क्या ओवैसी की एंट्री से डर गए हैं अखिलेश ?

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देश के सबसे अहम राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में राजनीति नए मोड़ ले रही है,राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नए तरह की राजनीति कर रहे हैं वो “छोटे दलों” को अपने साथ लाना चाह रहे हैं,और उनसे गठबंधन करना चाह रहे हैं और सत्ताधारी भाजपा अपने गठबंधन में शामिल दलों को मना रही है और उनकी नाराज़गी को दूर करने की कोशिशों में है।

लेकिन मीडिया में इन दोनों से अलग एक नाम बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है वो है “असदुद्दीन ओवेसी” का,जिन्होंने डंके की चोट पर यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है,और राज्य में जहां जहां वो जा रहे हैं लोगों का हुजूम उनके साथ जुड़ रहा है,और उन्हें चाह रहा है,ओवैसी खुल कर सपा के एमवाई गठबंधन को नकार रहे हैं,और अपनी मज़बूत दावेदारी पेश कर रहे हैं।

लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि अखिलेश यादव असदुद्दीन ओवैसी के बयानों पर पलटवार नहीं कर रहे हैं,बल्कि डिफेंसिव हो कर उनकी बातों का जवाब दे रहे हैं,और बातों को संभालते नज़र आ रहे हैं,लेकिन सवाल है कि क्यों? क्या ओवैसी की एंट्री से अखिलेश यादव डर गए हैं? क्या उन्हें उनकी ताकत मुस्लिम वोटर्स का छिटक जाना डरा रहा है? आइये जानते हैं।

अखिलेश यादव मज़बूत और कॉन्फिडेंट क्यों नही है?

मैं आपको 2011 से लेकर 2012 के समय मे ले जाना चाहता हूं जहां राज्य में मायावती की सरकार थी और अखिलेश यादव में सरकार के खिलाफ विपक्षी नेता की तरह बिगुल फूंक दिया था,नोएडा से लेकर लखनऊ तक कि सड़क को उन्होंने नाप दिया था,सड़क से लेकर धरने तक मे वो आगे थे।

इसी का तोहफा उन्हें 2012 में उन्हें मिला था,सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री, लेकिन अब क्या हो रहा है? अखिलेश यादव 2017 और 2019 में बुरी तरह हारे हैं,जैसे उन्हें परिणाम चाहिए थे मिल नहीं पाए हैं,क्योंकि 2017 से पहले सपा के “मैनेजमेंट गुरु” शिवपाल यादव उनसे अलग हो गए,2019 के चुनावों तक “जननेता” मुलायम सिंह यादव की सेहत अच्छी नहीं रही है।

इसमे सबसे अहम बात आज़म खान जेल में हैं,और सपा की ताकत कहा जाने वाला मुसलमान वोटर्स आज़म खान से अपना जुड़ाव रखता है,उन्हें अपना लीडर मानता रहा है,लेकिन आज़म खान,शिवपाल और मुलायम सिंह यादव जैसे समाजवादी पार्टी के पिलर्स का राजनीति में होते हुए भी न होना उनके लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है।

ओवैसी युवाओं की पहली पसंद हैं?

असदुद्दीन ओवैसी के बारे में एक मिसाल बहुत माकूल है “आप इन्हें नापसन्द तो कर सकते हैं लेकिन इग्नोर नहीं कर सकते हैं” इस बात को मानने में कोई दो राय नहीं है कि ओवैसी को युवा पसंद करते हैं,वोट दे या न दें,समर्थन करें या न करें,लेकिन इसमें कोई शक़ नहीं है कि उन्हें चाहने वाले लोगों में युवाओं की बड़ी तादाद है और गाज़ीपुर से लेकर गाज़ियाबाद तक के उनके हाल ही में हुए दौरों में युवाओं को उनको लेकर रोमांच कई सवाल खड़े कर रहा है।

जबसे ट्रिपल तलाक़,कश्मीर से स्पेशल हक़ छीने जाना हो एनआरसी प्रोटेस्ट और सीएए बिल का आना हो और अब जनसँख्या नियंत्रण कानून तक भाजपा ने अपने तमाम उन वादों को पूरा करने की कोशिश की है जो उसने चुनावों से पहले किये थे।

इस बीच केजरीवाल, मायावती जैसे दिग्गज नेताओं का कश्मीर से 370 अनुछेद हटाये जाने के समर्थन तक और एनआरसी प्रोटेस्ट में गिरफ्तार हुए नौजवानों तक के मुद्दों पर अखिलेश यादव बहुत मुखर होकर नहीं बोल पाए हैं,क्यूंकि उन्हें बड़ी तादाद में वोटों के ध्रुवीकरण का डर भी कहीं न कहीं रहा ही होगा।

लेकिन ओवैसी इन मुद्दों पर बोले हैं,लगातार और दमदार तरह से बोले हैं,सड़क से लेकर संसद तक उन्होंने इन तमाम बिलों और कानूनों का विरोध किया है,और यही बहुत बड़ी वजह है कि ओवैसी को युवा और खासकर मुस्लिम युवा पसन्द कर रहा है,और अखिलेश यादव के लिए ये खतरे की घण्टी है।

क्या हो सकता है चुनावों के करीब?

दरअसल अखिलेश यादव उस राह पर नहीं चल रहे हैं जहां उनके पिता चला करते थे,अखिलेश यादव “समाजिक समीकरण” बैठा रहे हैं वो पश्चिमी यूपी में “महान” दल,और रालोद जैसे जातीय और समाजिक गठजोड़ को साधने में लगे हुए हैं,और पूर्वांचल में वो “अपना दल” (मोदी सरकार में गठबंधन से अलग वाला हिस्सा) को भी वो अपनी तरफ लाने की कोशिशों में हैं।

इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी के बारे में सवाल पूछने पर उन्होंने कहा है कि “सभी छोटे दलों को साथ लाने की कोशिश की जाएगी” इसलिए यहां ये कहा जाना कि अखिलेश यादव को ओवैसी की एंट्री से डर है तो ये बिल्कुल सही होगा,और हो ये भी सकता है कि ओवैसी की पार्टी अखिलेश यादव के साथ गठबंधन में शामिल भी हो जाये।

इस गठबंधन का असर क्या हो सकता है और परिणाम क्या हो सकते हैं ये चर्चा अगली बार…

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