एम्स का ये डॉक्टर कैसे बना आदिवासियों का हीरो ?

Share

“हीरा अलावा”, विधानसभा चुनावों के मौसम में पिछले 6 माह से यह नाम मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र की राजनीति में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। डॉ अलावा हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की मनावर विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर लड़े जहां उन्होंने प्रदेश की पूर्व कैबिनेट मंत्री और भाजपा प्रत्याशी रंजना बघेल को करीब 40000 मतों के बड़े अंतर से हराया। इतनी बड़ी जीत का कारण आख़िर क्या था ? जवाब वही है जिसे आधार बना पर डॉ अलावा ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी यानी कि आदिवासी युवा।
Image result for dr hira alawa AND ANAND RAI
डॉक्टर अलावा मूलतः मध्य प्रदेश के धार जिले के रहने वाले हैं और वर्ष 2016 तक एम्स दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे। इसके बाद वे नौकरी छोड़कर मनावर (मध्य प्रदेश) जाकर बस गए और जयस यानी ‘ जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन ‘ की स्थापना की। जयस मुख्यतः आदिवासी युवाओं का संगठन है जो राष्ट्रीय परिदृश्य में पिछले वर्ष तब आया था जब उसने आदिवासी बहुल धार, झाबुआ,अलीराजपुर और बड़वानी जैसे जिलों में आरएसएस भाजपा एबीवीपी और साथ ही कांग्रेस एनएसयूआई जैसे संगठनों को चुनौती देते हुए छात्र संघ चुनावों में उतर कर पहली बार में ही डेढ़ सौ से अधिक सीटें हासिल की थी।
Image result for dr hira alawa
संगठन के लोग दावा करते हैं कि जयस की स्थापना का लक्ष्य , पिछले 70 सालों से हाशिए पर पड़े उस आदिवासी समुदाय को आवाज देना था जिसके दम पर भाजपा और कांग्रेस ने बारी बारी से सत्ता का सुख भोगा । जयस का शुरुआती सफ़र जैसा कि संगठन की ओर से दावा किया जाता है कि जयस वर्ष 2016 से आदिवासी युवाओं के बीच काम कर रहा है और समाज के युवाओं को आदिवासियों को संविधान की क्रमशः पांचवी और छठी अनुसूची में प्रदत्त विशेष अधिकार, PESA एक्ट और जल जंगल जमीन के मुद्दों को लेकर जागरूक करने के लिए संघर्षशील है। इसी मांग को लेकर जयस ने कुछ माह पहले करीब 15 राज्यों के आदिवासियों को लेकर संसद का घेराव भी किया था लेकिन असल मायनों में जयस ने अपना प्रभाव पहली बार छात्र संघ चुनाव में ही दिखाया था और छात्र राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के एकाधिकार को तोड़ते हुए बड़े-बड़े दिग्गजों को छात्र राजनीति पर पुनः चिंतन मनन करने पर विवश कर दिया । जयस का मुख्य लक्ष्य आदिवासी छात्र ही थे जिनके बूते उसने अपनी पहली राजनीतिक जमीन तलाश की ।

आखिर क्यों सफल हुए हीरा और जयस ?

मध्य प्रदेश के निमाड़ और झाबुआ-अलीराजपुर अंचल को पहले कांग्रेस का अभेद किला माना जाता था । इस स्थापित मान्यता को तोड़ने का कार्य भाजपा ने सन 2003 के विधानसभा चुनावों में किया और निमाड़ सहित झाबुआ अलीराजपुर के क्षेत्र में एक तरफा जीत हासिल की । भाजपा के लिए यह राजनीतिक जमीन बनाने का काम उसके मातृ संगठन आरएसएस ने किया ।
आरएसएस वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए आदिवासियों के बीच काफी पहले से काम करता रहा है और सामाजिक, सांस्कृतिक मुद्दों के साथ ही धर्मपरिवर्तन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी आदिवासियों को लेकर अपने एजेंडे पर आगे बढ़ता है। गौरतलब है कि झाबुआ-अलीराजपुर जिलों में ईसाई मिशनरी भी आदिवासियों के बीच करीब एक सदी से सक्रिय है, ईसाई आदिवासियों की एक बड़ी संख्या यहां निवास करती है। वनवासी कल्याण आश्रम के ज़रिए ही संघ ने आदिवासियों के बीच अपनी पैठ व्यापक स्तर पर बनाई जिसका सीधा फायदा उसके भाजपा और एबीवीपी सरीखे अनुषांगिक संगठनों को मिला।
Image result for dr hira alawa
इस से उलट , जयस ने आदिवासी युवाओं को जल जंगल जमीन से जुड़े मुद्दों पर जागरूक करने का बीड़ा उठाया। जयस से पढ़े-लिखे युवा शुरू से ही जुड़े हुए थे जो अपनी आदिवासी पहचान को प्राथमिकता देते थे, उसे लेकर सजग थे और यही कारण था कि आदिवासी छात्रों ने जयस को हाथों-हाथ लिया। छात्र संघ चुनाव में जीत से जयस को एक नई संजीवनी मिली और उसने अपनी गतिविधियां बढ़ा दी। जयस उन आदिवासी युवाओं के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ जो इंदौर-भोपाल जैसे बड़े शहरों में रहकर पढ़ रहे थे और अपने ही समाज के बीच , खुद के लिए एक राजनीतिक नेतृत्व तलाश कर रहे थे। धार,झाबुआ अलीराजपुर और बड़वानी जिले के आदिवासी छात्रों ने भी एबीवीपी और एनएसयूआई को छोड़कर जयस का साथ दिया और यहां पर से ही डॉ अलावा को राजनीति में खुद के लिए गुंजाइश दिखी।
Image result for dr hira alawa AND ANAND RAI
डॉक्टर अलावा ने मनावर को छोड़कर इंदौर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और युवाओं की एक टीम खड़ी की। यह युवा जब भी अपने गांव में जाते तो अपने घरवालों और गांव वालों को आदिवासियों के मुद्दों को लेकर जागरुक करने का काम करते। यह संगठन का शुरुआती चरण था। डॉक्टर अलावा को मीडिया कवरेज दिलाने और राजनीति में आगे बढ़ाने का काम किया व्यापम घोटाले के व्हिसल ब्लोअर ‘ डॉ आनंद राय ‘ ने। डॉक्टर राय जो खुद पहले आरएसएस से जुड़े थे किंतु संघ के साथ विभिन्न विषयों पर तालमेल न बिठा पाने के बाद उन्होंने अपनी एक अलग राह बनाई।
Image result for dr hira alawa AND ANAND RAI
व्यापम घोटाले का विसलब्लोअर होने के कारण डॉक्टर राय राष्ट्रीय मीडिया में पहले से एक जाना पहचाना नाम थे और ‘ व्यापम ‘ जैसे राजनैतिक संभावनाओं से परिपूर्ण मुद्दे से सीधे जुड़े होने के कांग्रेस के नेता भी डॉक्टर राय के संपर्क में थे। इसी वजह से डॉक्टर अलावा को मीडिया में आने और कांग्रेस के नेताओं से संपर्क करने में कोई ख़ास मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। कहा जाता है कि सब से पहले डॉ. राय ने ही डॉ अलावा को दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं से मिलवाया था। ” राजनैतिक बिसात की शुरुआत ” जयस ने अपनी पैठ बनाने के लिए, मनावर में अल्ट्राट्रेक सीमेंट फैक्ट्री के लिए आदिवासियों की जमीन के अधिग्रहण का मुद्दा उठाया और बड़ी संख्या में आदिवासियों की भीड़ जमा की। इसे विपक्षी पार्टियों के सामने शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा जा सकता है। डॉक्टर अलावा के साथ गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के हीरा मरकाम, किसान नेता केदार सिरोही, शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’ जैसे लोग भी जुड़े।
Image result for dr hira alawa AND ANAND RAI
डॉ. अलावा ने भाजपा के साथ कांग्रेस की नीतियों और नेतृत्व को भी आड़े हाथों लेते हुए यह साफ कर दिया था कि जयस को कांग्रेस पूरी तरह से अपनी और मान कर ना चले और इसे दिखाने के लिए उन्होंने “अबकी बार आदिवासी सरकार” जैसा अति महत्वाकांक्षी नारा भी दिया। डॉक्टर अलावा का यह रुख कांग्रेस के लिए संकेत था कि जयस को न साधने पर आदिवासी सीटों पर उसका खेल बिगड़ सकता है और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल जाएगा। ठीक इसी तरह डॉक्टर अलावा के सामने भी कांग्रेस से ज्यादा से ज्यादा सीटें लेने की चुनौती थी। सीटों पर रार चुनाव पास आते आते सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और जयस के बीच खींचतान बढ़ गई क्योंकि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जयस को एक – दो से ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं था। जयस की मुख्य मांग धार जिले की कुक्षी सीट को लेकर थी जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है और वहां के कद्दावर नेता और कांग्रेस के वर्तमान विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल ‘हनी’ भी उसे छोड़ने को राजी नहीं थे। ऐसे में डॉ हीरालाल अलावा को मनावर से कांग्रेस के टिकट पर लड़ाने पर सहमति बनी।
कहते हैं कि सफलता अपने साथ दिक्कते भी लेकर आती है। जब से डॉ अलावा को कांग्रेस से टिकट मिलने की बात शुरू हुई थी तब से जयस का एक धड़ा उससे अलग हो गया था जो अपने आप को ‘ कोर कमेटी ‘ बताते हुए डॉ. अलावा से अपना विरोध जताने लगा और दोनों धड़ों के बीच खुद को असली जयस बताने की होड़ मच गई। इसी बीच डॉ. अलावा को कांग्रेस ने टिकट दे दिया। माना जाता है कि यह टिकट, उन्हें दिग्विजय सिंह कोटे से मिला । टिकट मिलने और चुनावों के बीच 15 दिन से भी कम समय में डॉक्टर अलावा ने प्रचार में पूरी ताकत लगा दी , गांव-गांव घूमकर जनसम्पर्क किया और जैसा उनके समर्थक दावा करते हैं कि बिना एक पैसा या शराब की एक भी बोतल बाटे , डॉक्टर अलावा ने यह चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीत लिया।
अब सवाल यह है कि क्या डॉक्टर हीरा अब भी आदिवासियों के मुद्दों को लेकर उतनी ही सजगता से ही अपनी ही सरकार से लड़ेंगे? या फिर नेतृत्वकर्ता को पद मिलने के बाद जयस का भी हश्र अन्य संगठनों की तरह होगा और वह अपना अस्तित्व खो देगा ? जो भी हो डॉक्टर हीरा ने समाज के बीच अपनी बातों की स्वीकार्यता तो दिखा दी है, अब उन्हें अपने कामों की स्वीकार्यता दिखाना बाकी है।