पुराना किस्सा छोड़ भी दें तो भी आनंदपुर साहिब प्रस्तावसे बात शुरू की जा सकती है। इस प्रस्ताव में सिखों ने ज्यादा स्वायत्त पंजाब के लिए अलग संविधान बनाने की मांग रखी। 1980 तक आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के पक्ष में सिखों के बीच समर्थन बढ़ता गया। आनंद साहिब प्रस्ताब का ही एक कट्टर समर्थक था जरनैल सिंह भिंडरांवाले। एक रागी के रूप में सफर शुरू करने वाला भिंडरांवाले आगे चल कर आतंकी और खालिस्तान आंदोलन का बड़ा चेहरा बन गया।
भिंडरांवाले हर सिख को 32 हिंदुओं की हत्या करने को उकसाता था। उसका कहना था कि इससे सिखों की समस्या का हल हमेशा के लिए हो जाएगा। 1982 में भिंडरांवाले ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिला लिया और असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यही असहयोग आंदोलन आगे चलकर सशस्त्र विद्रोह में बदल गया।
मुझे याद है कि उस समय जिसने भी भिंडरांवाले का विरोध किया वह उसकी हिट लिस्ट में आ गया। इसी के चलते खालिस्तान आतंकियों ने पंजाब केसरी के संस्थापक और एडिटर लाला जगत नारायण की हत्या कर दी। आतंकियों ने अखबार बेचने वाले हॉकर तक को नहीं छोड़ा। ऐसी धारणा है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने उस समय अकाली दल के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भिंडरांवाले का समर्थन किया। इसके बाद सुरक्षाबलों से बचने के लिए भिंडरांवाले स्वर्ण मंदिर में जा घुसा। दो साल तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। इसी दौरान भिंडरांवाले स्वर्ण मंदिर परिसर में बने अकाल तख्त पर काबिज हो गया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भिंडरांवाले को पकड़ने के लिए एक गुप्त ‘स्नैच एंड ग्रैब’ ऑपरेशन को लगभग मंजूरी दे दी थी। इस ऑपरेशन के लिए 200 कमांडो को प्रशिक्षित भी किया गया था। लेकिन कतिपय कारणों से ऑपरेशन सनडाउन को रोक दिया गया। पानी जब सर के ऊपर होता दिखाई दिया तब तत्कालीन सरकार ने सेना को भेजने का फैसला ले लिया। कांग्रेस के सभी सांसदों और विधायकों को जान से मारने की धमकी और गांवों में हिंदुओं की सामूहिक हत्याएं शुरू करने की योजना का खुलासा होने के बाद यह फैसला किया गया। इंदिरा सरकार ने स्वर्ण मंदिर को भिंडरांवाले और हथियारबंद समर्थकों से खाली कराने के लिए सेना का जो अभियान शुरू किया, उसे ऑपरेशन ब्लू स्टार नाम दिया गया था।
आपरेशन शुरू करने से पहले 1 से 3 जून 1984 के बीच पंजाब में रेल सड़क और हवाई सेवा बंद कर दी गईं। स्वर्ण मंदिर को होने वाली पानी और बिजली की सप्लाई बंद कर दी गई। अमृतसर में पूरी तरह कर्फ्यू लगा दिया गया था। 5 जून 1984 को रात 10:30 बजे ऑपरेशन का पहला चरण शुरू किया गया था। स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर की इमारतों पर आगे से हमला शुरू किया गया। इस दौरान खालिस्तानी आतंकियों ने भी सेना पर खूब गोलीबारी की।
सेना आगे नहीं बढ़ पा रही थी। उधर, पंजाब के बाकी हिस्सों में सेना ने गांवों और गुरुद्वारों से संदिग्धों को पकड़ने के लिए एक साथ अभियान भी शुरू कर दिया था।
आतंकी भिंडरावाला को नेस्तनाबूद करने के लिए जनरल केएस बरार ने स्थिति से निपटने के लिए टैंक की मांग की। 6 जून को टैंक परिक्रमा तक सीढ़ियों से नीचे लाए गए। गोलीबारी में अकाल तख्त के भवन को भारी नुकसान हुआ। कुछ घंटों बाद भिंडरांवाले और उसके कमांडरों के शव बरामद कर लिए गए। 7 जून तक भारतीय सेना ने परिसर पर कंट्रोल कर लिया। ऑपरेशन ब्लूस्टार 10 जून 1984 को दोपहर में समाप्त हो गया। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान सेना के 83 जवान शहीद हुए और 249 घायल हो गए। एक तरह की इस अघोषित जंग में , हमले में 493 आतंकवादी और नागरिक मारे गए। हालांकि, कई सिख संगठनों का दावा है कि ऑपरेशन के दौरान कम से कम 3,000 लोग मारे गए थे।
पिछले दिनों पंजाब के अजनाला थाने पर खालिस्तान समर्थक लवप्रीत उर्फ़ तूफ़ान नाम के एक युवक को छुड़ाने के लिए घातक हमला किया गया। इस हमले की अगुवाई वारिस द पंजाब नामक संगठन के अध्यक्ष अमृतपाल ने की थी। उसने खालिस्तान का नारा फिर बुलंद किया है। 29 साल का अमृतपाल भिंडरावाला की तर्ज पर लोगों को खालिस्तान के लिए उकसाने में लगा हुआ है। पंजाब में वर्षों बाद किसी संगठन ने तलवारों और बंदूकों से लैस होकर किसी थाने पर हमला करने का दुस्साहस किया है। इस हमले में अनेक पुलिस कर्मी घायल हो गए थे, बाद में पुलिस ने एक अदालती निर्देश के बाद लवप्रीत को रिहा भी कर दिया।
पंजाब में इन दिनों आप पार्टी की सरकार है, भगवंत सिंह मान पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। उनकी पुलिस का कहना है कि अमृतपाल ने गुरु ग्रन्थ साहब की पालकी की आड़ में थाने पर हमला किया, इसलिए पुलिस ने स्थिति की नजाकत को देखते हुए कार्रवाई की, लेकिन पंजाब इस एक घटना से परेशान नजर आ रहा है। जिन लोगों ने पंजाब में 1984 और उसके पहले का दौर देखा है वे जानते हैं कि जनरैल सिंह भिंडरावाला भी इसी तरह की वारदातों के बाद एक खूंखार आतंकी बना था। पंजाब सरकार यदि समय रहते न चेती तो पंजाब में एक बार फिर आतंकवाद की जड़ें मजबूत हो सकतीं हैं, जो देश कि एकता, संप्रभुता और अखंडता के लिए चुनौती बन सकती है। अमृतपाल ने गृहमंत्री अमितशाह तक को धमकी दे डाली है।
देश को नहीं भूलना चाहिए कि ऑपरेशन ब्लूस्टार में निर्दोष लोगों की मौत होने के विरोध में कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित कई सिख नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। खुशवंत सिंह सहित प्रमुख लेखकों ने अपने सरकारी पुरस्कार लौटा दिए थे। चार महीने बाद 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिसके बाद जो हुआ उसका इतिहास अलग है ।