पीएम मोदी के साढ़े 4 साल में भारत पर बढ़ा 49 फीसदी क़र्ज़

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कल एक हैरान करने वाली खबर आई कि पीएम मोदी के साढ़े 4 साल के कार्यकाल में भारत सरकार पर 49 फीसदी का कर्ज बढ़ा है, केंद्र सरकार ने कर्ज पर कल अपनी स्टेटस रिपोर्ट का आठवां संस्करण जारी किया जिसके मुताबिक जून, 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 54,90,763 करोड़ रुपये था, जो सितंबर 2018 में बढ़कर 82,03,253 करोड़ रुपये हो गया है. यदि इस कर्ज को देश की 134 करोड़ की आबादी से डिवाइड करे तो हर नागरिक पर लगभग 61 हजार रुपये का कर्ज है.
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में मोदी समर्थक अब तक तो यह बताते आए है कि मोदीजी ने सारा विदेशी कर्ज चुका दिया और कोई नया कर्ज भी नही लिया. खैर ऐसे झूठ की पोल तो बहुत बार खुल चुकी है लेकिन इस बढ़ते हुए कर्ज के आंकड़े से कुछ बेहद महत्वपूर्ण बाते निकल कर आती हैं.
2014 में नरेंद्र मोदी की ताजपोशी से एक साल से भी कम समय में कच्चे तेल की कीमत 114 डॉलर प्रति बैरल से 53 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी. बड़े स्तर पर सोशल सेक्टर में निवेश के लिए बेकरार और राजकोषीय घाटे से जूझ रही सरकार के लिए यह किसी तोहफ़े से कम नहीं था.
2015 में एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वो एक भाग्यशाली प्रधानमंत्री हैं, जिसके आने से कच्चे तेल की कीमतें कम हो गई हैं और इससे सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिलेगी.
90 फ़ीसदी से अधिक तेल इंपोर्ट करने वाले देश को अगर आधी कीमत पर तेल मिलने लगे तो सरकारी खजाना तो बहुत तेजी से बढ़ना चाहिए था.

अब दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात समझिए

2014 से 2017 के बीच पेट्रोल-डीज़ल पर 9 बार उत्पाद कर (एक्साइज़ ड्यूटी) बढ़ाया गया. नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल पर ये बढ़ोतरी 11 रुपये 77 पैसे और डीज़ल पर 13 रुपये 47 पैसे थे. जबकि पेट्रोल डीजल के दामो में इस दौरान लगभग सिर्फ 2 रुपये की कटौती की गयी.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री की केंद्र सरकार को मिलने वाला राजस्व लगभग तीन गुना बढ़ गया था 2015-16 से 2017-18 के बीच सरकार के खजाने में तेल की बिक्री से करीब 14.88 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुके थे.
यानी फायदा दो स्तर पर हुआ एक तो कच्चे तेल की कीमत 60 प्रतिशत तक घट गयी और उसके बाद एक्साइज ड्यूटी लगा कर दो सालों में सरकारों के खजाने में करीब 15 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी भी हुई.
यानी कच्चे तेल का आयात बिल जो देश के सबसे बड़े खर्चो में शुमार किया जाता हैं उसके अंतर्गत मोदी सरकार को बेतहाशा फायदा हुआ लेकिन उसके बावजूद आज हमें यह पता चल रहा है कि सरकार पर 49 फीसदी का कर्ज बढ़ गया है यह कैसे हो गया यह कोई हार्वर्ड हमे नही बतला सकता ऐसा अर्थशास्त्र शायद चायवाला ही समझा सकता है

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